July 5, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, जो नाशवान है, उसका अभिमान, उसका दिखावा, मेरी नज़र में तो व्यर्थ ही है। वैसे इसकी दो वजह हैं, पहली, यह आपको हक़ीक़त या यूँ कहूँ सच्चाई से कोसों दूर रखता है और दूसरी, यह आपको जो आवश्यक है, उसके स्थान पर जो व्यर्थ है, उससे जोड़ कर रखता है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात कई साल पुरानी है, मुंबई के बाहरी इलाक़े में एक बहुत ही अमीर सेठ रहा करते थे, जिन्हें अपनी संपत्ति, अपने ऐश्वर्य का बड़ा अभिमान था। इसीलिए वे इसके प्रदर्शन का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते थे। जैसे, ख़ुद को अपने इलाक़े का सबसे बड़ा धर्मात्मा और दानी सिद्ध करने के लिए वे प्रतिदिन ब्राह्मण भोज करवाते थे।
एक दिन सेठ ने अपने घर आयोजित होने वाले ब्राह्मण भोज में एक बहुत ही ज्ञानी और पहुँचे हुए महात्मा को भी आमंत्रित किया। महात्मा जी के आने के बाद सेठ ने उनके स्वागत-सत्कार पर ध्यान देने के स्थान पर अपने ऐश्वर्य और धन-दौलत के विषय में शेखी बघारना शुरू कर दिया, ‘देखो महाराज, यहाँ से लेकर वहाँ तक की अपनी कोठी है और उसके आगे और पीछे इतना ही बड़ा बगीचा है। अगर आप दायीं ओर देखेंगे, तो जहाँ तक आपकी नज़र जाएगी वहाँ तक अपनी ही ज़मीन है। इतना ही नहीं इस गाँव में मेरी दो मिलें हैं और देश के कोने-कोने में अपना व्यवसाय फैला हुआ है। मैंने कई धर्मशालाएँ और कुएँ बनवा रखे हैं और मेरे दोनों बेटे विलायत में शिक्षा ले रहे हैं। आप जैसे सन्यासियों और ब्राह्मणों को प्रतिदिन भोजन कराने का भी मैंने नियम ले रखा है।’
अभिमान वश सेठ को बिना रुके ख़ुद की तारीफ़ करता देख महात्मा जी ने बीच में ही उन्हें टोकते हुए कहा, ‘सेठ, फिर तो निश्चित तौर से तुम्हारे पास इस दुनिया का नक़्शा भी होगा। सेठ ने दंभ भरते हुए कहा, ‘निश्चित तौर पर महात्मन मेरे पास इस दुनिया का बहुत बड़ा नक़्शा है। मैं अभी उसे मँगवा कर आपको दिखाता हूँ।’ इतना कह कर सेठ ने अपने नौकर को दुनिया का नक़्शा लाने के लिए कहा।
नक़्शा आते ही महात्मा ने मुस्कुराते हुए उस सेठ से कहा, ‘सेठ, जब तुम्हारे पास दुनिया का इतना बड़ा और इतना सुंदर नक़्शा है तो तुम निश्चित तौर पर इस नक़्शे को देखना भी जानते होगे?’ सेठ ने तुरंत हाँ में गर्दन हिलाई, जिसे देखते ही महात्मा जी बोले, ‘अरे वाह! फिर तो तुम्हें यह भी पता होगा कि इसमें हमारा महान देश भारत कहाँ है?’ सेठ ने बिना एक पल गँवाएँ अपना हाथ भारत के नक़्शे पर रख दिया। महात्मा मुस्कुराते हुए बोले, ‘फिर तो तुम यह भी बता सकते होगे कि इस नक़्शे में मुंबई कहाँ है?’ सेठ ने नक़्शे में मुंबई पर हाथ रख दिया। इतना सुन महात्मा जी ने बात आगे बढ़ाते हुए सेठ से पूछा, ‘लगता है नक़्शे को पढ़ने में तुम माहिर हो। चलो अब इस नक़्शे में तुम्हारी कोठी, तुम्हारे बगीचे और तुम्हारी ज़मीन, बताओ कहाँ है?’ सेठ बोला, ‘महाराज, दुनिया के नक़्शे में इतनी छोटी चीज़ें कहाँ दिखेंगी?’
सेठ का जवाब सुन महात्मा जी एकदम गंभीर हो गए और उनकी आँखों में आँखें डालते हुए बोले, ‘जब तुम जानते हो कि तुम्हारे पास जो कुछ भी है वो इतना थोड़ा या छोटा है तो फिर उसका अभिमान क्यों करते हो। ज़रा गंभीरता से सोच कर देखो, जिस भगवान के नाम पर तुम इतनी सेवा का दिखावा कर रहे हो, उसके ऐश्वर्य, उसकी लीला के सामने तुम्हारी ज़मीनों, तुम्हारी मिलों या तुम्हारी दौलत की क्या बिसात? जो कुछ भी तुम्हारे पास है, वह सब उस ईश्वर के लिये ना के बराबर है। ईश्वर के सामने तुम्हारे ऐश्वर्य का क्या स्थान होगा तुम स्वयं बहुत अच्छे से अंदाज़ा लगा सकते हो।’
बात तो दोस्तों, महात्मा जी की सोलह आने सही थी। इंसान थोड़ी सी सफलता, थोड़ी सी दौलत पा अहंकारी और अभिमानी बन जाता है और इसी झूठ की आड़ में अपना जीवन बर्बाद कर लेता है। यदि वह अपनी स्थिति की तुलना अन्य लोगों या फिर भगवान के अनन्त ऐश्वर्य से करे, तो उसे अपनी वास्तविक स्थिति का अंदाज़ा हो जाएगा। वैसे इसीलिए हमारे समाज; हमारे धर्म में धन सम्पत्ति, ऐश्वर्य के अभिमान को व्यर्थ और सबसे बड़ी मूर्खता माना गया है। अगर आप वाक़ई मोह, अहंकार और अभिमान से बचना चाहते हो तो आपके पा जो भी है उसे उस ईश्वर का आशीर्वाद मान, प्रसाद के रूप में स्वीकारो और उसके लिए हमेशा उस प्रभु के आभारी रहो। वैसे भी उस भगवान के घर दौलत और शोहरत की नहीं अपितु राम नाम की क़ीमत है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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