July 28, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, छोटी सी बात पर खफा हो जाना, अपनों से बात करना बंद कर देना, मुँह फुलाकर ख़ुद को कमरे में बंद कर लेना, खाना न खाना, चीजें तोड़ना-फोड़ना, सामान फेंकना, दोस्ती तोड़ देना, ज़िद करना, चिल्लाना, ग़ुस्सा करना, आदि आजकल के बच्चों की सामान्य प्रतिक्रियाएँ हैं। जी हाँ दोस्तों, आप ज़रा इनकी बातें मानना या इन्हें किसी बात के लिए टोकना तो शुरू कर दीजिए, आपको उपरोक्त में से कोई ना कोई सी प्रतिक्रिया अवश्य देखने को मिल जाएगी।
उक्त बात मुझे हाल ही में एक बच्चे की काउन्सलिंग के दौरान उस वक़्त याद आई, जब उस बच्चे के पिता ने आँखों में आँसू लिए यह बताया कि आजकल उनका बेटा उनसे सिर्फ़ इस बात के लिए नाराज़ चल रहा है कि उन्होंने उसे पढ़ने के लिए विदेश नहीं भेजा। जब मैंने उन्हें शांत करने की कोशिश करी तो वे बोले, ‘सर, मेरी हैसियत इतनी नहीं है कि इसे अमेरिका भेज पाऊँ, वह भी उस वक़्त जब माँ का एक गंभीर बीमारी के लिए इलाज चल रहा है और इसकी बड़ी बहन की शादी सर पर है। इतना ही नहीं जब मैंने इसे इसके पिछले परीक्षा परिणामों को याद दिलाया तो यह उल्टा उसके बिगड़ने का दोष भी मुझे ही देने लगा और मुझसे बात करना बंद कर दिया। आज हम दोनों को बात करे २०-२५ दिन हो गये होंगे।’
वैसे दोस्तों, मुझे इस बच्चे का क़िस्सा सुन कर बिलकुल भी हैरानी नहीं हुई क्योंकि आजकल यह घर-घर की कहानी है। आज की युवा पीढ़ी को पसंद नहीं कि कोई उन्हें किसी भी बात के लिए रोक-टोक करे अथवा कोई उन्हें ये करो, ये मत करो का ज्ञान दे। आज की युवा पीढ़ी स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी याने पूर्ण मान कर चलती है, जो कभी गलती कर ही नहीं सकता है। जबकि इसके ठीक विपरीत एक समय ये भी था जब प्रत्येक कार्य से पूर्व अपने बड़ों की सलाह ली जाती थी। लेकिन अब समय बहुत बदल चुका है। हमारा जीवन उस फुलवारी के समान है, जहाँ कोई रोक-टोक करने वाला न हो, तो लोग समय-समय पर फूलों को तोड़कर उसके सौंदर्य को ही नष्ट कर देते हैं।
हाँ मैं इस बात से भी पूर्ण सहमत हूँ कि उनका याने युवा पीढ़ी का अपना जीवन है और उनको पूरा अधिकार है कि वे अपने जीवन को अपने हिसाब से जियें। लेकिन इसका यह अर्थ क़तई नहीं है कि वे अपने से बड़ों का सम्मान ना करें। हमें उन्हें समय रहते सिखाना होगा कि अब वह वक़्त गया जब ‘ठोकर खाकर ही ठाकुर बना जा सकता था’, अब तो आपको दूसरों को ठोकर खाता हुआ देखकर सीखना और संभलना होगा, तभी आप तेज़ी से भागती इस दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चल पायेंगे। इसके लिए हमें युवाओं को अपने से बड़ों की सलाह का सदैव सम्मान करना सिखाना होगा क्योंकि उनके पास अगर ज्ञान है, तो उन्हें रोकने और टोकने वाले बड़ों के पास उनके अपने अनुभव है और अनुभव सदैव ज्ञान से श्रेष्ठ होता है। दूसरी बात जो हमें उन्हें सिखाना होगी कि अगर उनके पास कोई रोक-टोक करने वाला है, तो उन्हें दुखी नहीं बल्कि खुश होकर, प्रभु का धन्यवाद करना चाहिये क्योंकि उनके पास कोई है जो उन्हें ग़लतियाँ करने से बचाकर, उनको जल्द सफल बनाने का प्रयास कर रहा है।
वैसे दोस्तों, यह बात आज की युवा पीढ़ी को सिखाने का मेरी नज़र में तो एक ही तरीक़ा है। ज्ञान देने के स्थान पर अपने से बड़ों की इज्जत करके उन्हें दिखा दीजिए। उन्हें इस बात का एहसास करवा दीजिए कि वही फूल ज्यादा देर खिला रहता है जिसकी रक्षा में कोई माली तत्पर रहता है। अर्थात् परिवार के बड़े उनके दुश्मन नहीं अपितु वे माली हैं जो उनकी रक्षा करने के लिए हर पल सजग और तत्पर हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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