Nov 7, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, व्यवसायिक कंसलटेंसी के अपने कार्य के दौरान मैंने अक्सर पाया है कि छोटी आकार की कम्पनियाँ अक्सर अपना मुनाफ़ा कम करके ही बाज़ार या प्रतिस्पर्धा में बनी रहती हैं। इसका मुख्य कारण उनका मानना होता है कि बाज़ार में अन्य कई लोग भी वैसा ही सामान और सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं, जैसा वे करते हैं। लेकिन दोस्तों, क्या यह उचित है? क्या वाक़ई बाज़ार में मौजूद सभी प्रतिस्पर्धियों की क्वालिटी, सर्विस, गुणवत्ता एक समान होती है? बिलकुल भी नहीं। मेरा तो मानना है अक्सर हम अपनी विशेषताओं को ना पहचान पाने के कारण अपनी क़ीमत कम आंकते हैं। उन्हें कई बार तो यह ही नहीं पता होता है कि उनके ज्ञान, अनुभव, विशेषज्ञता और उससे निर्मित उत्पाद या सेवाओं का वास्तव में क्या मूल्य है? इसी वजह से वे अपनी ऊर्जा, समय, कुशलता और ध्यान को कमाने के स्थान पर खर्चा बचाने में लगाने लगते हैं और अक्सर इन्हें खुद के ही व्यापार में नौकरी करते हुए देखा जा सकता है। इसी कारण इन्हें अक्सर तनाव और दबाव में देखा जा सकता है। जी हाँ साथियों, बात थोड़ी सी कड़वी ज़रूर है, मगर है एकदम सत्य। मैं ऐसे सभी उद्यमियों और व्यवसायियों से पूछना चाहूँगा कि क्या उन्होंने इन्हीं लक्ष्यों के साथ व्यवसाय करने का निर्णय लिया था? शायद नहीं! तो फिर कार्य करने अर्थात् व्यवसाय के दौरान चूक कहाँ हो गई? वैसे तो इस समस्या के कई कारण हो सकते हैं लेकिन मुझे लगता है उनमें से प्रमुख तीन कारण निम्न हैं-
पहला - खुद की योग्यता, विशेषता, ज्ञान, कौशल आदि को पहचाने बिना बाज़ार में उतरना
जी हाँ साथियों, अक्सर लोग दूसरों की व्यवसायिक सफलता को सफलता का अचूक सूत्र मान उस क्षेत्र में काम करना शुरू कर देते हैं। चूँकि उन्हें उस व्यवसाय की बारिकियाँ पता नहीं होती हैं तो वे कौशल और बाज़ार की आवश्यक जानकारी के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं और इसीलिए वे बाज़ार से बल्कि यह कहना ज़्यादा उचित होगा, जिसे देख कर व्यवसाय शुरू किया था उसके योग्य कर्मचारियों को तोड़ कर उनपर निर्भर होकर कार्य करते हैं, सफलता पाने का प्रयास करते हैं। याद रखिएगा, जब भी आपकी सफलता व्यवसायिक इंटेलिजेन्स के स्थान पर व्यक्तिगत योग्यता पर आधारित रहेगी, आपको तनाव और दबाव में ही रखेगी।
दूसरा - टर्न ओवर को ही सब-कुछ मानना
व्यवसायी दूसरी सबसे बड़ी गलती जो करते हैं वो विकास अर्थात् ग्रोथ, प्रगति अर्थात् प्रोग्रेस और सफलता अर्थात् सक्सेस को एक मानना होती है। विकास अर्थात् ग्रोथ का अर्थ टर्न ओवर में शून्य बढ़ाना होता है। जब भी आप अपने भौतिक संसाधनों में वृद्धि करते हैं आप विकास अर्थात् ग्रोथ करते हैं। जब यह भौतिक वृद्धि या व्यवसायिक टर्न ओवर में बड़े हुए शून्य नैतिक मानदंडों अर्थात् एथिक्स जिसमें हम नैतिकता, अनुशासन, ईमानदारी, नियम आदि को ले सकते हैं, पर आधारित होती है, तब हम इसे प्रगति अर्थात् प्रोग्रेस कहते हैं। जब यह व्यवसायिक प्रगति अर्थात् प्रोग्रेस इंसानियत, सदाचार, नैतिकता और आध्यात्मिकता के साथ होती है, तब इसे सफलता कहा जाता है। इसका अर्थ हुआ, अगर आप अपने व्यवसाय को नैतिकता, अनुशासन, ईमानदारी, नियम, इंसानियत, सदाचार और आध्यात्मिकता के साथ आगे बढ़ा रहे है तो ही आप सफलता की ओर अपने कदम बढ़ा रहे हैं।
तीसरा - सिस्टम के स्थान पर व्यक्तिगत योग्यता को प्राथमिकता देना
अक्सर आपने देखा होगा जैसे-जैसे लोगों का व्यवसाय बढ़ता जाता है, उनकी व्यस्तता भी बढ़ती जाती है। इसकी मुख्य वजह व्यक्तिगत योग्यता को सिस्टम से अधिक प्राथमिकता देना है। दोस्तों, अगर आप अपने व्यवसाय को वाक़ई बड़ा या बहुत बड़ा बनाने का विचार रखते हैं तो आपको सबसे पहले उसे स्वयं या किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित बनाने के स्थान पर सिस्टम पर आधारित बनाना होगा क्यूँकि जब आपका रोज़मर्रा का कार्य सिस्टम से पूरा होगा तभी आप अपने दिमाग़ या योग्यता का इस्तेमाल रचनात्मक तरीके से कर पाएँगे और व्यवसाय को नई ऊँचाइयों पर ले जा पाएँगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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