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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

प्रभु सुमिरन में मन को व्यस्त कर रहें खुश और मस्त…

Nov 12, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आइये दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई सौ साल पुरानी है, एक बार एक तांत्रिक ने अपनी साधना और तंत्र शक्ति के बल पर एक भूत को पकड़ लिया। कुछ दिनों तक भूत से अपना सब कार्य करवाने के पश्चात तांत्रिक ने उसे बेचने का निर्णय लिया और उसे लेकर शहर चला गया। संयोगवश शहर में तांत्रिक की मुलाक़ात एक सेठ से हुई। सेठ ने भूत को देखते ही तांत्रिक से सवाल किया, ‘भाई यह किसे लेकर घूम रहे हो?’ तांत्रिक बोला, ‘सेठ, यह एक चमत्कारी भूत है। यह अपार क्षमताओं का धनी है और यह कठिन से कठिन काम को भी चुटकियों में निपटा सकता है।’


भूत की विशेषताएँ सुनते ही सेठ सोचने लगा, ‘काश यह भूत मेरे पास होता; मैं इसका मालिक होता तो कितना अच्छा होता।’ मन में विचार आते ही सेठ अचानक से बोल पड़ा, ‘क्या तुम इसे बेचना चाहोगे?’ तांत्रिक मुस्कुराता हुआ बोला, ‘इसलिए ही तो मैं इतनी दूर चलकर शहर आया हूँ।’ तांत्रिक का जवाब सुनते ही व्यापारी एकदम ख़ुश हो गया और बोला, ‘फिर झटपट इसकी क़ीमत बता दो।’ तांत्रिक उसी मुस्कुराहट के साथ बोला, ’५० स्वर्ण मुद्राएँ!’ क़ीमत सुनते ही सेठ एकदम चौंकते हुए बोला, ‘सिर्फ़ ५० स्वर्ण मुद्राएँ! इतनी कम!’ सेठ की बात को नज़रअंदाज़ करते हुए तांत्रिक बोला, ‘सेठ जी! जहाँ यह भूत असंख्य गुणों का स्वामी है, वहीं इसमें एक दोष भी है! अगर इसे काम न मिले, तो यह मालिक को खाने दौड़ता है।’


तांत्रिक की बात सुन सेठ सोचने लगा, ‘मेरे तो काम कभी खत्म ही नहीं होते हैं। सैकड़ों व्यवसाय हैं; विदेशों में फैला कारोबार है; जब मैं सैंकड़ों कर्मचारियों के साथ इसे पूर्ण नहीं कर पा रहा हूँ, तो यह भूत इससे क्या निजात पायेगा? यह भूत मर जायेगा पर काम खत्म न होगा।’ विचार आते ही सेठ ने ५० स्वर्ण मुद्राएँ चुकाई और भूत को ख़रीद लिया। मगर भूत तो भूत ही था, उसने अपने दोनों हाथों को फैलाया और बोला, ‘काम… काम… काम…’ सेठ भी एकदम तैयार बैठा था, उसने तत्काल काम की एक सूची भूत को पकड़ा दी। परंतु भूत सेठ की सोच से कहीं अधिक तेज था, उसने कई दिनों के काम मिनटों में निपटा दिए और फिर सेठ के सामने आकर ‘काम… काम… काम…’ चिल्लाने लगा।


एक ही दिन में स्थिति यह हो गई थी कि सेठ को लगने लगा था कि उसके पास तो अब कोई और काम ही नहीं है। असल में भूत सेठ की सोच से कहीं अधिक तेज़ था। इधर सेठ के मुँह से काम निकलता, उधर भूत उसे पूरा कर देता। अब तो सेठ घबरा गया था कि करे, तो क्या करे। इस तरह तो भूत जल्द ही उसे खा जायेगा। संयोग से उसी पल सेठ के यहाँ एक संत का आना हुआ। सेठ ने अच्छे से उनका स्वागत-सत्कार किया और फिर उनसे बोला, ‘महात्मन, मैं इस भूत का स्वामी बन कर बड़ी उलझन में पड़ गया हूँ।’ इतना कहकर सेठ ने भूत की सारी कहानी संत को कह सुनाई। जिसे सुनते ही संत पहले तो जोर से ठहाका मारकर हंसने लगे, फिर बोले, ‘वत्स! अब जरा भी चिंता करने की जरूरत नहीं है। तुम सिर्फ़ एक काम करो, एक लंबा बांस ला कर अपने आँगन में गाढ़ दो और उसके बाद जब काम हो तो भूत को करने के लिए दो और जब नहीं हो तो उसे उस बाँस पर चढ़ने और उतरने का कह दो। इससे तुम्हारे काम भी हो जाएंगे और कोई परेशानी भी नहीं होगी। सेठ ने ऐसा ही किया और मजे से खुश, शांत और मस्ती के साथ अपना जीवन जीने लगा।


असल मैं दोस्तों हमारा मन ही यह भूत है। इसे सदा कुछ ना कुछ करने को चाहिए। अगर यह एक पल को भी ख़ाली होता है, तो यह हमें ही खाने को दौड़ता है। इसलिए अगर हम इसे व्यस्त नहीं करेंगे, तो यह हमें कभी शांति से नहीं जीने देगा। अगर आप इसकी इस प्रवृति से बचना चाहते हैं, तो आपको भी इसे बाँस पर चढ़ने-उतरने के कार्य में व्यस्त करना होगा। हमारे मामले में हमारी श्वास बांस है और प्रभु को याद करने का अभ्यास करना, बांस पर चढ़ना उतरना है। अब आप जब आवश्यकता हो तो अपने मन से काम लें और जब काम ना हो तो उसे आती-जाती साँसों के साथ प्रभु के नाम का जाप करने में लगा दें। ऐसा करके हम निश्चित तौर पर अपने चंचल मन को काबू में ले आयेंगे और सुख और शांति के झूले में मस्ती से झूलने लगेंगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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