Dec 16, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, मेरा मानना है कि हमारा जीवन हमारी सोच, हमारे विचारों का प्रतिबिम्ब होता है। अर्थात् आप जीवन जिएँगे या काटेंगे, खुश रहेंगे या तनावग्रस्त, आपका जीवन उत्कृष्ट रहेगा या निकृष्ट, आप संतुष्ट रहेंगे या असंतुष्ट, सब कुछ आपके विचारों पर निर्भर करता है। जी हाँ साथियों, हमारे विचारों या हमारी सोच में वाक़ई इतनी शक्ति है, विचार आपको बना भी सकते हैं, तो आपको मिटा भी सकते हैं।
इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि जब आप किसी एक विचार के साथ लम्बा वक्त बिताते हैं, तो वह विचार आपकी सोच बन जाता है। फिर हमारी सोच हमारे निर्णय को प्रभावित कर अंततः कर्म का रूप ले लेती है अर्थात् एक्शन बन जाती है और यही एक्शन अर्थात् हमारे कर्म हमें अंतिम परिणाम देते हैं। इसी बात को दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, जिस बात पर हमार मन प्रतिक्रिया देता है, वह बात हमारी पसंद या दृढ़ इच्छा के कारण हमारे अवचेतन मन में जगह बना लेती है और अंत में उसी के अनुसार हमारी बाहरी दुनिया का निर्माण होने लगता है। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था, ‘हमारी सोच, हमारे विचारों का प्रतिबिम्ब होती है।’
अगर विचार सही होगा तो सोच सही होगी और सोच सही होगी, तो कर्म सही होगा। कर्म सही होगा तो अंतिम परिणाम सही होगा। इसीलिए कहा जाता है, ‘इस संसार में कोई भी वस्तु इतनी दुर्लभ नहीं है जिसे पाया ना जा सके।’ बस इसके लिए आपको अपने पूरे सिस्टम अर्थात् सोच से लेकर कर्म तक, सबको एक दिशा में प्रोग्राम करना होगा। उसके बाद आप पाएँगे कि पूरी कायनात आपके लक्ष्य को हक़ीक़त में बदलने के लिए आपकी मदद कर रही है।
लेकिन हाँ दोस्तों, इसका अर्थ यह क़तई नहीं है कि हमें सारी दुनिया पर क़ब्ज़ा करना या उसे जीतना है। आजकल आप देखेंगे कि ज़्यादातर लोग बहुत ही संकीर्ण मानसिकता के साथ जीते हैं। जिसके कारण वे ‘मैं’ और ‘मेरा’ तक ही सीमित रह जाते हैं। यह स्थिति दुनिया की चकाचौंध में भटकाव से अधिक कुछ भी नहीं है। अर्थात् इस संकीर्ण सोच का मुख्य कारण सही दृष्टिकोण का अभाव है। अगर आप शांत और खुश रहते हुए पूर्ण मौज के साथ दुनिया को बेहतर बनाते हुए, जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं या अपने लक्ष्यों को हक़ीक़त में बदलना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने हृदय को परमात्मा जितना विशाल बनाओ। यह आपको ‘मैं’ और ‘मेरा’ अर्थात् आत्म-स्थिति को भूलकर प्रकृति के साथ तारतम्य स्थापित करने में मदद करेगा।
इसके लिए आप बस इतना याद रखिएगा यह सृष्टि परमपिता परमेश्वर की है और हम उसी के अंश हैं। इसका अर्थ हुआ इस सृष्टि पर हमारा अधिकार है, इसलिए सबको प्यार कीजिये, यहाँ सब लोग आपके अपने हैं। सबको अपना समझने, सबको पवित्र दृष्टि से देखने, प्रत्येक जीव से प्रेम और आत्मीयता भरा व्यवहार करने से ही आप उदार दृष्टिकोण विकसित कर पाएँगे। उदार दृष्टिकोण के बिना मज़े और मौज के साथ जीना सम्भव नहीं है। तात्कालिक स्थिति के आधार पर छोटी सोच या संकीर्ण व्यवहार या मानसिकता रख शांत भाव के साथ जीना कल्पना में भी सम्भव नहीं है। जब आप सबको अपने समान ही परमात्मा का अंश मान समान भाव के साथ देखेंगे तो किसी के साथ ग़लत व्यवहार या धृष्टता नहीं कर पाएँगे। ऐसा करना आपके विचारों को शुद्ध करेगा, शुद्ध विचार आपको सकारात्मक और सही सोच विकसित करने में मदद करेंगे। जो अंततः आपके कर्मों को सही दिशा देकर जीवन के सही और अंतिम लक्ष्य को पाने में मदद करेगी। याद रखिएगा साथियों, आत्म-ज्ञान ही वर्तमान संसार का स्वरूप बदल सकता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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