प्याले में जो होगा, वही छलकेगा…
- Nirmal Bhatnagar
- May 4, 2024
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May 4, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों मेरा मानना है कि आपकी प्रतिक्रियाएँ आपके जीवन मूल्य, आपके संस्कार, आपकी शिक्षा और आपके लालन-पालन का प्रतिबिंब होती है। सुनने में आपको मेरी बात थोड़ी अटपटी लग सकती है, लेकिन मेरा जीवन अनुभव तो यही कहता है। वैसे भी कहा जाता है कि ‘प्याले में जो होगा, वही छलकेगा।’ ठीक इसी आधार पर इंसान के अंदर जो होगा, वह वैसी ही प्रतिक्रिया देगा। इसीलिए दोस्तों मैं हमेशा कहता हूँ कि ७ वर्ष की उम्र तक के बच्चों को किताबी शिक्षा के स्थान पर संस्कार और जीवन मूल्य सिखाने पर ध्यान देना चाहिए। अपनी बात को मैं आपको खेल के मैदान पर घटी एक घटना के माध्यम से समझाने का प्रयत्न करता हूँ।
बात कुछ वर्ष पूर्व की है, दौड़ की एक प्रतियोगिता में केन्या के सुप्रसिद्ध धावक अबेल मुताई भाग ले रहे थे। चूँकि वे इस दौड़ प्रतियोगिता में अन्य सभी प्रतियोगियों से काफ़ी आगे चल रहे थे, इसलिए उनकी जीत पक्की मानी जा रही थी। अंतिम राउंड दौड़ते वक़्त अबेल मुताई, इस दौड़ को जीतकर, स्वर्ण पदक जीतने ही वाले थे कि कुछ ग़लतफ़हमी के कारण अंतिम रेखा से एक मीटर पूर्व ही रुक गए। उनके पीछे स्पेन के इव्हान फ़र्नाडिस दौड़ रहे थे। वे अबेल मुताई के द्वारा की गई चूक को दूर से ही भाँप गये और जोड़-ज़ोर से चिल्ला कर अबेल को दौड़ पूरी करने के लिए कहने लगे। लेकिन स्पेनिश भाषा नहीं समझने के कारण अबेल अपनी जगह से हिले ही नहीं। कुछ पलों में अबेल के पास पहुँचने पर इव्हान ने अबेल को पीछे से जोड़ का धक्का दिया और अंतिम रेखा के पार पहुँचा दिया। इस धक्के ने अबेल को इस दौड़ का स्वर्ण पदक विजेता और इव्हान को चाँदी के पदक याने दौड़ का उपविजेता बना दिया।
प्रतियोगिता के बाद पत्रकारों ने इव्हान से पूछा, ‘तुम्हारे पास स्वर्ण पदक विजेता बनने का मौक़ा था। तुमने उसे क्यों गँवा दिया?’ इव्हान ने मुस्कुराते हुए कहा बचपन से मैंने एक ऐसा समाज या मानवजाति बनाने का सपना देखा है जो एक दूसरे की मदद करते हुए आगे बढ़े, उनकी भूलों का फ़ायदा उठाकर नहीं और हाँ यह याद रखियेगा कि मैंने प्रथम स्थान गँवाया नहीं है…’
इव्हान के जवाब से पत्रकार दुविधा में पड़ गया और बोला, ‘लेकिन तुम्हारे धक्के से ही तो केन्यन धावक अबेल प्रथम आया है?’ इव्हान मुस्कुराता हुआ बोला, ‘नहीं! आज का दिन; आज की प्रतियोगिता उसी की थी। वही प्रथम स्थान का हक़दार था।’ पत्रकार ने एक बार फिर अपनी कही बात पर ज़ोर डालते हुए दोहराया, ‘लेकिन तुम आज स्पष्ट तौर पर स्वर्ण पदक जीत सकते थे?’ इव्हान उसी मुस्कुराहट के साथ बोला, ‘उस जीत का क्या अर्थ होता? क्या मुझे, मेरी जीत को या मेरे पदक को सम्मान मिलता? क्या मैं अपनी माँ से आँख मिला पाता? शायद बिलकुल भी नहीं। मेरे लिये जीत से ज़्यादा अपने आत्मसम्मान और संस्कारों को और समाज के लिए देखे गये सपने को बचाना ज़रूरी था। मेरे लिये यह भी महत्वपूर्ण था कि इस जीत के विषय में मेरी माँ मुझसे क्या कहती।’
इतना कहकर इव्हान कुछ पलों के लिए चुप हुए फिर पूर्ण गंभीरता के साथ बोले, ‘याद रखियेगा, संस्कार, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी, दूसरी से तीसरी और तीसरी से चौथी पीढ़ी तक आगे जाते रहते हैं। अर्थात् आज की पीढ़ी आने वाली पीढ़ी का निर्माण करती है। अगर मैं दूसरे की गलती का लाभ उठा कर जीत गया होता, तो सोचो मैंने अगली पीढ़ी को क्या दिया होता? दूसरों की दुर्बलता या अज्ञान का फायदा न उठाते हुए उनको मदद करने की सीख मेरी मां ने मुझे दी है और मैं उसी का पालन करते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ रहा हूँ।’
बात ही नहीं दोस्तों, इव्हान का व्यवहार हमें जीवन का एक महत्वपूर्ण सूत्र सिखाता है, ‘किसी की दुर्बलता, कमजोरी या गलती का फ़ायदा उठाकर विजेता बनने से बेहतर, ख़ुद की पात्रता बढ़ाना है और इसके लिए हमें इव्हान की माँ की ही तरह बचपन में ही बच्चों को सही बात सिखाना होगी यानी सही संस्कार देना होंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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