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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

परिश्रम रूपी कर्म के बिना फल नहीं मिलता

Mar 10, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, यह दुनिया वैसी ही है, जैसी आप इसे देखना चाहते हैं। वैसे अकेली दुनिया ही क्यों इसमें घटने वाली हर घटना, फिर चाहे वह धर्म, आस्था, समर्पण आदि किसी से भी क्यों ना जुड़ी हुई हो। उक्त विचार मुझे उस वक़्त आये, जब मेरे एक परिचित ने मुझे रामायण का एक प्रसंग सुनते देख कहा, ‘निर्मल भाई, आप भी इन कहानीकारों की बातों में आ गये। अरे भाई यह सब सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसे कमाने का इनका तरीक़ा है। इनकी चिकनी-चुपड़ी बातों को सच मत मान लेना।’


चूँकि वे सज्जन काफ़ी पढ़े-लिखे और समझदार थे, इसलिए उनकी बात को सीधी तरह नकारने के स्थान पर मैंने उनसे इसे विस्तार में बताने के लिए कहा तो वे बोले, ‘देखो मैं सुप्रीम पॉवर याने ईश्वर, अल्लाह, जीसस आदि किसी पर उँगली नहीं उठा रहा हूँ। जितना तुम्हारा उन पर विश्वास होगा, मेरा भी उनपर उतना ही विश्वास है। लेकिन अगर तुम इन कथाकारों की बातों को ध्यान से सुनोगे तो पाओगे कि इनके द्वारा किया गया चित्रण सृष्टि के मूल नियमों के विरुद्ध है।’


सुनने में तो उन सज्जन की बातें ठीक लग रही थी, लेकिन गेल से नीचे नहीं उतर रही थी। इसलिए मैंने उनसे इसे गहराई याने विस्तार से समझाने का कहा। एक पल शांत रहने के बाद वे बोले, ‘तुम ख़ुद सोचा क्या हमारे कथाकारों ने कर्म के मूल्य को कम नहीं कर दिया है? उदाहरण के लिए भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण के जीवन से हमें कर्म का महत्व सिखाते हुए जीवन जीने का तरीक़ा और सामाजिक सुव्यवस्था सिखाने का प्रयास किया है। लेकिन अगर आप इनकी कथाओं को ध्यान से सुनेंगे तो आप पायेंगे कि उसमें हमें बताया गया है कि इन कथाओं को सुनने और पढ़ने मात्र से ही हमें पुण्य फल की प्राप्ति होती है। हमारे सारे पाप ख़त्म हो जाते हैं और हमारी समस्त इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है। सुनने और पढ़ने मात्र से इतने बड़े फल प्राप्ति की आशा मात्र रखने से ही इंसान भगवान के चरित्र याने सदाचार को अपनाने के लिए आवश्यक बातों और उत्कृष्ट चिंतन की उपेक्षा करने लगता है।


अगर आप गहराई से सोचेंगे तो पाएँगे कि राम और कृष्ण भगवान के चरित्र का मूल उद्देश्य धर्म की स्थापना और अधर्म को ख़त्म करना था। इसके लिए उन्होंने उत्कृष्ट चिंतन और आदर्श कर्तव्य को अपनाने का रास्ता दिखाया था। लेकिन आज के युग में हम आदर्श चिंतन और आदर्श कर्तव्य को छोड़कर सिर्फ़ पढ़कर और सुनकर रामराज्य की कल्पना कर रहे हैं, जो बिलकुल भी संभव नहीं है।’


दोस्तों, वे सज्जन तो अपनी बात कहकर चले गये। लेकिन कर्म का महत्व समझाने वाली उनकी सलाह मेरे कानों में गूंज रही थी। मैं सोच रहा था कि उत्कृष्ट और आदर्श चिंतन के साथ आदर्श कर्तव्य पथ पर चलते हुए कर्म किए बिना, फल की आशा रखना बेमानी है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो कथाकारों की बातों को पढ़-सुन कर जीवन बदलने की आस रखना ख़ुद को धोखा देना है। शायद इसीलिए कहा गया है-


‘कर्म प्रधान विश्व करि राखा। जो जस करई हो तस फल चाखा।।

सकल पदारथ है जग माहीं। कर्महीन नर पावत नाहीं।।’


अर्थात् यह संसार कर्म प्रधान है। यहाँ आप जैसा कर्म करते हैं, वैसा ही फल प्राप्त करते हैं। इस दुनिया में धन-धान्य आदि सभी कुछ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। लेकिन कर्म हीन व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नहीं होता; क्योंकि इस संसार में कुछ पाने के लिए पहले परिश्रम रूपी कर्म करना पड़ता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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