Nirmal Bhatnagar
पद नहीं, व्यक्ति है महत्वपूर्ण…
May 24, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हाल ही में मुझे दिल्ली की एक संस्था द्वारा व्यवसायिक कंसलटेंसी के कार्य के लिए आमंत्रित किया गया। दिल्ली स्थित संस्था के कार्यालय में पहुँचने पर मुझे सारा कार्य बड़ा मशीनी लग रहा था। ऐसा मुख्यतः 2 कारणों से होता है, पहला, संस्था ने कार्य करने का सिस्टम ना सिर्फ़ डेवलप कर लिया है बल्कि वे अपने कर्मचारियों को भी इसमें पारंगत बना चुकी है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो पूरी संस्था एस॰ओ॰पी॰ अर्थात् स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के आधार पर कार्य कर रही है। दूसरी वजह, विशेष स्थितियों में कर्मचारियों पर दबाव बना के ‘सब-कुछ ठीक है’, दिखाने का प्रयास करना।’
वैसे, उपरोक्त आधार पर मैं इस संस्था के कार्य करने के तरीके को पहचान पाता उससे पूर्व ही मुझे संस्था प्रमुख द्वारा बुला लिया गया। शुरुआती बातचीत में जब मैंने उनसे ऑपरेटिंग चैलेंजेस के विषय में पूछा तो वे बोले सर, ‘हमारे यहाँ नौकरी छोड़ कर जाने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है। दूसरी मुख्य समस्या, अच्छे लोग याने नए कर्मचारी नहीं मिलना है।’
इस छोटी सी बातचीत के दौरान मैंने महसूस किया कि वे आने वाले हर कर्मचारी से व्यंग्यपूर्ण याने सार्कास्टिक तरीके से बातचीत कर रहे थे। जब मुझे व्यक्तिगत तौर पर कर्मचारियों से मिलने का मौक़ा मिला तब मुझे पता पड़ा कि उक्त अधिकारी कभी भी किसी कर्मचारी से सीधे तरीके से बात नहीं करते हैं। वे हमेशा किसी ना किसी वजह से कर्मचारियों को डाँटते या टोकते रहते हैं और अगर किसी भी कारण से डाँटना या टोकना सम्भव नहीं है, तो वे व्यंग्यपूर्ण बातें याने सार्कास्टिक कमेंट करते हैं। इतना ही नहीं कई कर्मचारियों ने तो मुझे यहाँ तक बताया कि वे कई बार कर्मचारी के परिवार तक के लिए भी कटु शब्द कह जाते हैं।
मैं तुरंत समझ गया कि उस संस्था की समस्या कर्मचारी नहीं, वह अधिकारी थे। असल में दोस्तों, स्वभाव से ही किसी व्यक्ति का प्रभाव झलकता है। आपके शब्द, आपके शारीरिक हाव-भाव, आपका नज़रिया आपका व्यक्तित्व बनाता है और आपके व्यक्तित्व की अपनी एक भाषा होती है जो बिना शब्दों के भी लोगों के अंतर्मन को छू जाती है। इसीलिए कहते हैं, ‘जिस तरह कस्तूरी की पहचान उसकी सुगंध होती है, जिसे बिना बताये या दिखाये भी महसूस किया जा सकता है, ठीक उसी तरह व्यक्तित्व की भी अपनी एक सुगंध होती है जो अपने आप ही दूसरों तक पहुँच जाती है।
दोस्तों याद रखिएगा, किसी विशेष पद पर बैठना आपको बड़ा नहीं बनाता है। बड़े तो आप तब बनते हैं जब आप लोगों के दिलों पर राज करते हैं। अन्यथा रिटायर होने के बाद भी पूर्व अधिकारियों का रुतबा क़ायम रहता। इसीलिए कहते हैं, ‘सिंहासन पर बैठना नहीं अपितु किसी के हृदय में स्थान बनाना, जीवन की वास्तविक उपलब्धि है।’ जी हाँ दोस्तों, लोगों के दिल में स्थान बनाना वाक़ई एक विराट व्यक्तित्व का प्रधान गुण है। तो आइए दोस्तों, जीवन में कुछ बड़ा करने या बड़ा बनने के लिए सबसे पहले अपने व्यक्तित्व को बड़ा बनाते हैं और पद की नहीं इंसान की इज्जत करना शुरू करते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर