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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

प्रेम और नम्र व्यवहार से जीतें कठोर हृदय को…

Aug 18, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरा मानना है कि कठोर से कठोर बात पर भी अगर नम्रता के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार किया जाए तो सामने वाले इंसान को पूर्णतः शांत किया जा सकता है। अर्थात् उससे भी प्रेमपूर्वक व्यवहार की अपेक्षा की जा सकती है क्योंकि व्यवहार से कड़क, खुश्क मिज़ाज वाले उस इंसान के अंदर भी तो हमारे समान ही दिल धड़क रहा है। जिसके अंदर असीमित प्रेम भरा हुआ है। अपनी बात को मैं एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात कई साल पुरानी है, एक दिन एक संत के पास एक व्यक्ति पहुँचा और उन्हें प्रणाम करता हुआ बोला, ‘गुरुजी, आप प्रवचन के दौरान बता रहे थे कि कटु से कटु वचन बोलने वाले के अंदर भी नरम हृदय हो सकता है। मुझे तो इस पर विश्वास नहीं होता। क्या आप इस बात को समझने में मेरी मदद कर सकते हैं?’ उस व्यक्ति का प्रश्न सुन संत एकदम गंभीर मुद्रा में आ गये और बोले, ‘वत्स, मैं अवश्य तुम्हें इस प्रश्न का जवाब दूँगा, लेकिन उससे पहले क्या तुम मेरा एक काम कर दोगे?’ संत का निवेदन सुनते ही उस शख़्स ने हाँ कह दिया। संत ने तुरंत अपने समक्ष रखा एक नारियल उठाया और उस व्यक्ति को देते हुए बोले, ‘वत्स! इस नारियल को तोड़ कर ले आओ और इसके अंदर की गिरी निकाल कर, उसके टुकड़े करो और इस प्रसाद को सभी भक्तों में बाँट दो।’


गुरु की बात पूरी होते ही भक्त ने उनसे नारियल लिया और उसे तोड़ने का प्रयास करने लगा। नारियल बेहद सख़्त था इसलिए उसके बार-बार प्रयास करने पर भी टूट नहीं रहा था। वह व्यक्ति वापस से संत के पास गया और हाथ जोड़ कर विनम्रता पूर्वक बोला, ‘गुरुदेव यह नारियल बहुत सख़्त है, अगर आप मुझे कोई औज़ार दे देंगे तो मैं उससे इसे आसानी से तोड़ सकूँगा।’ संत पूर्व की ही तरह गंभीर स्वर में बोले, ‘वत्स औज़ार लेकर क्या करोगे? एक बार ऐसे ही और प्रयास करो, यह अवश्य टूट जाएगा।’


गुरु का आदेश सुन वह व्यक्ति एक बार फिर नारियल तोड़ने का प्रयास करने लगा और इस बार उसे जल्द ही इसमें सफलता मिल गई। उसने तत्काल नारियल में से गिरी निकाली और हाथ से ही उसके छोटे-छोटे टुकड़े करने लगा। जिससे वह उसे सभी मौजूद लोगों में प्रसाद के रूप में बाँट सके। प्रसाद पा, सभी भक्त एक-एक कर वहाँ से जाने लगे। अंत में सिर्फ़ वही इंसान बचा था जिसने गुरु से कटु वचन बोलने वाले के अंदर नरम हृदय के विषय में प्रश्न पूछा था।


अंत में जब संत भी उठकर आश्रम में मौजूद अपनी कुटी के अंदर जाने लगे तभी वह भक्त उनके पास आया और बोला, ‘गुरुजी, आपने मेरे प्रश्न का जवाब नहीं दिया।’ इस पर संत मुस्कुराते हुए बोले, ‘वत्स! मैंने तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे दिया है।’ वह व्यक्ति आश्चर्यचकित होता हुआ, एकदम से बोला, ‘कब?’ इस पर संत मुस्कुराते हुए बोले, ‘देख जिस तरह कठोर गोले में एकदम नर्म गिरी होती है, ठीक वैसे ही, कठोर व्यक्ति में भी नरम हृदय होता है। जिस तरह तुमने कई बार प्रयास करके नारियल के उस सख़्त और कड़क कवच को तोड़ा था, ठीक उसी तरह बार-बार प्रेमपूर्वक, नर्म व्यवहार करके तुम कठोर व्यक्ति के बाहरी आवरण को तोड़, उसके दिल तक पहुँच सकते हो।’


बात तो दोस्तों गुरुजी की वाक़ई सौ प्रतिशत सही है। कठोर से कठोर व्यक्ति को भी नम्रता के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करके जीता जा सकता है। अर्थात् किसी के द्वारा किए गए कठोर आचरण का जवाब, स्नेह से देकर उसके भीतर मौजूद नरम हृदय तक पहुँचा जा सकता है और इसके परिणामस्वरूप अंततः वह कठोर इंसान भी आपके साथ मृदु व्यवहार करने लगता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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