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पहचाने ख़ुद की सही क़ीमत…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Aug 20, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, यह बात तो सही है कि इंसान का जीवन अमूल्य होता है। लेकिन इसके बाद भी कई लोग इस अमूल्य चीज को भी यूँ ही बर्बाद कर देते हैं। ऐसा ही कुछ अनुभव मुझे हाल ही में एक समूह के लिए कार्य करते वक़्त हुआ। असल में मुझे इस कंपनी के प्रबंधन द्वारा यह जानने के लिए बुलाया था कि प्रोडक्ट, सर्विस, कर्मचारी आदि सब अच्छा होने के बाद भी हम व्यवसाय क्यों नहीं बढ़ा पा रहे हैं। अर्थात् वे समझ नहीं पा रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों से कंपनी उन लक्ष्यों को क्यों हासिल नहीं कर पा रही है, जो उन्होंने पहले से तय किए थे।


प्रबंधन से उनकी अपेक्षाएँ सुनने के बाद मैंने समस्त सीनियर कर्मचारियों से मिलने; उनसे चर्चा करने का निर्णय लिया। सीनियर कर्मचारियों से चर्चा के दौरान मैंने पाया कि सभी कर्मचारी कंपनी की नीतियों से बहुत खुश हैं और इसी वजह से इस संस्था के साथ लंबे समय से कंपनी और उसके प्रबंधन से दिल से जुड़े हुए हैं। इस कारण से कर्मचारियों की नीयत याने उनके नज़रिए या उनकी नीतिगत प्रतिबद्धता पर प्रश्न उठाना कहीं से भी उचित नहीं था।


चरणबद्ध तरीक़े से एक-एक बिंदु पर विचार करने के बाद मुझे समझ आया कि कर्मचारियों को केंद्र में रखकर बनाई गई नीतियों और उन पर किए गए विश्वास के बाद भी व्यवसाय ना बढ़ने की वजह कर्मचारियों द्वारा ख़ुद की सही क़ीमत ना पहचान पाना था। इसी बात को मैं थोड़ा विस्तार से बताऊँ तो बारीकी से अध्ययन करने के बाद मुझे समझ आया था कि ज़्यादातर सीनियर कर्मचारी समय के साथ, ख़ुद की प्रतिबद्धता को सिद्ध कर समय-समय पर, वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन पाकर यहाँ तक पहुँचे हैं और यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते पूर्व में देखे गए उनके सभी सपने पूरे हो गये हैं और अपने जीवन से पूर्ण संतुष्टि का भाव होने के कारण अपनी क्षमताओं और संभावनाओं को पहचान ही नहीं पा रहे हैं।


समस्या समझ आते ही मैंने प्रबंधन की सहायता से कर्मचारियों को ‘जीवन की क़ीमत’ समझाने का निर्णय लिया और उनसे एक समूह के रूप में चर्चा करते हुए एक प्रश्न पूछा, ‘क्या आप में से कोई मुझे लोहे की आज की क़ीमत बता सकता है?’ तत्काल एक कर्मचारी बोला, ’28 से 30 रुपये प्रति किलोग्राम।’ मैंने मुस्कुराते हुए पूछा, ‘और सरिये की प्रति किलोग्राम क्या क़ीमत होगी है?’ एक सज्जन बोले, ’शायद 45 रू प्रति किलोग्राम।’ मैंने बात थोड़ी और उलझाते हुए कहा, ‘अगर हम इसी एक किलो सरिये से कीलें बना दें तो वह कितने रुपये में बिकेंगी।’ एक अन्य सज्जन बोले, ‘शायद 200-400 रुपये में। लेकिन मैं यह समझ नहीं पा रहा हूँ कि आप यह सब फ़ालतू के सवाल हमसे क्यों पूछ रहे हैं?’ मैंने मुस्कुराते हुए उन सज्जन के प्रश्न को नज़रंदाज़ करते हुए अपना अगला प्रश्न पूछा, ‘अगर उसी लोहे से घड़ी में लगने वाली स्प्रिंग या किसी अन्य मशीन का महत्वपूर्ण पार्ट बना दिया जाये तो उसकी क़ीमत क्या होगी?’ वे सज्जन थोड़ा झुँझलाते हुए बोले, ‘शायद कुछ हज़ार। लेकिन अब आप ज़रा मेरे सवाल का जवाब दे दीजिए।’


मैं उन्हें देखकर मुस्कुराया और बोला, ‘मैं आपके सवाल का जवाब देने के लिए ही यह प्रश्न पूछ रहा था। अगर आप मेरे प्रश्नों पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि हज़ारों रूपये में बिक सकने वाला लोहा अगर ख़ुद को नये रूप में ढलने से रोक ले तो वह 28 से 30 रुपये किलो में बिक जाता है। ऐसा ही कुछ मनुष्यों के साथ भी होता है। अगर वे छोटी उपलब्धियों में संतुष्ट होकर बैठ जायें और नये सपने देखना बंद कर दें, तो वे कभी भी उस मंज़िल तक नहीं पहुँच सकते हैं, जहाँ ईश्वर उन्हें पहुँचाना चाहता है। यह बात सही है कि आपने अपने जीवन में बहुत कुछ पाया है, लेकिन अभी और पाने की क्षमता आपके अंदर बची है। ज़रूरत बस इस बात की है कि आप नये सपने देखना शुरू करो और पूर्व की ही तरह उन्हें पाने के लिए ख़ुद के अंदर आग पैदा करो।’


जी हाँ दोस्तों, आज आप क्या हो, यह आपकी सही क़ीमत तय नहीं कर सकता। उसके लिए तो आपको यह पहचानना होगा कि आप अपने आप को क्या बना सकते हो। लेकिन अपनी वर्तमान स्थिति को देखकर ज़्यादातर इंसान ख़ुद को बेकार या क़िस्मत का मारा समझने लगते हैं। जबकि उनमें अथाह शक्ति और क्षमता होती है। मनुष्य का जीवन हमेशा संभावनाओं से भरा होता है। याद रखियेगा, हमारी ख़राब स्थिति, कभी भी हमारी क्षमता, शक्ति और समाज में इज्जत को कम नहीं करती है। मनुष्य के रूप में जन्म लेना ही यह तय कर देता है कि हम बहुत खास और महत्वपूर्ण हैं। इसलिए दोस्तों, ख़ुद पर विश्वास रखते हुए हर पल नये और बड़े सपने देखो, उसके अनुसार ख़ुद में सुधार करो और अपनी क्षमताओं को बढ़ाते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचो और ख़ुद की क़ीमत इतनी बढ़ा लो कि आप लोगों के लिए आदर्श बन जाओ।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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