Feb 23, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आपने निश्चित तौर पर परिवार के बुजुर्गों को यह कहते सुना होगा कि ‘स्वर्ग और नरक कहीं दूर नहीं होते, बल्कि हमारे विचारों, कर्मों और आचरण में ही बसे होते हैं।’ इस कथन के पीछे उनका भाव सिर्फ़ हमें यह समझाना होता है कि हमारा क्रोध हमें नरक के द्वार तक पहुंचा सकता है, जबकि हमारा बोध हमें स्वर्ग की ओर ले जाता है। आइए आज इसी बात को विस्तार से एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं-
कई सौ साल पहले एक प्रसिद्ध सेनापति, जिसकी वीरता और पराक्रम की गूंज पूरे देश में थी, एक साधु के पास पहुंचा और बोला, ‘क्या आप मुझे स्वर्ग जाने का मार्ग बता सकते हैं?’ साधु ने कुछ क्षणों के लिए उसे ग़ौर से देखा और पाया कि उसके दोनों तरफ़ दो तलवारें लटक रही रही है, और उसके चेहरे पर गर्व और अधिकार का भाव था। साधु तत्क्षण समझ गए कि यह कोई योद्धा है। उन्होंने हँसते हुए उस सेनापति से कहा, ‘क्या कहा तुमने, स्वर्ग जाने का रास्ता…, शक्ल देखी है अपनी कभी आईने में? बड़े आए हैं स्वर्ग जाने की बातें करने…!’
साधु के शब्दों को सुन सेनापति ख़ुद को अपमानित महसूस कर रहा था। वैसे कहीं ना कहीं उसका यह सोचना जायज भी था क्योंकि वह वो व्यक्ति था जिसकी एक गर्जना से सैनिक कांप जाते थे; जिसे युद्ध में अजेय माना जाता था। आप ही सोचिए ऐसा व्यक्ति क्या साधु की कही बात को सुनना चाहेगा? नहीं ना… ऐसा ही उस सेनापति के साथ हुआ और गुस्से में उसने अपनी तलवार निकाली और साधु की ओर लपका। उसकी हरकत को देख साधु मुस्कुराते हुए बोले, ‘देखो, यही नरक जाने का रास्ता है।’ साधु के शब्द सुनते ही सेनापति ठिठक कर रुक गया। ऐसा लगा मानो उसे झटका लगा हो। असल में वह समझ गया था कि उसे गुस्से की अग्नि ने अंधा बना दिया था। उसकी तलवार साधु की गर्दन पर थी, और अगर वह आगे बढ़ता, तो वह पाप कर बैठता। उसने तुरंत तलवार वापस म्यान में डाल ली। उसके ऐसा करते ही साधु एकदम शांत भाव के साथ शांत स्वर में बोले, ‘और यही स्वर्ग जाने का रास्ता है।’
दोस्तों, अगर आप गंभीरता के साथ सोचेंगे तो पायेंगे कि यह कहानी हमें एक ही बात समझाने का प्रयास करती है, स्वर्ग और नरक कोई भौगोलिक स्थान नहीं हैं, बल्कि वे हमारे मन की अवस्था हैं। जब हम क्रोध, अहंकार और आवेश में बह जाते हैं, तो हम नरक के द्वार पर होते हैं। लेकिन जब हम धैर्य, शांति और समझदारी से काम लेते हैं, तो हम स्वर्ग के मार्ग पर होते हैं। सेनापति ने जब क्रोध में तलवार उठाई, तो वह पूरी तरह अचेतन याने बोध हीन था, याने वह अपनी आदतों का दास था। लेकिन जैसे ही साधु ने उसे उसका बोध दिलाया, वह जाग गया और तलवार वापस रख दी। यही बोध या जागरूकता, मनुष्य को स्वर्ग की ओर ले जाती है।
दोस्तों, हमारे जीवन में भी कई बार ऐसा होता है कि हम आवेश में आकर गलत निर्णय ले लेते हैं। जैसे कभी गुस्से में अपशब्द बोलना, दूसरों को अपमानित करना या ऐसे फैसले लेना, जो हमें बाद में पछतावे की ओर ले जाते हैं। यह स्थिति बोध हीन अवस्था में जीने का प्रतीक है। लेकिन इसके विपरीत अगर हम बोध पूर्वक जीना सीख लें अर्थात् अपने हर निर्णय, हर प्रतिक्रिया को जागरूकता के साथ लेना शुरू कर दें, तो हम न केवल गलतियों से बच सकते हैं, बल्कि अपने जीवन को भी सुंदर बना सकते हैं। इस आधार पर कहा जाये दोस्तों, तो स्वर्ग और नर्क हमसे कहीं दूर नहीं बल्कि हमारे अंदर स्थित हैं। अगर हम क्रोध, अहंकार और अज्ञानता में डूब जाते हैं, तो हम स्वयं को नरक में धकेल देते हैं। लेकिन यदि हम अपने विचारों और कर्मों में जागरूकता और समझदारी लाते हैं, तो हमारा जीवन स्वर्ग बन सकता है। दोस्तों, अब अगली बार आपको कभी गुस्सा आए, तो एक क्षण ठहरें और सोचें, ‘क्या मैं नरक के द्वार पर खड़ा हूँ, या स्वर्ग की ओर बढ़ रहा हूँ?’ फिर देखियेगा, यही छोटा सा विचार आपको सही रास्ता दिखाना शुरू कर देगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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