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प्रेम आधारित रिश्ते से भगाएँ क्रोध…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

June 27, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, हरिद्वार के समीप एक महात्मा आश्रम में अपने भक्तों को जीवन बेहतर बनाने के सूत्र समझा रहे थे। चर्चा के पश्चात एक शिष्य ने महात्मा से पूछा, ‘महाराज! मुझे एक बात कभी समझ नहीं आई, लोग ग़ुस्से के दौरान ऊँची आवाज़ में बात क्यों करने लगते हैं?’ महात्मा ने उस शिष्य की बात को सुन कर भी अनसुना कर दिया। जिसे देख वह व्यक्ति अपनी आवाज़ थोड़ी ऊँची करते हुए बोला, ‘महाराज, लोग ग़ुस्से में अपनी आवाज़ ऊँची क्यों कर लेते हैं?’


महात्मा ने इस बार भी उसकी बात को अनसुना कर दिया। उस व्यक्ति ने तीसरी बार और ज़्यादा ऊँची आवाज़ में महात्मा के समक्ष अपना प्रश्न दोहरा दिया। इस पर महात्मा जी थोड़ा सा कड़क रुख़ अपनाते हुए बोले, ‘पहली बार में ही मैंने तुम्हारे प्रश्न को सुन लिया था। थोड़ी देर इंतज़ार नहीं कर सकते क्या?’ महात्मा का जवाब सुनते ही वह शख़्स एकदम शांत हो गया। लेकिन उसके ठीक विपरीत महात्मा ने इस शख़्स की निंदा करना शुरू कर दिया। वे बिना रुके उस शख़्स के लिए अनाप-शनाप बोले जा रहे थे। जब महात्मा जी ने काफ़ी देर तक निंदा और आलोचना करना बंद नहीं किया, तो उस शख़्स को ग़ुस्सा आ गया और वह काफ़ी तेज आवाज़ में लगभग चिल्लाता हुआ बोला, ‘कैसे महात्मा हैं आप? ख़ुद तो अभी तक निंदा और शिकायत करना छोड़ नहीं पाए और दूसरों को बेहतर इंसान बनने का उपदेश देते हैं? पहले ख़ुद को तो बेहतर बना लीजिए, फिर दूसरों को शिक्षा दीजियेगा।’ ग़ुस्से के साथ कही गई बात को सुनते ही महात्मा जी मुस्कुराए और बोले, ‘वत्स, मैं तुम्हारे इतने समीप बैठा हूँ, फिर भी तुम इतनी तेज आवाज़ में क्यों बोल रहे हो?’ महात्मा को मुस्कुराते हुए प्रश्न पूछते देख वह शख़्स समझ गया कि महात्मा जी ने कुछ सिखाने के लिए ही निंदा और शिकायत करने का स्वाँग रचा था। वह एकदम शांत हो गया और कुछ सोचते हुए बोला, ‘महाराज, मुझे लगता है क्रोध में मैंने अपनी शांति खो दी थी, शायद इसलिए चिल्ला-चिल्ला कर बोल रहा था।’


महात्मा जी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘क्रोध में शांति खो दी समझ आता है। लेकिन जब दूसरा आदमी समीप ही खड़ा हो तब भला चिल्लाने की क्या ज़रूरत? आप जो कहना चाहते है, वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं।’ उस शख़्स सहित वहाँ मौजूद कुछ और लोगों ने इस विषय में अपने तर्क देने के प्रयास किए, लेकिन महात्मा जी सहित अन्य लोगों को संतुष्टि नहीं मिली। इस पर अंत में महात्मा जी ने बड़े शांत भाव से लोगों को समझाते हुए कहा, ‘वत्स, जब दो लोग नाराज़ होते हैं, तब उनके दिलों की दूरियाँ बहुत बढ़ जाती है। इस अवस्था में बिना चिल्लाए वे एक-दूसरे की बातें सुन नहीं पाते हैं। वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक बढ़ती जाएगी और उन्हें उतनी ही ज़ोर से चिल्लाना पड़ेगा।’ महात्मा की बात सुन वहाँ मौजूद सभी लोग संतुष्ट नज़र आए।


कुछ पलों तक शांत रहने के बाद महात्मा ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘इसके विपरीत जब दो लोग प्रेम में होते हैं, तब वे चिल्लाकर नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं, क्योंकि प्रेम की वजह से उनके दिल एकदम क़रीब होते हैं और उनके बीच की दूरी नाममात्र की रह जाती है। इसी तरह जब दो लोग एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं, तब वे बिना बोले; बिना कहे एक-दूसरे की बातें समझ जाते हैं।’


दोस्तों, बात तो महात्मा जी की एकदम सटीक और जीवन को बेहतर बनाने वाली है। तो आईए आज से लोगों को उनकी ग़लतियों के लिए माफ़ करते हैं, आपस में प्रेम पर आधारित रिश्ता बनाते हैं और जीवन से क्रोध, चिल्लाहट को दूर कर शांति लेकर आते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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