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पहचानें अपने ‘ब्रेक’ को…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Mar 7, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



‘आप लोगों ने तो मेरा जीना ही दूभर कर दिया है। हर बात में रोकते-टोकते रहते हैं। कभी तो चैन से साँस ले लेने दिया करो।’ बहुत छोटी सी बात पर बच्चे के इस जवाब ने पिता को अंदर तक हिला के रख दिया था। वे सोच रहे थे कि जिस बच्चे के जीवन को बनाने के लिए उन्होंने अपने सपनों, अपनी जवानी का बलिदान दे दिया था, वही बच्चा आज उन्हें इस तरह के उल्हाने दे रहा है, वह भी उनके प्रिय दोस्त के सामने। ख़ैर, किसी तरह बनावटी हंसी के नीचे अपने दुख और परेशानी को छिपाते हुए बोले, ‘बच्चा है, समय के साथ सब सीख जाएगा।’


वैसे दोस्तों, यह सिर्फ़ मेरे दोस्त के घर की नहीं, अपितु घर-घर की कहानी है। बदलते युग, बदलती धारणायें, बदलते जीवन मूल्य, स्वतंत्रता या यूँ कहूँ उच्चश्रंखलता और उम्र या समय से पहले मिले एक्सपोज़र के कारण बच्चों में यह व्यवहार देखने को मिल रहा है और कहीं ना कहीं समय के स्थान पर संसाधन देने का हमारा व्यवहार इसके लिए ज़िम्मेदार है। आप स्वयं सोच कर देखियेगा संसाधन याने इंटरनेट, स्मार्ट टीवी, लैपटॉप, स्मार्ट मोबाईल, ओ.टी.टी. प्लेटफार्म, गाड़ी, महँगे से महँगे और अच्छे से अच्छे कपड़े, इंटरनेशनल स्कूल आदि ज़रूरी है या प्रतिदिन कुछ घंटे आपके। निश्चित तौर पर हमारे बच्चों के लिए हमारा समय ज़रूरी है।


ख़ैर! इसे यहीं छोड़िए क्योंकि जो समस्या आनी थी, अब वो आ चुकी है और अब हमें यह क्यों आई के स्थान पर इसे कैसे डील करें, पर चर्चा करना होगी। यही मैंने अपने मित्र के यहाँ करा। कुछ देर बाद जब मैंने मित्र के बेटे को थोड़ा सामान्य देखा तब उससे बातचीत शुरू करते हुए कहा, ‘बेटा, जब मैं आपके घर आ रहा था तब मैंने पोर्च में एक बहुत ही सुंदर बुलेट खड़ी हुई देखी थी। क्या तुम मुझे थोड़ा उसके बारे में बता सकते हो?’ बच्चा अपनी बाइक की तारीफ़ और पसंदीदा विषय के बारे में प्रश्न सुन मुझसे सीधा कनेक्ट हो गया और बोला, ‘अंकल, यह बुलेट का स्पेशल 500CC थंडरवर्ल्ड मॉडल है।’ उसका जवाब सुनते ही मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘फिर तो यह निश्चित तौर पर बहुत पॉवरफ़ुल होगी और आवश्यकता पड़ने पर इसे बहुत तेज चलाया जा सकता होगा?’ उस बच्चे ने तुरंत हाँ में सर हिला दिया। मैंने अगला प्रश्न पूछते हुए कहा, ‘मुझे उसके ब्रेक थोड़े डिफ़रेंट लगे…’ मैं बात पूरी करता उसके पहले ही वह युवा बोला, ‘जी अंकल, यह मॉडल डिस्क ब्रेक के साथ आता है।’ मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘बस मेरे एक अंतिम प्रश्न का उत्तर और दे दो। बुलेट ने इसमें डिस्क ब्रेक क्यों दिये हैं?’ बच्चा मुस्कुराता हुआ बोला, ‘सर, गाड़ी को रोकने के लिए।’ मैंने मुस्कुराते हुए उसे कहा, ‘मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूँ। मेरी नज़र में ब्रेक तुम्हें बुलेट की पूरी पॉवर का उपयोग करने; उसे गति देने की आज़ादी देने के लिए होते हैं। अगर सहमत नहीं हो तो बताओ, अगर तुम्हारी गाड़ी में से ब्रेक हटा दिये जाएँ तो क्या तुम उसे तेज चला पाओगे या उसकी पॉवर तुम्हारे किसी काम आएगी?’ युवा कुछ पलों के लिए एकदम शांत हो गया और फिर कुछ देर बाद बोला, ‘आप कह तो सही रहे हैं।’


उसका यह जवाब सुनते ही मैं थोड़ा गंभीर हो गया और बोला, ‘जिस तरह बुलेट के डिस्क ब्रेक तुम्हें गाड़ी तेज चलाने और उसकी पॉवर का उपयोग करने की आज़ादी देते हैं, ठीक वैसे ही हमारे जीवन के ब्रेक हमें जीवन का असली मज़ा लेने के लिए तैयार करते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो हमारे माता-पिता, शिक्षक, मित्र और शुभचिंतक लोगों की रोक-टोक, ढेर सारे प्रश्न असल में वे ब्रेक हैं जो जीवन में हमें फिसलने, दिशा खोने या दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का शिकार होने से बचाते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि हमें उन्हें अपना विरोधी या दुश्मन मानने के स्थान पर अपने हितैषी या उत्प्रेरक के रूप में देखना चाहिए। ये वही लोग होते हैं, जो तुम्हें जोखिम लेने में सक्षम बनाते हैं; तुम्हें अपनी ख़ुद की रक्षा करना सिखाते हैं।’


मुझे नहीं पता दोस्तों, उस युवा को मेरी बात कितनी समझ आई होगी। लेकिन यक़ीन मानियेगा अगर आप यह बात युवाओं और बच्चों को समय के साथ सिखा दें तो वे निश्चित तौर पर बड़ों की रोक-टोक या ग़लतियाँ निकालने की आदत को सकारात्मक रूप से देखने लगेंगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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