June 10, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, व्यवसायिक जीवन में प्रमोशन की आस या चाह रखना और ना मिलने पर निराश होना स्वाभाविक है। लेकिन इससे ज़्यादा बुरा होता है, एक बार प्रमोट हो जाने के बाद वापस से डिमोट होना। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह स्वयं को नए रोल या ज़िम्मेदारियों के लिए तैयार ना कर पाना और व्यवहारिक चूक करना है। अपनी बात को मैं आपको हाल ही में घटी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।
श्रीमती एक्स एक विद्यालय में वरिष्ठ शिक्षिका के पद पर कार्यरत थी। उनकी वरिष्ठता, अनुभव और लगन को देखते हुए पिछले शैक्षणिक सत्र के अंत में संस्था प्रमुख ने उन्हें कोर्डिनेटर के पद पर पदोन्नत कर दिया, जिसका कार्य अन्य शिक्षक-शिक्षिकाओं के कार्य को मॉनिटर करना और उन्हें बेहतर करने के लिए प्रेरित करना रहता है। शुरुआती कुछ दिनों तक तो सब सही चला लेकिन जल्द ही उनकी कई सारी शिकायतें आने लगी जिसके कारण संस्था प्रमुख द्वारा उनसे यह कार्य वापस ले लिया गया। इस माह जब नए सत्र की शुरुआत के पहले शिक्षकों को दी जाने वाली ट्रेनिंग के लिए मेरा उस विद्यालय में जाना हुआ, तो उक्त शिक्षिका बड़ी परेशान अवस्था में, नौकरी छोड़ने का निर्णय लिए, मुझसे आकर मिली। उनकी पूरी बात सुनने के बाद मैंने उन्हें एक कहानी सुनाई जो इस प्रकार थी-
बात कई साल पुरानी है जंगल में रहने वाले एक संत जब भी हवन आदि किया करते थे एक चूहा उनके समीप आकर बैठ ज़ाया करता था। उसे देख ऐसा लगता था मानो उसे भी हवन, पूजा-पाठ में मज़ा आ रहा है और वह भी ईश्वर उपासना में लीन है। लेकिन कुत्ते-बिल्ली और चील-कौवे आदि को देखते ही वह चूहा एकदम सहम कर बैठ जाता था। संत को चूहे का ऐसा करना बहुत अखरता था। एक दिन संत ने उस चूहे की इस समस्या को हमेशा के लिए खत्म करने का निर्णय लिया और उसे अपनी शक्तियों से शेर बना दिया।
चूहा, शेर बन बहुत खुश था। अब वह वहाँ किसी से भी नहीं डरता था और आश्रम और जंगल में ना सिर्फ़ आराम से यहाँ-वहाँ घुमा करता था बल्कि जब देखो तब कुत्ते, बिल्ली या अन्य सभी जानवरों को डराया करता था। कुछ ही दिनों में उससे जंगल के सारे जानवर डरने लगे और जब कभी वह कहीं दिख जाता तो उसे प्रणाम करने लगे। याने अब आश्रम ही नहीं पूरे जंगल में उसकी जय-जयकार होने लगी। शुरुआती दिनों में तो यह सब देख संत सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह ज़ाया करते थे। लेकिन जब बीतते समय के साथ चूहे बने शेर का आतंक बढ़ने लगा तो संत ने उसे समझाते हुए, ऐसा करने से रोकने का प्रयास करा। दूसरे जानवरों के समक्ष संत द्वारा उसके साथ चूहे समान व्यवहार करना उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा। उसने सोचा अगर संत ने ऐसा बार-बार किया तो अन्य जानवरों के सामने उसकी इमेज ख़राब हो जाएगी। इसलिए उसने संत को हमेशा के लिए खत्म करने का निर्णय लिया और उनपर झपट्टा मारने की तैयारी करने लगा।
इतना कहते ही मैं कहानी को बीच में रोककर कुछ पलों के लिए शांत हो गया और फिर उस शिक्षिका से बोला, ‘आपको क्या लगता है, इस स्थिति में संत को शेर के साथ क्या करना चाहिए?’ वे शिक्षिका तपाक से बोली, ‘उसे वापस से चूहा बना देना चाहिए।’ उनका जवाब सुनते ही मैं मुस्कुराया और बोला जहाँ तक मुझे लगता है संस्था प्रमुख ने संत समान ही निर्णय लिया है।
असल में दोस्तों, उस शिक्षिका ने सिर्फ़ अपने व्यवहार के कारण ही कोर्डिनेटर का पद खोया था। यह एक ऐसी गलती है जो ज़्यादातर लोग प्रमोशन मिलने पर किया करते हैं। इसकी मुख्य वजह प्रमोशन का ‘सिर पर चढ़ जाना है’ याने यह लोग प्रमोशन मिलते ही खुद को दूसरों से बेहतर मानने लगते हैं और अपने साथी सहकर्मियों पर निरंकुश हो जाते हैं। याद रखिएगा दोस्तों, प्रमोशन आपको सिर्फ़ पद का नाम देता है। आपका असली प्रमोशन तो उस दिन होता है जिस दिन आप अपने सहकर्मियों के दिल में नए पद के अनुसार जगह बना लेते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Comentários