Nov 19, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आइए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, एक कबूतर और कबूतरी का जोड़ा एक पेड़ पर बैठ कर आपस में चर्चा कर रहा था। तभी उन्हें काफ़ी दूर से एक आदमी आता हुआ दिखा। उसे देखते ही कबूतरी के मन में कुछ शंका हुई और उसने तत्क्षण कबूतर से कहा, ‘मुझे यह इंसान शिकारी लगता है, चलो हम जल्दी से उड़ जाते है। अन्यथा यह हमें मार डालेगा।’ कबूतरी की बात पर कबूतर हँसते हुए बोला, ‘कैसी नादानी वाली बात कर रही हो। गौर से देखो उसे कितना समझदार, नेक और सज्जन इंसान लग रहा है। उसके चेहरे से तो शराफ़त टपक रही है, यह क्या मारेगा हमें।’
कबूतर के तर्कों ने कबूतरी को निरुत्तर कर दिया था। अब वह एकदम निश्चित हो चुपचाप बैठी हुई थी। कुछ देर में वह आदमी जैसे ही उस पेड़ के क़रीब पहुंचा, उसने अपने कपड़ों में से छिपाया हुआ तीर-कमान निकाला और झट से कबूतर का शिकार कर लिया। बेचारे कबूतर के प्राण पखेरू उसी क्षण उड़ गए। असहाय कबूतरी ने किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई और शाम को रोते-बिलखते राजमहल पहुंची और राजा को पूरा किस्सा कह सुनाया। राजा जो की बड़ा ही दयालु इंसान था, उसने खोजबीन कर उस शिकारी को जल्द ही ढूँढ लिया और फिर अपने सिपाहियों को उसे राज दरबार में पेश करने का आदेश दिया।
राज दरबार में राजा के तेवर को देखते ही, शिकारी ने डर के कारण अपना जुर्म कुबूल कर लिया। राजा ने कबूतरी को अपने पास बुलाया और उसे ही शिकारी को कबूतर की हत्या की सजा सुनाने का अधिकार देते हुए कहा, ‘तुम्हारा गुनहगार तुम्हारे सामने है और उसने अपना जुर्म भी कबूल लिया है। अब तुम इसे जो भी सजा देना चाहो, दे सकती हो। तुम्हारी सुनाई सजा पर तत्काल अमल किया जाएगा।’ कबूतरी ने शिकारी की ओर देखते हुए बड़े दुखी मन से कहा, ‘हे राजन, मेरा जीवन साथी तो अब इस दुनिया से चला गया और अब वह कभी भी लौटकर नहीं आएगा। इसलिए इसे दी गई कोई भी सजा मेरा दुख, मेरी परेशानी दूर नहीं कर पाएगी। मेरा तो मानना है कि जब हम किसी को जीवन दे नही सकते तो हमें किसी का जीवन लेने का अधिकार भी नहीं है। इसलिए मेरे विचार से इस शिकारी को बस इतनी ही सजा दी जानी चाहिए कि जब वह शिकार करने जाये, तब शिकारी के भेष में ही जाये। अर्थात् इस शिकारी को शिकारी का ही लिबास पहनकर घूमना चाहिए, जिससे किसी के साथ कोई धोखा ना हो सके।
दोस्तों, उक्त कहानी मुझे पिछले कुछ दिनों में मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटनाओं को पढ़ कर याद आई। जिसमें इंसानों की खाल में मौजूद भेड़ियों ने भोले भाले बच्चों, सीधे-साधे युवाओं का विश्वास तोड़ा था। उन घटनाओं को पढ़ते वक्त मेरे मन में एक ही विचार चल रहा था कि कहीं ना कहीं समाज के तौर पर हम अपने बच्चों और युवाओं को ना तो सही मूल्य सिखा पा रहे हैं और ना ही उन्हें यह समझा पा रहे हैं कि शराफ़त और ईमानदारी का लिबास ओढ़कर धोखे से घिनौने कर्म करने वाले सबसे बड़े नीच होते हैं और यही लोग समाज के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक भी होते हैं।
यह बात बिल्कुल सही है कि हमें अपने जीवन को ऐसे लोगों से बदला लेने की आग में बर्बाद नहीं करना है। बल्कि उन्हें पूरे मन से माफ कर जीवन में आगे बढ़ना है। इसलिए नहीं कि हम कोई संत हैं, बल्कि इसलिए ताकि हम अपने जीवन को शांति से जी सकें। लेकिन इससे समस्या ख़त्म या कम नहीं होगी, उसके लिए हमें आधुनिक शिक्षा को और अधिक जीवन मूल्य और इंसानियत पर आधारित बनाना पड़ेगा और साथ ही बच्चों को सही उम्र से यह भी सिखाना होगा कि पैसा जीवन के लिए जरूरी है, लेकिन पैसे वाला होना ही सब कुछ नहीं है। एक बार विचार करियेगा…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Comments