Sep 27, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, व्यवसायिक कन्सल्टेंसी के कार्य में एक समस्या जो मैंने लगभग हर संस्थान में पाई है, वह है टीम भावना की कमी। जी हाँ दोस्तों, टीम भावना की कमी अब एक ऐसी समस्या बन गई है जो ना सिर्फ़ संस्थानों में बल्कि घर के अंदर भी भावना रहित रिश्तों के रूप में दिखने लगी है। हाल ही में ऐसा ही एक अनुभव मुझे विद्यालय में शिक्षक प्रशिक्षण के दौरान हुआ। प्रशिक्षण के लिए जब मैं निर्धारित समय पर विद्यालय पहुँचा तो मैंने देखा कि वहाँ शिक्षक तो सभी मौजूद हैं, लेकिन ऑडियो-वीडियो सिस्टम नदारद है।
मैंने जब इस विषय में संस्था प्रमुख को अवगत कराया तो उन्होंने तत्काल अपने अधीनस्थ को भेजकर समस्या का निदान करवाने के लिए कहा। उक्त कर्मचारी मेरे साथ तत्काल ट्रेनिंग हॉल में आये और वहाँ मौजूद एक शिक्षक को लगभग आदेश देते हुए बोले , ‘सर, तत्काल सर की आवश्यकतानुसार अरेंजमेंट करवाइए।’ उनके इतना कहते ही अगले ५ मिनिट में सारी व्यवस्था हो गई। मैं यह देख हैरान था क्योंकि जब मैं पहली बार उस ट्रेनिंग हॉल में पहुँचा था तब भी वे शिक्षक वहीं मौजूद थे और बाक़ी सब को परेशान होता हुआ देख रहे थे। मैंने जब इस विषय में गहराई से पता करा तो मुझे पता चला कि इस कार्य के लिये ज़िम्मेदार व्यक्ति को अयोग्य सिद्ध करने के लिए उक्त सज्जन ने पहले यह कार्य नहीं करा था। हालाँकि यह वे पहले से ही जानते थे कि अंत मैं इस कार्य को उन्हें ही करना होगा।
मैंने अपने पहले से तय प्रोग्राम से अलग हटकर प्रशिक्षण की शुरुआत एक कहानी से करने का निर्णय लिया जो कि इस प्रकार थी। एक बार सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी ने देवता और असुरों की एक सभा आयोजित की । सभा में सामान्य चर्चा के दौरान अचानक ही असुरों के राजा इस बात पर अड़ गये कि वे देवताओं के मुक़ाबले ज़्यादा बेहतर हैं। ब्रह्म जी ने पहले तो असुरों के राजा की बातचीत को नज़रंदाज़ कर दिया, लेकिन जब ब्रह्मा जी को लगा कि असुरों के राजा अपनी सीमा पार कर रहे हैं तो उन्होंने बड़े आदर के साथ उनसे कहा, ‘राजन, अगर आप देवताओं के समान होते तो मुझे बहुत अधिक प्रसन्नता होती।’ ब्रह्मा जी के वचन सुनते ही वे लगभग नाराज़ होते हुए बोले, ‘अगर आपको हमारा इस तरह अपमान ही करना था तो आपने हमें बुलाया क्यूँ? शायद आपको नहीं पता है कि हम पहले से ही देवताओं से बहुत आगे हैं।’
असुरों के राजा को इस तरह अकड़ते हुए बात करता देख ब्रह्मा जी बोले, ‘राजन, अगर आप बुरा ना मानें तो मैं आप लोगों की एक परीक्षा लेना चाहता हूं?’ असुरों के राजा ने पूर्व की ही तरह अकड़ते हुए कहा, ‘हाँ-हाँ आप परीक्षा लेकर भी देख लीजिए।’ ब्रह्मा जी ने उसी पल अपने सेवकों को स्वादिष्ट लड्डुओं के थाल लाने के लिए कहा और साथ ही उन्होंने देवताओं और दानवों दोनों के हाथों को उँगली से लेकर कोहनी तक डंडे से बँधवा दिये, जिससे वे मुड़ ना सकें।
लड्डुओं के थाल आते ही ब्रह्मा जी बोले, ‘आज देवताओं और दानवों में से जो ज़्यादा लड्डू खाएगा वही विजेता होगा और आज से पूरी सृष्टि उसे ही श्रेष्ठ मानेगी।’ इतना कहकर उन्होंने थाल दानवों के सामने रखवा दिये। दानवों ने हाथ में लड्डू उठाकर हर तरह से खाने का प्रयास किया, लेकिन वे उसमें सफल नहीं हो पाये और अंत में पंगत से भूखे ही उठ गए।
इसके बाद ब्रह्म जी ने सभी देवताओं को बैठने का इशारा किया और फिर उनके सामने लड्डू के थाल रखवाये और उन्हें खाने के लिए कहा। ब्रह्म जी आज्ञा मिलते ही देवताओं ने ख़ुद को दो-दो लोगों की जोड़ी में बाँट लिया और फिर एक दूसरे को लड्डू खिलाने लगे। सभी दानव यह तमाशा देख रहे थे और एक दूसरे को कोसते हुए अपने हाल पर रो रहे थे। अंत में दानवों के राजा ने देवताओं के समक्ष अपनी हार स्वीकार कर ली। कहानी पूरी होते ही मैंने शिक्षकों के समूह की आँखों में आँखें डालते हुए कहा, ‘कुछ देर पहले आपका व्यवहार भी दानवों की ही तरह था। आप सभी अपनी-अपनी टीम बनाकर एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन इस दौरान आप सभी भूल गये थे कि ट्रेनिंग का देर से शुरू होना कहीं ना कहीं आप सभी को व्यक्तिगत तौर पर भी नुक़सान पहुँचा रहा था।
याद रखियेगा दोस्तों जब भी आप जीवन में दूसरों को नीचा दिखाने या व्यक्तिगत हितों को सर्वोपरि रखते हुए मूल्यों से हटकर कार्य करेंगे, तब-तब आप अपना ही नुक़सान करेंगे। एक बार विचार जरूर कीजियेगा दोस्तों…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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