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पाने और इकट्ठा करने के लिए नहीं, देने के लिए जिएँ…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Mar 2, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, मेरा मानना है कि पैसों को लेकर हमारा समाज अक्सर ढेर सारी भ्रांतियों में जीता है। जैसे अगर कोई बच्चा पढ़ाई के समय पैसे कमाने के विषय में बात भी कर ले, तो उसे ग़लत ठहरा दिया जाता है। जबकि शिक्षा पूर्ण करने के बाद भी उसे इस विषय में महारथ हासिल करना ही है याने उसे पैसे के विषय में ना सिर्फ़ सीखना है, बल्कि उसे कमाना भी है। इसीलिए मेरा मानना है कि इस विषय को जितनी जल्दी बच्चों को सिखा दिया जाए, उतना ही अच्छा है।


इसी बात को दूसरे नज़रिए से कहूँ तो हमें उन्हें बताना है कि कमाना बुरा नहीं है, बुरा तो उसके मोह में पड़कर संग्रह करना है। क्योंकि धन को संग्रह करने वाला व्यक्ति ख़ुद को खर्च कर रहा होता है। अपनी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। इस दुनिया में दो प्रकार के पेड़-पौधे होते हैं। पहले वे जो अपने फलों को इस दुनिया को देना चाहते हैं जिससे लोग उसके स्वाद का मज़ा ले सकें; उससे अपनी सेहत बना सकें; अपनी भूख मिटा सकें। जैसे आम, अमरूद, केला, चीकू, सेब आदि। दूसरे वे जो अपने फलों को दुनिया की नज़रों से छिपाकर रखना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो उसे सहेज कर अपने पास ही रखना चाहते हैं। जैसे आलू, प्याज़, मूली, गाजर आदि।


अगर आप ग़ौर करेंगे तो पाएँगे कि जो पेड़-पौधे अपने आप फल दे देते हैं, उन वृक्षों या पेड़-पौधों को सभी खाद-पानी देकर सुरक्षित रखते हैं। ऐसे पेड़-पौधे या वृक्ष अच्छी देखभाल के कारण फिर से फल देने के लिए तैयार हो जाते हैं। किन्तु जो अपना फल छिपाकर रखते है, वे इस संसार द्वारा जड़ सहित खोद लिए जाते हैं। जिसके कारण उनका वजूद ही खत्म हो जाता हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो जिसने दिया, उसे सहेजा गया और जिसने छिपाया और इकट्ठा किया उसका फल छीन कर उसका वजूद ख़त्म कर दिया गया।


दोस्तों, यही इस प्रकृति या दुनिया का दस्तूर है। जो भी इंसान वस्तुएँ, धन आदि को इकट्ठा करता है, वह ख़ुद को उतना ही खोता जाता है क्योंकि इकट्ठा करने की प्रवृति, बाँटने की कला को भुला देती है। अर्थात् इंसान संग्रह करने की व्यवस्था जुटाने में लुटाने की कला भूल जाता है और जैसा हमने उपरोक्त उदाहरण में जाना और सीखा था कि लुटाने से ही जीवन में आगे बढ़ा जाता है और इसके ठीक विपरीत अगर आप जोड़ते चले जाते हैं, तो आपको खयाल में भी नहीं आता कि आप जीवन को खो रहे हैं।


यह सूत्र धन के समान ही विद्या, शक्ति, सेवा आदि पर भी समान रूप से लागू होता है। अर्थात् जो व्यक्ति धन के समान अपनी विद्या, शक्ति या अन्य संसाधनों का प्रयोग अपनी स्वयं की इच्छा से समाज के उत्थान या समाज सेवा के लिए करता है, उसका सभी ध्यान रखते हैं, और वह मान-सम्मान भी पाता है। इसी तरह जो व्यक्ति अपने धन, विद्या, शक्ति, संसाधन को स्वार्थवश छिपाकर रखते हैं और ज़रूरतमंदों की सहायता करने से बचते हैं यानी सेवा से मुँह मोड़ते हैं, वे जड़ सहित खोद लिए जाते हैं। अर्थात् इस जमाने द्वारा समय रहते ही भुला दिये जाते हैं।


दोस्तों, अगर आप वाक़ई अपने जीवन को उपयोगी या सार्थक बनाना जानते हैं तो प्रकृति के इस महत्वपूर्ण सूत्र या संदेश को पहले समझने का प्रयास करें, फिर उस पर सोच-विचार कर कार्य में परिणीत करें। याद रखियेगा, जीवन में कठिन परिस्थितियाँ आने पर हम पहले से अधिक मजबूत होकर निकलते हैं। इसलिए चुनौती चाहे जो भी हो, ख़ुद पर यकीन रखें और आगे बढ़ने का रास्ता खोजें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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