Aug 11, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, भौतिक दुनिया में बाहरी चमक-दमक के कारण उपजी तृष्णा कहीं ना कहीं इंसान की नैतिकता को प्रभावित कर रही है और इसी वजह से लोगों की नीयत में खोट आती जा रही है। जिसका ख़ामियाज़ा दोस्तों कहीं ना कहीं हमें अपने जीवन में भुगतना ही पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो नियत की खोट हमें तात्कालिक लाभ तो दे सकती है, लेकिन भविष्य में हमें कहीं ना कहीं इसकी क़ीमत चुकाना ही पड़ती है। अर्थात् ग़लत नीयत ही हमारे जीवन में आने वाली परेशानियों और दुख के लिए ज़िम्मेदार है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात कुछ साल पहले की है, गाँव के कुछ धनी किसानों ने मिलकर सिंचाई के लिए पानी की ज़रूरत को पूरा करने के लिए एक कुआँ खुदवाया। इस कुएँ से वे सभी बारी-बारी से पानी लेकर अपना काम चलाया करते थे। उन्हीं लोगों के खेत के पास एक ग़रीब किसान का खेत भी था। उसे हमेशा लगता था कि अमीर लोग उसे जानबूझ कर पानी नहीं लेने देते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते हैं कि वह भी अच्छी फसल उगा सके। जबकि स्थिति इसके उलट थी, अमीर लोग उसकी मदद तो करना चाहते थे, लेकिन समय, बिजली की कमी और कुएँ के सीमित पानी के कारण कर नहीं पाते थे। लेकिन ग़रीब किसान इसे समझने के लिए राज़ी नहीं था। वह कई बार अमीर किसानों से इस विषय में चर्चा कर कह चुका था कि अगर वे उसे भी कुएँ से थोड़ा पानी ले लेने दें, तो वह भी अच्छी फसल उगा पाएगा।
जब अमीर किसानों ने देखा कि पानी की कमी के कारण ग़रीब किसान की फसल ख़राब हो रही है, तो उन्होंने उस पर दया करते हुए, अपने समय में से थोड़ा समय कम करके ग़रीब किसान को पानी देने का निर्णय लिया और उसे बुलाकर कहा कि अब वह प्रतिदिन रात्रि को तीन घंटे सिंचाई के लिए उनके कुएँ से पानी ले सकता है। इतना ही नहीं, ग़रीब किसान अपने खेत पर अच्छे से कार्य कर पाए, इसलिए अमीर किसानों ने उसे बैलों का एक जोड़ा भी दिया।
निर्धन तो जैसे इस मौक़े की तलाश में था। वह सोच रहा था कि इन किसानों ने उसे बहुत सताया है, इसलिए आज मैं इस मौक़े को इस तरह भुनाऊँगा कि इन अमीर किसानों की अक़्ल ठिकाने आ जाएगी। इस नकारात्मक विचार को आधार बना उस निर्धन किसान ने बैलों को जोतकर कुएँ से पूरा पानी निकालने की योजना बनाई और उसे अमली जामा पहनाने के लिए जुट गया। आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि खेत में पानी देने का एक नियम है, पानी देने से पहले पानी की टंकी और पानी के लिए बनाई गई नाली को जाँच लेना चाहिये। लेकिन आज तो उस निर्धन किसान के मन में खोट था इसलिए उसने नाली और टंकी को चेक करने के स्थान पर जल्दी-जल्दी करके पानी निकालना शुरू कर दिया। उसे पता ही नहीं था कि पानी सही जगह जा रहा है या नहीं।
जल्द से जल्द कुआँ ख़ाली करने की कोशिश में वह बार-बार बैलों पर डंडे बरसा रहा था और डंडे की चोट से बैल भाग रहे थे।ऐसा ही करते-करते कब उसका समय याने तीन घंटे ख़त्म हो गए उसे पता ही नहीं चला। उसे तो इस बात का एहसास उस वक़्त हुआ जब तीन घंटे बाद दूसरा किसान वहाँ पहुँच गया, जिसकी अब पानी निकालने की बारी थी। आते ही उसने अपने बैल खोले और उन्हें लेकर अपने खेत की ओर चला गया। वही दूसरी ओर निर्धन किसान छाती पीट-पीटकर रो रहा था क्योंकि कुएँ का पानी ख़त्म करने के चक्कर में उसने टंकी और नाली की तो चिंता ही नहीं करी थी। इसी वजह से कुएँ से निकाला गया सारा पानी पास ही के एक गड्ढे में चला गया और वह किसान भी हड़बड़ाहट में उसी गड्ढे में गिर गया और अंदर से बचाने के लिए चिल्लाने लगा। उसकी आवाज़ सुनकर पड़ोसी किसान दौड़ कर आया और उसे गड्ढे में से बाहर निकलने में मदद करी और अंत में बोला, ‘परोपकार के बदले खराब नीयत रखने की यही सजा होती है। तुम कुँआ खाली करना चाहते थे, जिससे कुएँ के असली मालिकों को पानी ना मिले। लेकिन हुआ उसका उल्टा ही, तुम्हारा निकाला हुआ सारा पानी एक गड्ढे में चला गया, जहाँ से यह रिसकर वापस कुँए में चला जाएगा। लेकिन अब तुम्हें कोई भी, कभी भी, फिर से मदद नहीं करेगा। याने न तो अपने बैल देगा और न ही कुएँ से पानी लेने देगा।
दोस्तों असल में यह किसान की नहीं अपितु इंसानों की कहानी है। तृष्णा के चक्कर में उलझकर हम ईश्वर द्वारा जीने के लिए दिये गये समय को बर्बाद कर देते हैं। अगर आप इसे थोड़ा सा विस्तार से समझना चाहें तो जीवन रूपी खेत को सत्कर्मों से सींचने के लिए हमें इंद्रियाँ रूपी बैल मिले हैं। लेकिन तृष्णा में फँसा हमारा मन मूल उद्देश्य से भटककर बेईमानी पर उतर आता है और इसी वजह से दूसरों के परोपकार को भी समझ नहीं पाता है और इन्हीं सब चक्करों में जीवन में भटक जाता है। इसीलिए कहा जाता है दोस्तों, ‘जिसकी नियत में खोट होगी, ईश्वर की उसी पर चोट होगी!’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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