Aug 2, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
जीवन में सुख से लेकर हमारी हर समस्या का हल सामान्यतः हमारे आस-पास ही छुपा होता है। लेकिन चीजों को किंतु-परंतु-के साथ देखने का हमारा नज़रिया सीधी-साधी चीज़ को भी उलझाकर रख देता है। अपनी बात को मैं हाल ही में पढ़ी एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-
बात कई साल पुरानी है, हमीरपुर की महारानी अपने महल की छत पर बैठकर सुहाने मौसम का मज़ा ले रही थी, तभी अचानक तेज बारिश शुरू हो गयी। बारिश को देख रानी का मन बारिश में खेलने का होने लगा। उन्होंने अपने गहनों को उतारकर छत की मुँडेर पर रखा और बारिश में अटखेलियाँ करने लगी। बारिश रुकने के बाद रानी अपने गहनों को वापस पहनती उससे पहले ही पास ही के पेड़ पर बैठा कौवा चमचमाते हार को खाने की चीज़ समझकर ले उड़ा और एक पेड़ पर बैठकर उसे खाने की कोशिश करने लगा। इस प्रयास में कठोर हीरों पर मारते-मारते उसकी चोंच दुखने लगी। अंत में हार मानकर कौवा उस हार को पेड़ की डाल पर लटकता छोड़ कर, उड़ गया।
दूसरी ओर, रानी हार को नियत स्थान पर ना पा परेशान हो गई। उन्हें लगा शायद इतनी देर में किसी ने उनके क़ीमती हार को चुरा लिया है।राजभवन में वापस पहुँचने पर रानी ने पूरी घटना राजा को बताई और उनसे तत्काल चोर को ढूँढने का निवेदन करा। रानी की शिकायत पर राजा ने तत्काल चोर को ढूँढने का काफ़ी प्रयास करा, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। राजा ने रानी के समक्ष उससे भी अच्छा और क़ीमती हार उपहार में देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन रानी ने उसे सिरे से नकार दिया।
हार को लेकर रानी की हटधर्मिता को देख राजा ने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो भी शख़्स रानी का हार खोजकर देगा वे उसे पाँच गाँव के साथ, बहुत सारी धन-दौलत इनाम स्वरूप देंगे। राजा के ऐलान करते ही पूरी प्रजा रानी का हार खोजने में लग गई। कई दिनों के प्रयास के बाद एक दिन सैनिकों की एक टुकड़ी को राजा का हार गंदे नाले के अंदर नजर आया। नाले की गंदगी को देख पहले तो कोई उसमें उतरने को राज़ी नहीं हुआ। लेकिन अंत में कोई और चारा ना देख मंत्री ने सैनिक को नाले में उतरकर हार निकालने का आदेश दिया।
लेकिन जैसे ही सैनिक नाले में उतरा, हार वहाँ से ग़ायब हो गया। मंत्री ने धीरे-धीरे करके सभी को नाले में उतारा पर किसी को भी सफलता नहीं मिली। धीरे-धीरे यह खबर पूरे राज्य में फैल गई और उस नाले के पास मजमा लग गया। कुछ देर में तो ऐसी स्थिति हो गई कि ईनाम के लालच में नाले में उतरने के लिए वहाँ लाइन लग गई। लोग आते जा रह थे और गंदे नाले में कूदते जा रहे थे। लेकिन हार था कि वह किसी को मिल ही नहीं रहा था। जैसे ही कोई कूदता हार ग़ायब हो जाता।
कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा, एक दिन एक महान संत उधर से गुजरे तो परेशान राजा ने उन्हें अपनी समस्या सुनाते हुए हल पूछा। राज की बात सुन संत खिल-खिलाकर हंसे और बोले, ‘राजन, ज़रा नज़रें ऊँची कर पेड़ की टहनी को भी देख लो। नाले में तो सिर्फ़ हार की परछाई है, रानी का हार तो ऊपर पेड़ की शाख़ पर लटका हुआ है।
ठीक यही हाल दोस्तों, समस्या या परेशानी का हल खोजते समय हमारा होता है। हम साधारण सी चीज़ को अपनी सोच, लोगों के सुझाव व हर हाल में सही सिद्ध होने के प्रयास में इतना जटिल बना लेते हैं कि हमें समस्या के हल को छोड़कर बाक़ी सब कुछ नज़र आने लगता है। यही हाल सुख, ख़ुशी, शांति, आनंद और ईश्वर को पाने के प्रयास में होता है। हृदय की व्याकुलता की वजह से हम इन सभी चीज़ों को बाहरी दुनिया में खोजते हैं, जबकि यह हमारे अंदर ही मौजूद रहती है। याद रखिएगा दोस्तों, भौतिक चीजों के द्वारा चीजों से जोड़कर पाने का प्रयास करना परछाई पकड़ कर इसे पाने का प्रयास है। जिस चीज की हमको जरूरत है, जिस परमात्मा को हम पाना चाहते हैं, जिसके लिए हमारा हृदय व्याकुल होता है -वह सुख शांति और आनन्द रूपी हार क्षणिक सुखों के रूप में परछाई की तरह दिखाई देता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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