Dec 24, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अगर आप अपने जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं तो यकीन मानियेगा प्राचीन संस्कृतियों से लिया ज्ञान यकीनन आपकी मदद कर सकता है। जी हाँ, विभिन्न प्राचीन संस्कृतियाँ हमें जीवन के वो अनमोल पाठ सिखाती है, जो हमारे मन को सकारात्मक दिशा देकर जीवन को हमेशा के लिए बदल देता है। उदाहरण के लिए अगर आप ग्रीस के स्टोइक्स या अपनी भाषा में कहूँ तो ग्रीस के मोंक या साधु की शैली को आधार बना कर देखेंगे तो पायेंगे कि उन्होंने चुनौतियों का सामना करने के लिए लचीलेपन पर जोर दिया है। उनके अनुसार यद्यपि हम बाहरी घटनाओं को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, लेकिन उन पर दी जाने वाली अपनी प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करना हमारे हाथ में है। जर्नल ऑफ़ पॉज़िटिव साइकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, स्टोइक सिद्धांतों का अभ्यास करने से मात्र छह महीनों में ही हमारे भावनात्मक लचीलेपन में 30% की वृद्धि हो सकती है। अर्थात् यह सिद्धांत या मानसिकता हमारे अंदर धैर्य विकसित कर सकती है और हम जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना अधिक शालीनता से कर, ख़ुद को सशक्त बना सकते हैं।
इसी तरह पूर्वी दर्शन याने हमारी प्राचीन संस्कृति हमें माइंडफुलनेस के साथ वर्तमान में जीना सिखाती है। एक शोध बताता है कि वर्तमान में माइंडफुलनेस के साथ जीना हमारी चिंता को 58% तक कम कर, हमारे जीवन को समग्र रूप से लाभान्वित कर सकता है। माइंडफुलनेस को अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल करना हमें रिएक्टिव थिंकिंग अर्थात् प्रतिक्रियाशील सोच के स्थान पर हम धरातल पर रहते हुए हर हाल में खुश रहना शुरू कर सकते हैं।
आइये प्राचीन संस्कृति से जीवन को बेहतर बनाने वाले कुछ सूत्रों पर चर्चा कर लेते हैं-
पहला सूत्र - जाने देने की कला
प्राचीन ज्ञान या संस्कृतियों से हम ‘लेट गो’ याने छोड़ने या जाने देने की कला भी सीख सकते हैं। इसके अनुसार जो भी बातें, घटनाएँ, अनुभव या चीजें अब आपके काम की नहीं हैं या आपके जीवन को बेहतर नहीं बना रही हैं, उन्हें छोड़ देना ही महत्वपूर्ण है। हमारी प्राचीन संस्कृति की कई परंपराएँ, अनासक्ति पर जोर देती हैं, जिसका अर्थ है कि पुरानी शिकायतों या भय को पकड़े रहना हमारे विकास को सीमित कर सकता है। उदाहरण के लिए, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग ‘लेट गो’ याने ‘छोड़ने’ या 'जाने देने’ का अभ्यास करते हैं, वे बीतते समय के साथ मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक कल्याण में 25% सुधार देखते हैं।
‘छोड़ने’ या ‘जाने देने की कला’ को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाने के लिए आप जर्नलिंग या ध्यान का सहारा ले सकते हैं क्योंकि जर्नलिंग और ध्यान, हमारे विचारों को सही दिशा देने के लिए समय की कसौटी पर परखे गए दो प्रभावी उपाय हैं। यह हमें अपनी सीमित धारणाओं को स्वीकार कर छोड़ने में और फिर उन नए सशक्त विचारों को अपनाने में मदद करते हैं, जिनकी सहायता से हम ख़ुद से और बेहतर तरीक़े जुड़ पाते हैं और अपने जीवन को अपनी इच्छा अनुसार डिज़ाइन कर पाते हैं।
दूसरा सूत्र - समाज और समुदाय की शक्ति
प्राचीन संस्कृतियों ने हमें समाज और समुदाय की शक्ति से परिचित करवाया है और हमें यह सिखाया है कि समाज के बिना हमारा अस्तित्व अधूरा हो सकता है। इसलिए ही इसे प्राचीन सांस्कृतिक ज्ञान में आवश्यक बताया गया है। कई संस्कृतियों ने माना कि व्यक्तिगत परिवर्तन अक्सर सामूहिक अनुभव से जुड़ता है। समान मूल्यों को साझा करने वाले अन्य लोगों के साथ जुड़ना हमारी व्यक्तिगत विकास यात्रा को तेज गति से बढ़ा सकता है।
उदाहरण के लिए, प्राचीन दर्शन पर केंद्रित एक स्थानीय समूह में शामिल होने से जवाबदेही की अधिक भावना पैदा हो सकती है। कई प्रतिभागियों ने नियमित बैठकों के बाद प्रेरणा और प्रतिबद्धता में 40% की वृद्धि की रिपोर्ट की। अनुभव साझा करने से प्रेरणा बढ़ती है और परिवर्तन के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को बल मिलता है, जिससे यात्रा एकाकी से सामूहिक हो जाती है।
दोस्तों, अगर आप भी प्राचीन ज्ञान को अपना कर अपने जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं तो आप निम्न दो व्यवहारिक रणनीतियों को अपना सकते हैं-
पहला - दैनिक इरादे तय करें
प्रत्येक दिन की शुरुआत प्राचीन ज्ञान से प्रेरित एक विशिष्ट इरादे को लिखकर करें। व्यक्तिगत विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पूरे दिन उस पर चिंतन करें।
दूसरा - समुदाय के साथ जुड़ें
ऐसी स्थानीय कार्यशालाओं या ऑनलाइन कक्षाओं की तलाश करें जो प्राचीन दर्शन के बारे में लोगों को जागरूक करती हों। ऐसी कक्षाओं या समूह का हिस्सा बनना, आपकी प्रतिबद्धता और समान यात्रा पर दूसरों के साथ जुड़ाव को बढ़ा सकता है।
दोस्तों, अंत में इतना ही कहना चाहूँगा कि अतीत से ज्ञान को अपनाना न केवल हमारे जीवन को समृद्ध बनाता है, बल्कि हमें अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने में भी सक्षम बनाता है। व्यक्तिगत परिवर्तन कभी भी एकल प्रयास नहीं हो सकता। इसमें हमारे पूर्वजों का ज्ञान, हमारी सामाजिक स्थिति, किसी विशेष समुदाय का हिस्सा होना आदि सबका योगदान होता है। इन सभी से मिली शिक्षाओं को अपनाने से ही हम अपने अंदर लचीलापन विकसित कर सकते हैं; अपनी सोच को विकसित कर सकते हैं और अपनेपन की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे हमारे जीवन में गहरा बदलाव आ सकता है।
प्राचीन ज्ञान की शक्ति का दोहन करने की दिशा में आज ही पहला कदम उठाएँ और आत्म-खोज व परिवर्तन की एक ऐसी यात्रा पर चलें जो युगों-युगों से गूंजती रही है। आइए दोस्तों, साथ मिलकर हम समय की आवश्यकतानुसार, सम्मानित अंतर्दृष्टि के धागों का उपयोग करके व्यक्तिगत विकास का ताना-बाना बुनना शुरू करते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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