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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

प्राप्त को ही मानें पर्याप्त…

May 30, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों आज के लेख की शुरुआत एक बहुत ही प्यारी कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, जब रामगंज में राजा राघवेंद्र का शासन चलता था। राजा राघवेंद्र बहुत ही दयालु प्रवृति के थे। अपनी प्रजा को खुश रखने के लिए वे हमेशा कुछ ना कुछ प्रयास करते रहते थे। एक दिन उन्होंने निर्णय लिया की वे स्वयं प्रजा के बीच जाकर लोगों की हालात देखेंगे और जो भी परेशान या बुरे हाल दिखेगा उसे हर संभव मदद कर, खुश करेंगे।


प्रजा के दुखी लोगों को खुश करने का दृढ़निश्चय कर राजा भेस बदल कर राज्य में घूमने निकल गए। घूमते हुए राजा की निगाह सबसे पहले एक फटेहाल भिखारी पर पड़ी। राजा का हृदय उसे इस हाल में देख द्रवित हो गया, वह तत्काल भिखारी के पास गए और उसे एक स्वर्ण मुद्रा दे दी। स्वर्ण मुद्रा पा भिखारी खुश हो गया और वहाँ से जाने लगा। अभी वह कुछ कदम ही चला था की उसके हाथ से वह स्वर्ण मुद्रा छूट कर नाली में गिर गई। हाथ आई दौलत को इस तरह जाता देख भिखारी बहुत परेशान हो गया और नाली में हाथ डालकर उसे ढूँढने का प्रयास करने लगा।


भिखारी को ऐसा करते देख राजा को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा। वे एक बार फिर उसके पास गए और उसे एक ओर सोने का सिक्का दे दिया। अब तो भिखारी की ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। उसने राजा से लिए सिक्के को सम्भाल कर अपने गमछे में बांधा और एक बार फिर नाली में हाथ डाल कर गिरे हुए सिक्के को ढूँढने लगा। भिखारी को ऐसा करते देख राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। चूँकि उस दिन राजा ने सोच रखा था की उसे प्रजा में जो भी दुखी या परेशान दिखेगा वह उसे किसी भी तरह खुश और संतुष्ट करेगा। इसलिए उसने भिखारी को अपने पास बुलाया और उसे सोने का एक और सिक्का दे दिया।


एक और सिक्के को पा भिखारी, ख़ुशी के सातवें आसमान पर था। उसने तुरंत उस सिक्के को भी अपने गमछे में बांधा और नाली में गिरे हुए सिक्के को ढूँढने लगा। भिखारी की हरकत देख राजा सकते में था। उसने फिर से भिखारी को बुलाया और एक और सिक्का देते हुए कहा, ‘मुझे लगता है इस सिक्के के बाद आप पूरी तरह ख़ुश, संतुष्ट और सुखी हो जाएँगे। भिखारी ने अधिकार पूर्वक सोने के सिक्के को राजा से लिया और वापस से नाली में हाथ डाल कर गिरे हुए सिक्के को खोजने का प्रयास करता हुआ बोला, ‘खुश और संतुष्ट तो मैं तभी होऊँगा जब मुझे नाली में गिरा हुआ सोने का सिक्का मिल जाएगा।’


दोस्तों, जिस भिखारी को खाना मुश्किल से मिलता था; जिसके पास पहनने के लिए ढंग के कपड़े नहीं थे, अब उसके पास सोने के तीन सिक्के हैं। लेकिन वह अभी भी खुश और संतुष्ट नहीं है, हे ना आश्चर्य की बात! सच कहूँ तो भिखारी की स्थिति सुनकर ही हंसी आती है। लेकिन हंसने से पहले गम्भीरता पूर्वक सोचिएगा, ‘कहीं यह भिखारी हम ही तो नहीं हैं?’ जी हाँ साथियों, हक़ीक़त में ऐसा ही है। भेस बदला हुआ राजा ही ईश्वर है और हम सब भिखारी। ईश्वर के सब कुछ देने के बाद भी हम जो नहीं मिल पाया उसे ही पाने के प्रयास में लगे रहते है और उन बातों या संसाधनों का मज़ा लेने से चूक जाते हैं जो हमारे पास नहीं है। जैसे जब स्वस्थ है तो पैसा चाहिए, जब पैसा आ गया तो गाड़ी, घर और ना जाने क्या-क्या चाहिए और जब यह सब पाते-पाते स्वास्थ्य गड़बड़ा जाए तो स्वास्थ्य चाहिए। वैसे ये मेरी या आपकी नहीं पूरी मानव जाती की कहानी है हम जो चीज़ नहीं है उसी को पाने के प्रयास में जो है उसको भूल जाते हैं। दोस्तों अगर आप खुश, संतुष्ट और सुखी रहना चाहते हैं तो आपको नाली में गिरे सिक्के को खोजने में समय बर्बाद करने के स्थान पर अपने समय को, जो हमारे पास है उसे भोगने और साथ ही दोनों हाथ खोल कर दूसरों की मदद करने का प्रयास करने में लगाना चाहिए। हक़ीक़त में तो आप तभी भिखारी बनने से बच पाएँगे। एक बार विचार करके देखिएगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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