Nirmal Bhatnagar
पैसे से ज़्यादा ज़रूरी है पैसे का ज्ञान होना…
Nov 16, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, पैसे होना और पैसे का ज्ञान होना दो बिलकुल अलग-अलग बातें हैं। मेरी नज़र में तो यही वो कारण है जो किसी को भिखारी से सेठ तो किसी को सेठ से भिखारी बना देता है। जी हाँ दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत मैं ऐसी ही एक कहानी से करने जा रहा हूँ जो पैसों के विषय में आपकी सोच पूरी तरह बदल देगी। कहानी शुरू करने से पहले मैं आपको बता दूँ की यह कहानी या क़िस्सा मेरा लिखा हुआ नहीं है और ना ही मैं इसके लेखक को जानता हूँ। लेकिन उसके बाद भी लेखक की इजाज़त के बिना इसे आपसे साझा कर रहा हूँ क्योंकि इस कहानी की सीख है ही इतनी महत्वपूर्ण। तो चलिए शुरू करते हैं-
बात कई साल पहले की है गाँव में रहने वाला ग़रीब मोहन रोज़ बाज़ार से सब्ज़ियाँ ख़रीद कर उसे घर-घर बेचा करता था और उससे होने वाली कमाई से अपना और अपने परिवार का पेट पाला करता था। मोहन का व्यापार करने का तरीक़ा बड़ा साधारण सा था। वह रोज़ 50 रू की सब्ज़ियाँ ख़रीद कर उन्हें 100 रू में बेच दिया करता था और इस 100 रू में से 50 रू अगले दिन के लिए बचाकर 50 रू में अपना घर चलाया करता था। कई वर्ष उसने अपने परिवार का गुज़ारा इसी तरह चलाया और अपने इकलौते बच्चे सोहन को पढ़ा-लिखा कर बड़ा कर दिया और धीरे-धीरे उसे अपना व्यापार करने का तरीक़ा सीखा दिया।
एक दिन मोहन ने अपने बेटे सोहन को अपने पास बुलाया और उससे कहा, ‘बेटा अब तुम व्यापार करना सीख चुके हो इसलिए इस व्यापार को अब तुम सम्भालो। मैं अब संन्यास लेना चाहता हूँ। व्यापार के दौरान तुम बस एक बात ध्यान रखना, जो काम मैं करता आ रहा था वही तुम्हें भी करते जाना है। याने 50 की सब्ज़ियाँ लाना और उन्हें 100 में बेच देना। उसके बाद सबसे पहले सब्ज़ियाँ ख़रीदने के लिए पहले 50 रू निकाल लेना। परिवार का खर्चा हमेशा मुनाफ़े याने प्रॉफिट के पैसे से चलाना। इसके बाद भी जीवन में कभी कोई बड़ी मुसीबत आये तो मेरे पास आ जाना।
मोहन के संन्यास लेने के बाद सोहन इसी सूत्र पर काम करता रहा और उसकी ज़िंदगी बढ़िया गुज़रती रही। एक दिन सोहन की पत्नी ने सोहन से शाम को मिठाई लाने के लिए कहा। उस दिन सोहन ने सोचा आज में घर खर्च के लिए 50 रू के स्थान पर 55 रू निकाल लेता हूँ और इस अतिरिक्त 5 रू से पत्नी के लिये मिठाई ले जाता हूँ। उस दिन सोहन ने ऐसा ही करा और अब उसके पास अगले दिन सब्ज़ी ख़रीदने के लिए 45 रू ही बचे। अगले दिन सोहन 45 की सब्ज़ियाँ लाया और उन्हें 90 रू में बाज़ार में बेच आया। इस 90 में से उसने 50 रू घर खर्च के लिए निकाले और 40 रू अगले दिन के लिए बचाये। अगले दिन सोहन 40 रू की सब्ज़ी लाया और उसे 80 रू में बेच आया। इस 80 में से 50 का घर का खर्चा निकालने के बाद उसके पास अगले दिन व्यापार करने के लिए 30 रू ही बचे, जो काफ़ी कम थे। इस 30 रू को देखकर सोहन बड़ा चिंतित था, वह सोच रहा था कि इस 30रू से सब्ज़ी लाकर मैं सिर्फ़ 60 रू का व्यापार कर पाऊँगा जिसमें से घर खर्च के 50 रू निकालने के बाद मेरे पास मात्र 10 रू ही बचेंगे और फिर मेरे लिये उससे व्यापार करना और कमाकर घर खर्च चलाना बड़ा ही मुश्किल हो जाएगा। मैं तो पत्नी के लिये 5 रू की मिठाई लाकर फँस ही गया। इस 5 रू ने मेरी ज़िंदगी बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ी कर दी है। मैंने तो कभी सोचा ही नहीं था कि 5 रू की मिठाई इतनी महँगी पड़ जाएगी।’
काफ़ी देर तक जब उसे इस परेशानी का हल नहीं समझ आया तो उसने पिता की बातों को याद कर उनसे सलाह लेने का निर्णय लिया और उनके पास पहुँच गया। वहाँ उसने पिता को पूरी परेशानी एक ही साँस में सुना दी और उनके समक्ष हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। बेटे की बात सुन मोहन पहले नाराज़ हुआ फिर उसको बोला अब लौट कर घर जा और घर में सबको बोलना कि कल हम सब मिल कर लक्ष्मी माता का व्रत रखेंगे, जिससे लक्ष्मी जी की कृपा होगी। सोहन ने ऐसा ही किया। अगले दिन सोहन 30 की सब्ज़ियाँ लाया और उसे उसने 60 रू में बेच दिया। चूँकि उस दिन घर पर सबका व्रत था इसलिए उसके कुछ भी पैसे खर्च नहीं हुए। इसलिए अगले दिन वो 60 रू की सब्ज़ियाँ लाया और उन्हें 120रू में बेच आया। फिर इस 120 में से 50 रू उसने घर खर्च के निकाले और अगले दिन के लिए 70 रुपये बचा लिये। अगले दिन वह 70 की सब्ज़ियाँ लाया और उनें 140 में बेच आया। अब घर का खर्च 50 रू निकालने के बाद सोहन के पास 90 रुपये बचे थे। इस अतिरिक्त पैसे से अब सोहन मिठाई भी ला सकता था और बेहतर ज़िंदगी भी जी सकता था। पिता की एक छोटी सी सलाह ने उसकी ज़िंदगी बदल दी थी।
दोस्तों, असल ज़िंदगी में हर कोई मोहन और सोहन है, हम लोग गाड़ी, घर और मौज-मज़े की ज़िंदगी में ज़रूरत के पैसे खर्च कर देते हैं। जिसके कारण ज़िंदगी वहीं ठहर जाती है और आप लोन के जाल में उलझकर रह जाते हैं। इसके स्थान पर अगर हम कुछ समय के लिए अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण कर लें तो आगे की ज़िंदगी बेहतर हो सकती है। वास्तव में अपनी इच्छाओं को मारना ही व्रत है जो आपके मनचाहे सपनों को पूर्ण कर सकता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com