Feb 16, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए साथियों आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। राम रोज़ की तरह आज भी सुबह-सुबह तालाब के किनारे दौड़ने गया। आज भी तालाब के किनारे का नज़ारा बिलकुल वैसा ही था, जैसा वह हर रोज़ देखा करता था। आज भी वही बूढ़ी महिला रोज़ाना की तरह तालाब के किनारे छोटे – छोटे कछुओं की पीठ को साफ़ कर रही थी। राम आज भी विस्मित होकर सोच रहा था कि यह बूढ़ी महिला कछुओं की पीठ क्यों साफ़ कर रही है?
कई दिनों से चल रहे इसी सिलसिले की वजह से एक दिन राम ने बूढ़ी महिला से इसका कारण पूछने का विचार किया। राम उस बूढ़ी महिला के पास गया और हाथ जोड़कर उनका अभिवादन करने के बाद बड़ी विनम्रता के साथ बोला, ‘माताजी, मैं आप को हर रोज यहाँ तालाब के किनारे कछुओं की पीठ को साफ़ करते हुआ देखता हूँ। पर आज तक समझ नहीं पाया हूँ कि आप रोज़ाना ऐसा क्यों करती हैं? मुझे तो इसका कोई लाभ समझ नहीं आता।’
बूढ़ी महिला बड़ी प्यार भरी मुस्कुराहट के साथ, राम की ओर देखते हुए बोली, ‘बेटा, इससे सिर्फ़ मुझे ही नहीं बल्कि कछुओं को भी फ़ायदा होता है। देखो; जब मैं इन कछुओं की पीठ साफ करती हूँ तो मुझे बड़ी शांति का अहसास होता है। मेरा अंतर्मन खुश हो जाता है। वहीं दूसरी ओर इससे कछुओं को भी लाभ पहुँचता है क्योंकि कछुओं की पीठ पर याने उनके कवच पर जब धूल, मिट्टी, कचरा आदि जम जाता है, तब कवच द्वारा गर्मी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है और इसी कारण कछुओं को तैरने में मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है। इतना ही नहीं अगर लंबे समय तक इनके कवच को साफ़ ना किया जाए, तो यह कमजोर हो जाता है। जिसके कारण इनकी ज़िंदगी मुश्किल में पड़ सकती है। शायद अब तुम समझ गए होगे कि मैं रोज़ यहाँ, याने तालाब पर इन कछुओं को साफ़ करने क्यों आती हूँ।’
बात पूरी होते ही बुजुर्ग महिला एक बार फिर मुस्कुराते हुए अपने काम में जुट गई। लेकिन राम अभी भी हैरान खड़ा था। ऐसा लग रहा था मानो वह अभी भी दुविधा में है। कुछ पलों की खामोशी के बाद राम ने बात आगे बढ़ाते हुए एक बार फिर बूढ़ी महिला से प्रश्न किया, ‘मैं मानता हूँ कि आप बहुत अच्छा काम कर रही हैं। लेकिन एक बात अभी भी मेरी समझ से परे है। इस तालाब के साथ-साथ पूरी दुनिया में हज़ारों-लाखों कछुए और होंगे; और यह भी संभव हैं कि उनकी हालत इनसे भी बुरी या बदतर हो सकती है, उनका क्या होगा? आप अकेले तो सभी कछुओं की पीठ साफ़ नहीं कर सकती? इसलिए मुझे लगता है, इन थोड़े से कछुओं की पीठ साफ़ कर देने से इस कछुओं की दुनिया में कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा।’
राम का सवाल सुनते ही बूढ़ी महिला ज़ोर से हंसी और बोली, ‘महत्वपूर्ण यह नहीं है कि मेरे ऐसा करने से कछुओं की दुनिया में कितना बदलाव आयेगा, महत्वपूर्ण तो यह है कि हमारे इस छोटे से प्रयास से किसी एक कछुए की दुनिया पूरी तरह बदल जाएगी।’
वाह क्या बेहतरीन सोच है दोस्तों, उस बुजुर्ग महिला की। हम अकेले तो पूरी दुनिया कभी बदल नहीं सकते। लेकिन यह बात सिर्फ़ तार्किक ही नहीं बल्कि व्यवहारिक तौर पर भी सही है कि अगर ठान लिया जाये तो हम अपने जीवन में निश्चित तौर पर कुछ लोगों की दुनिया तो बेहतर बना ही सकते हैं। तो आईए साथियों, कुछ लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के लिए प्रतिदिन कुछ ना कुछ करने का प्रयास करते हैं; इसे अपनी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Comments