Dec 04, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों हाल ही में एक विद्यालय के बच्चों के साथ करियर को लेकर चर्चा करने का मौक़ा मिला। इस चर्चा के दौरान मेरी आशा के अनुरूप लगभग ८७% विद्यार्थियों ने पैसों या कमाई को प्राथमिकता देते हुए करियर चुना था। चर्चा के दौरान जब मैंने चरित्र, पैसे याने धन संपदा, शांति याने पीस आदि को भी प्राथमिकता से करियर का आधार बनाने के विषय में बताया और इस विषय पर सामूहिक चर्चा करने के लिए कहा तो मुझे यह देख और सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उनमें से एक बच्चे की भी प्राथमिकता जीवन मूल्य आधारित नहीं थी। मेरे लिये यह एक चिंताजनक स्थिति थी। मशीनी शिक्षा और पेरेंटिंग ने उनकी नज़र में पैसों को इंसानी मूलभूत ज़रूरतों या यूँ कहूँ इंसानों से ज़्यादा बड़ा बना दिया था। इसका एक महत्वपूर्ण कारण बच्चों बल्कि शायद बड़ों द्वारा भी सफलता के सही अर्थ को समझ ना पाना है। याद रखियेगा आपकी सफलता कभी भी दूसरों की अपेक्षा या सोच नहीं हो सकती है। इसी तरह पैसे वाला बनना, किसी विशेष पद जैसे आईएएस, आईपीएस, जज, डॉक्टर, इंजीनियर या पावरफुल इंसान बनना, भी सफलता का सही पैमाना नहीं है। सफलता का पैमाना यह भी नहीं है कि कितने लोग आपको सलाम ठोकते हैं या आपसे आपका ऑटोग्राफ माँगते हैं। सच्ची सफलता तो सही मायने में आपकी आंतरिक ख़ुशी पर निर्भर करती है। याने आप अंदर से कितने खुश हैं, यही सच्ची सफलता है।
अगर मेरी बात से सहमत ना हों तो अपने आस-पास मौजूद लोगों को जरा ध्यान से देख लीजियेगा। बड़ी आसानी से आपको कई बड़ी नौकरी वाले या अन्य शक्तिशाली पदों पर कार्य करने वाले ढेरों लोग मिल जाएँगे, जो अंदर ही अंदर घुटते हुए जीवन जी रहे हैं। ठीक इसी तरह आपको अपने आस-पास ऐसे भी लोग मिल जाएँगे जो मज़दूरी या छोटी-मोटी नौकरी या खेती करके भी बड़े मज़े से ख़ुशी-ख़ुशी आनंदपूर्वक जीवन जी रहे हैं। सही कहा ना मैंने साथियों? वैसे भी अगर आप देखेंगे तो पाएँगे कि जीवन का असली और अंतिम उद्देश्य खुश रहना ही है, बाक़ी सब बेकार की बातें हैं।
मेरी बातें थोड़ी आपको उपदेश जैसी या प्रैक्टिकल नहीं लग रही होंगी। हो सकता है आप सब मन ही मन सोच रहे होंगे कि यह सब बातें किताबों या सुनने में ही अच्छी लगती है। तो चलिए एक प्रैक्टिकल करके देख लेते हैं। मान लीजिए आप मुझसे विपरीत सोच रखते हैं और अब मैं आपसे प्रश्न करता हूँ कि भविष्य को लेकर आपकी क्या योजना है? तो संभव है आपका जवाब होगा, ‘मैं यूपीएससी की तैयारी कर रहा हूँ?’ मैं आपसे इसकी वजह पूछूँगा तो आप कहेंगे, ‘मैं एक अच्छी नौकरी याने आईएएस या आईपीएस बनने का प्रयास कर रहा हूँ।’ अब मैं आपसे अगला प्रश्न करूँगा कि ‘आईएएस बनने से आपको क्या प्राप्त होगा?’ तो आप कहेंगे, ‘इससे मुझे पैसे, पॉवर और सुरक्षा मिलेगी।’ अब मैं फिर आपसे पूछूँगा, ‘पैसे, पॉवर और सुरक्षा से क्या होगा?’ तो आप कहेंगे, ‘मुझे सुकून मिलेगा?’ अब मैं आपसे पूछूँगा कि ‘सुकून से क्या होगा?’ तो आप कहेंगे, ‘मैं मज़े से अपना जीवन जियूँगा, और क्या?’
इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ पद, पैसा, पॉवर और प्रतिष्ठा, सभी से हम अंत में मज़े पाने का प्रयास करते हैं। जी हाँ दोस्तों, आप कोई भी कैरियर या पद अथवा कोई सी भी स्थिति ले लीजिए अंत में आप पाएँगे कि आपने सब कुछ मज़े पाने याने खुश रहने के लिए ही किया है। इसलिए हमें हर पल, हर हाल में याद रखना चाहिये कि जीवन का अंतिम मक़सद खुश रहना है। इसलिए दोस्तों हमें बच्चों को सिखाना होगा कि अपनी सफलता को दूसरों के हिसाब से परिभाषित मत करो, उधार के सपनों को अपना लक्ष्य मत बनाओ। आपको शिक्षा, अपनी ख़ुशी का ज़रिया सही तरीक़े से पहचानने के लिये दी जा रही है। जिससे आप अपनी सफलता को ख़ुद परिभाषित कर सकें। यह दूसरों की ओर देख कर तुलना करने से नहीं होगा। इसके लिए तो आपको अपने अंदर झांकना होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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