Aug 9, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
ज़िंदगी के प्रति आपका नज़रिया ही आप कितनी गुणवत्ता के साथ जीवन जिएँगे, तय करता है। जी हाँ साथियों, तमाम अच्छी-बुरी परिस्थितियों के बाद भी आपके जीवन की गुणवत्ता आपकी सोच, आपके नज़रिए पर निर्भर करती है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-
एक संत ‘सेवा परमोधर्म’ के संदेश को घर-घर तक पहुँचाने का उद्देश्य लिए एक शहर से दूसरे शहर भ्रमण किया करते थे। एक दिन इसी तारतम्य में वे एक ऐसे गाँव में पहुँच गए जहाँ सभी लोग उनके धर्म के कट्टर विरोधी थे। संत ने फिर भी अपनी ओर से सभी को समझाने का प्रयास किया कि वे यहाँ अपने धर्म के प्रचार के लिए नहीं, अपितु मानवता की सेवा के लिए आए है। पर कोई उनके मक़सद को समझने के लिए राज़ी ही नहीं था। लोगों को समझाने की इस प्रक्रिया में कब संध्या ढल गई, संत को पता ही नहीं चला। संत ने अब गाँव वालों से निवेदन करा कि वे उन्हें सिर्फ़ रात्रि अपने गाँव में गुज़ारने की इजाज़त दे दें, लेकिन गाँव वाले इसके लिए भी राज़ी नहीं हुए।
दूसरा गाँव वहाँ से काफ़ी दूर था इसलिए कुछ पलों के लिए संत पशोपेश में पड़ गए कि अब क्या किया जाए? कोई और उपाय ना देख संत ने चेरी के एक बगीचे में, पेड़ के नीचे रात गुज़ारने का निर्णय लिया। उस दिन अत्यधिक सर्दी के कारण संत की नींद रात दो बजे ही खुल गई। पूर्णिमा की चाँदनी रात में आँख खुलते ही संत को अपने चारों ओर ढ़ेर सारे चेरी के फूल खिले नज़र आए। चाँद भी अब पूरी तरह खिला हुआ, आसमान के बीच में आ गया है और उसकी शीतल चाँदनी उस माहौल को बहुत ही सुंदर बना रही है। संत उस क्षण के आनंद में ऐसे रमे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब सुबह हो गई।
दैनिक कर्म और पूजा आदि से निवृत्त होने के बाद संत एक बार फिर उस गाँव में पहुंचे और प्रत्येक घर जा जाकर धन्यवाद कहने लगे। रात को संत के मुँह पर मनाकर दरवाज़ा बंद करने वाले लोग हैरान थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि संत उन्हें किस बात का धन्यवाद दे रहे हैं? कुछ लोग तो संत को पागल तक मान रहे थे। गाँव में रहने वाले एक बुजुर्ग से तो संत का यह व्यवहार पचा ही नहीं। उन्होंने चिढ़ते हुए संत से कहा, ‘तुम पागल तो नहीं हो गए हो, जो बिना किसी कारण के सबको धन्यवाद देते फिर रहे हो?’
बुजुर्ग की बात सुन संत मुस्कुराए और बोले, ‘महानुभाव, मैं तो आपको भी धन्यवाद देने आ ही रहा था। अगर आप सभी लोग कल रात्रि को अपने घर में शरण देने से मना नहीं करते, तो मैं आज अद्भुत क्षण को महसूस करने से वंचित रह जाता। कल रात्रि को मैंने चाँदनी रात में चेरी के फूल खिलते हुए देखे। ऐसा अलौकिक माहौल मैंने अपने पूरे जीवन में नहीं देखा। मुझे तो लगता है आपके अक्खड़ व्यवहार में मेरे प्रति प्रेम, करुणा और दया छुपी हुई थी, इस बात का एहसास मुझे उस वक्त हुआ जब मैंने वह अलौकिक क्षण महसूस किया। परमात्मा का आपको मेरे लिए द्वार बंद करने की प्रेरणा देना, असल में मेरे हित में ही था।’
दोस्तों, मेरी नज़र में संत का हर हाल में मौज में रहना, जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण का कमाल है। हो सकता है, उस रात लोगों के द्वारा संत के मुँह पर द्वार बंद करने पर, संत को ग़ुस्सा भी आ सकता था। उनके मन में गाँव वालों के प्रति घृणा और क्रोध हो सकता था और इसी घृणा और क्रोध के कारण, संत चेरी के फूल को खिलते देखते ही नहीं और वे उस अलौकिक पल को पहचान ही नहीं पाते।
वैसे दोस्तों, उपरोक्त बात है तो एकदम सही, जीवन में घटने वाली हर घटना के प्रति आभारी रहना, आपको संतुष्टि भरा जीवन जीने का मौक़ा देता है और जब जीवन में संतुष्टि का भाव होता है, तो आपके जीवन में शांति और ख़ुशी अपने आप आ जाती है। इसीलिए दोस्तों, जो ना मिले उसका मलाल करने के स्थान पर, जो मिले उसके लिए धन्यवाद का भाव रखें और निश्चिंतता व सरलता के साथ जीवन जिएँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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