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प्रतिक्रिया देने से पहले सोचें, मर्तबान किसने हिलाया है…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • May 6
  • 3 min read

May 6, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, इस सृष्टि में इंसानों की ही तरह प्रकृति के अन्य जीव भी सहअस्तित्व की धारणा पर विश्वास करते हुए आपस में शांति से अपना जीवन निर्वहन करते नजर आते हैं। लेकिन अगर आप बारीकी से इस दुनिया पर नजर डालेंगे तो पायेंगे कि आजकल समाज में आत्मीयता के स्थान पर बैर बढ़ता नजर आ रहा है। पूरी दुनिया कहीं ना कहीं, किसी ना किसी वजह से बंटती नजर आ रही है। जिसके कारण दुनिया में शांति और सहअस्तित्व की धारणा की जगह टकराव बढ़ता नजर आ रहा है, जो कहीं ना कहीं मानव सभ्यता के लिए अच्छा नहीं है।


अगर आप शांतिप्रिय दुनिया में रहना चाहते हैं तो इस टकराव की असली वजह को जानना आवश्यक हो जाता है। चलिए आज हम एक उदाहरण या एक प्रयोग के माध्यम से इस ज्वलंत समस्या का समाधान तलाशने का प्रयास करते हैं। एक शीशे के मर्तबान में अगर आप सौ लाल और सौ काली चींटियों को बंद कर रख दें, तो आप पायेंगे कि सभी चींटियाँ उस मर्तबान में बड़ी शांति के साथ, आराम से रह लेती हैं। लेकिन अगर उस मर्तबान को जोर से हिला दिया जाये तो दोनों चींटियाँ एक दूसरे पर हमला कर, मारना शुरू कर देती हैं। लाल चींटी सोचती है कि काली चींटी मेरी दुश्मन है, उसकी वजह से ही मेरी दुनिया में यह भूचाल आया है और काली चींटी सोचती है कि लाल चींटी मेरी दुश्मन है और सारी परेशानी की जड़ वही है।


अब अगर मैं आपसे यह पूछूँ कि समस्या की जड़ क्या है या यूँ कहूँ शांति को ध्वस्त करने का असली ज़िम्मेदार कौन है? किसकी वजह से यह आपसी दुश्मनी शुरू हुई? तो आप निश्चित तौर पर कहेंगे, “वे हाथ जिन्होंने मर्तबान को हिलाया था।” सही कहा ना मैंने?


दोस्तों, यह कहानी केवल चींटियों तक सीमित नहीं है। यह आज की हमारी सामाजिक स्थिति का भी गहरा प्रतिबिंब है। आज समाज में अक्सर हम जिन लोगों से लड़ते हैं, असल में वे हमारे असली दुश्मन होते ही नहीं हैं। यह सब तो असली मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए विभाजन की नीति का हिस्सा होता है। जी हाँ दोस्तों, समाज में हमें लगातार एक-दूसरे से लड़वाने की कोशिश की जाती है। कभी पुरुष बनाम महिला के नाम पर, तो कभी अमीर बनाम गरीब, या फिर धर्म बनाम विज्ञान, अथवा वामपंथ बनाम दक्षिणपंथ। अर्थात् अपने फायदे के लिए हमें जाति, धर्म, विचारधारा आदि सभी मुद्दों पर लड़ाया जाता है। कहीं ना कहीं दोस्तों, हम भूल जाते हैं कि शायद हम जिनसे लड़ रहे हैं, वे भी किसी के द्वारा “हिलाए गए मर्तबान” के हिस्से हैं।


दोस्तों, अगर आपका लक्ष्य शांति के साथ जीवन जीना है तो सबसे पहले यह सोचना बंद करें कि हमारी राय ही अंतिम है, और जो हमारे जैसे नहीं सोचते, वे हमारे विरोधी हैं। जब भी आप समाज में अचानक ही विभाजन महसूस करें अर्थात् लोगों को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ भड़कता हुआ देखें तो उस अलगाव का हिस्सा बनने से पहले एक सवाल ख़ुद से पूछें, “कौन है जो शांति के मर्तबान को हिला रहा है याने यह सब करवा रहा है? कहीं हम अनजाने में किसी बड़े खेल का मोहरा तो नहीं बन रहे हैं? या फिर मीडिया, राजनीति, अफवाहें और सोशल मीडिया कहीं हमारी भावनाओं के साथ खेल तो नहीं रहे?”


याद रखियेगा दोस्तों, असली शांति दूरियाँ पैदा करने से नहीं अपितु आपसी प्रेम, संवाद और समझ से आती है। अगर आप वाकई शांति चाहते हैं तो समाज में प्रेम, संवाद और आपसी समझ को प्राथमिकता देना शुरू कीजिए क्योंकि समाज तभी मजबूत बनता है जब हम मतभेदों के बावजूद एक-दूसरे की बात सुनें और समझें। यही समझ आपकी सोच को इतना मजबूत बनाएगी कि कोई भी हाथ, कभी भी, हमारे मर्तबान को हिला न पायेगा।


याद रखियेगा दोस्तों, चेतना ही सुरक्षा है और चेतना बढ़ाने के लिए हमें यह समझने की ज़रूरत है कि असली युद्ध अक्सर दिखाए गए दुश्मन के खिलाफ नहीं होता, बल्कि उस अदृश्य शक्ति के खिलाफ होता है जो हमें एक-दूसरे से लड़वाकर लाभ उठाती है। इसलिए अगली बार जब आप खुद को किसी बहस, गुस्से या विभाजन के माहौल में पाएं तो प्रतिक्रिया देने के स्थान पर रुकें और सोचें, “क्या वाकई यही मेरा दुश्मन है?” या फिर “किसी ने मर्तबान हिलाया है।”


दोस्तों, अगर यह लेख आपको पसंद आए तो इसे दूसरों से भी ज़रूर साझा करें ताकि अगली बार कोई हमारे मर्तबान को हिलाये उसके पहले ही हम उसे पहचान लें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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