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परिस्थितियाँ कभी अच्छी या बुरी नहीं होती…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Sep 9, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, परिस्थितियाँ कभी अच्छी या बुरी या फिर अलग-अलग लोगों के लिए अलग नहीं होती है, वह तो बस इंसान का नज़रिया; उसकी सोच उसे लोगों के लिए अलग बनाता है। जी हाँ दोस्तों, यक़ीन मानियेगा ईश्वर हमें जीवन में जिस भी परिस्थिति का सामना कराता है, उसका मुख्य उद्देश्य हमारे जीवन को सही दिशा देना होता है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात कई साल पुरानी है, एक बार राजा ने अपने मित्र देश के राजाओं, वरिष्ठ सभासदों, गुरुओं और राजकुमारों के लिए एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम के अंतिम चरण को ज़्यादा रोचक बनाने के लिए राजा ने राज्य की सबसे कुशल नर्तकी को भी प्रस्तुति देने के लिए बुलाया। राजा ने अपने गुरु के बैठने के स्थान पर कुछ स्वर्ण मुद्रायें भी रख दी जिससे वे किसी भी कलाकार को उसके अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत कर सकें।


तय समय पर शुरू हुआ यह सांस्कृतिक कार्यक्रम, बीतते समय के साथ इतना अधिक रोचक होता गया कि नर्तकी का नंबर रात्रि बारह बजे के लगभग आया और फिर उसका नृत्य पूरी रात चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त के समय में नर्तकी ने देखा कि तबला वादक ऊँघ रहा है। यह स्थिति थोड़ी विकट थी क्योंकि तबले वाले की ग़लत थाप पूरे कार्यक्रम को बिगाड़ सकती थी और राजा इससे नाराज़ होकर दंड भी दे सकता था। नर्तकी ने सोचा कि तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, इसलिए उसने तबले वाले को जगाने के लिए एक दोहा पढ़ा, ‘घणी गई थोड़ी रही, या में पल-पल जाये। एक पलक के कारणे, यूँ ना कलंक लगाये।’


दोहे को सुनते ही पूरी सभा में एकदम चैतन्य हो गई क्योंकि सभा में मौजूद हर शख़्स ने इस दोहे का अलग-अलग अर्थ निकाला। जैसे तबले वाले ने एकदम सतर्क होकर तबला बजाना शुरू कर दिया। गुरु जी ने दोहा पूर्ण होते ही सामने रखी सभी स्वर्ण मुद्राओं को नर्तकी को अर्पण कर दी। राजकुमारी ने अपना हीरे-जवाहरात जड़ा सबसे क़ीमती हार उस नर्तकी को इनाम स्वरूप दे दिया। राज्य के युवराज ने अपना मुकुट उस नर्तकी के चरणों में रख दिया। राजा यह सब देख बड़े अचंभित थे। अब वे सोच रहे थे कि इस दोहे में ऐसा क्या था जिसके कारण हर व्यक्ति अपनी मूल्यवान वस्तु इस नर्तकी को समर्पित कर रहे हैं। राजा तत्काल अपने सिंहासन से उठे और उस नर्तकी से बोले, ‘मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि एक साधारण सी नर्तकी होकर भी तुमने सब को लूट लिया।’


राजा के शब्द सुनते ही गुरु की आँखों से अश्रु बहने लगे, जिसे देख राजा और उलझन में पड़ गये। वे कुछ कहते उसके पहले ही गुरु बोले, ‘राजन, इस नर्तकी को साधारण या नीच समझने की भूल मत करना। यह तो बहुत पहुँची हुई हैं, इनके ज्ञान की गहराई को देख, मैंने इन्हें अपना गुरु मान लिया है। इनके कहे दोहे ने मेरी आँखें खोल दी है। इन्होंने मुझे आज एहसास कराया है कि सारी उम्र भक्ति कर प्रभु के चरणों में लगाने के बाद, जीवन के अंतिम प्रहर में, मैं यह नृत्य देख कर अपनी साधना नष्ट कर रहा हूँ। इतना कहकर गुरु उठे और अपना कमंडल उठाकर, नर्तकी के चरणों में नमन करते हुए जंगल की ओर चले गये।


उनके जाते ही राजा की लड़की बोली, ‘पिताजी मैं जवान हो गयी हूँ और कहीं ना कहीं महसूस कर रही हूँ कि आप मेरे विषय में आँख बंद किए बैठे हैं। आज मैं एक महावत के साथ भाग कर शादी कर, अपने जीवन को बर्बाद करने वाली थी। लेकिन नर्तकी के दोहे ने मुझे सद्बुद्धि दी कि जल्दबाज़ी मत कर आज नहीं तो कल तेरा विवाह हो जाएगा। ग़लत निर्णय लेकर क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर अड़ी हुई है। तभी युवराज बोले, ‘महाराज आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी आप राज मुझे नहीं सौंप रहे हैं इसलिए आज रात्रि को मैं कुछ सिपाहियों के साथ मिलकर आपका क़त्ल करने वाला था। लेकिन इस दोहे ने समझाया कि पगले! आज नहीं तो कल, यह राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है! थोड़ा धैर्य रख।


इन सारी बातों ने राजा के मन को वैराग्य से भर दिया। उसने तुरंत युवराज का राजतिलक किया और राजकुमारी को उस सभा में मौजूद राजकुमारों में से अपने लिए सुयोग्य वर चुनने के लिए कहा और अंत में राजकुमारी की शादी कराकर, राज्य युवराज को सौंपकर, सब कुछ त्याग, जंगल में गुरु की शरण में चला गया।


इस घटना ने नर्तकी को भी सोच में डाल दिया, उसने महसूस किया कि मेरे एक दोहे ने इतने लोगों को सुधार दिया, तो फिर मैं क्यों ना अपने जीवन को इससे सुधारूँ? विचार आते ही उसने भी इस तरह से नृत्य करने को हमेशा के लिए छोड़ा और प्रभु से जाने-अनजाने में किए पापों के लिए क्षमा माँगते हुए उनके सुमिरन में लग गई।


दोस्तों, अगर आप पूरी घटना को एक बार फिर अपने मन में दोहरायेंगे तो पायेंगे कि घटना और स्थिति सभी के लिए एक समान होने के बाद भी हर इंसान ने अपनी सोच, अपने नज़रिए से उसका आकलन किया और उस आधार पर निर्णय लेकर अपने जीवन को सकारात्मक रूप से आगे बढ़ाया। बस यही हम सभी को करना है। किसी भी घटना, स्थिति, परिस्थिति पर अटकने के स्थान पर ख़ुद से पूछे कि ‘इसमें मेरे लिये क्या अच्छा छुपा है’, और उस आधार पर निर्णय लेकर जीवन में आगे बढ़ें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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