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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

प्रभावी कम्युनिकेशन से करें प्रभावी पेरेंटिंग…

Jan 9, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, तेज़ी से बदलते इस युग में सकारात्मक पेरेंटिंग के लिए सकारात्मक और प्रभावी कम्युनिकेशन याने संचार की कला आना अति आवश्यक हो गया है। प्रभावी सकारात्मक संचार याने कम्युनिकेशन माता-पिता और बच्चों याने परिवार के बीच सकारात्मक भावनात्मक माहौल तैयार करता है और साथ ही आपसी रिश्ते को मजबूत बनाता है। अच्छा कम्युनिकेशन याने संचार आपसी विश्वास, समझ और सम्मान को बढ़ाता है, जिससे स्वस्थ संबंधों के लिए एक मजबूत नींव तैयार होती है।


संचार के विषय में सबसे महत्वपूर्ण चीज विचारों की स्पष्टता और ईमानदारी होती है। माता-पिता को अपने विचारों और भावनाओं को खुलकर व्यक्त करना चाहिए और साथ ही अपने बच्चों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। मान लीजिए आपको बच्चों को उनकी कोई कमी बताना है, तब उन्हें नीचा दिखाने या उनपर आरोप लगाने के स्थान पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करें। जैसे ‘जब तुम अपना होमवर्क गंभीरता से नहीं लेते हो तो मुझे चिंता होती है।’ यह दृष्टिकोण बच्चों को शब्दों के पीछे के आपके प्यार और आपकी भावनाओं को समझने में मदद करता है। आइये, आज हम ऐसी ही चार प्रमुख संचार नीतियों को सीखेंगे जो हमें सक्रिय सुनने के महत्व और पारिवारिक संघर्षों को शांतिपूर्ण तरीक़े से हल करना सिखाएगी।


1) उम्र के आधार पर कम्यूनिकेट करना

उम्र के आधार पर कम्यूनिकेट करना यकीनन एक प्रभावी रणनीति है। बच्चे की उम्र और समझ के स्तर के अनुरूप चर्चा करने से आपसी कम्युनिकेशन में सहभागिता और समझ बढ़ सकती है। उदाहरण के लिए, पाँच साल के बच्चे से बात करते समय, सरल भाषा का उपयोग करें, जैसे, ‘चलो बात करते हैं कि तुम आज क्या खेलना चाहते हो!’, और किशोरों के लिए, आप कह सकते हैं, ‘इस सेमेस्टर में अपने ग्रेड के बारे में तुम कैसा महसूस करते हो?’, यह समायोजन सार्थक संवाद को प्रोत्साहित करता है।


2) ग़ैर-मौखिक संचार

बच्चे कही हुई बातों के स्थान पर, किसी भी कार्य को करता देख ज़्यादा अच्छे से सीखते हैं। इसलिए गैर-मौखिक संचार भी अपनी बातों को बच्चों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, थोड़ा आगे झुकना रुचि का संकेत देता है, जबकि आँखों में आँख डाल कर बात करना बच्चों का ध्यान आकर्षित करता है। शांत स्वर बनाए रखना संवाद के लिए स्वागत योग्य स्थान बना सकता है। एक अध्ययन बताता है कि प्रतिदिन किए जाने वाले कम्युनिकेशन में 93% कम्युनिकेशन गैर-मौखिक होते है। यह आंकड़ा ग़ैर-मौखिक संचार के महत्व को उजागर करता है।


3) सक्रिय रूप से सुनना

सक्रिय सुनना प्रभावी संचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह केवल शब्दों को सुनने से कहीं अधिक है। इसके लिए आपको शब्दों के पीछे की भावनाओं और संदेशों को समझने की आवश्यकता होती है। माता-पिता द्वारा बच्चों की बातों को सक्रिय रूप से सुनना बच्चों को विश्वास दिलाता है कि उनके विचार और भावनाएँ वैध और ध्यान देने योग्य हैं। एक शोध बताता है कि जिन बच्चों को सुना जाता है, उनमें सकारात्मक आत्म-सम्मान विकसित होने की संभावना 40% अधिक होती है।


सक्रिय रूप से सुनने का अभ्यास करने के लिए, माता-पिता चिंतनशील कथनों का उपयोग कर सकते हैं, जैसे, ‘मैंने सुना है कि आप स्कूल से निराश महसूस कर रहे हैं।’ यह किसी भी गलतफहमी को स्पष्ट करने में मदद करता है और बच्चों को अपनी भावनाओं को अधिक स्पष्ट रूप से व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है।


4) बातचीत के दौरान ध्यान भटकाने वाली चीज़ों से बचें

बातचीत के दौरान ध्यान भटकाने वाली चीज़ों को कम करना बच्चों को विश्वास दिलाता है कि उनकी बातें, उनकी सोच, उनकी परेशानी या कुल मिलाकर कहूँ तो उनका होना आपके लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए बच्चों से बात करते वक्त टीवी बंद रखें, मोबाइल पर बात करें से बचें। ऐसा करना बच्चों के प्रति आपके ध्यान और जुड़ाव को काफ़ी हद तक बढ़ा सकता है।


दोस्तों, हो सकता है आपको अभी उपरोक्त सूत्र साधारण लग रहे हों, लेकिन यकीन मानियेगा अगर आपने इनके आधार पर बच्चों के साथ प्रतिदिन कम्यूनिकेट किया तो जल्द ही आप उनके साथ एक अच्छा और सकारात्मक रिश्ता बनता हुआ देखेंगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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