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प्रेम और विनम्रता से जीतें जहां…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Aug 15, 2024
  • 3 min read

Aug 15, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, कहते हैं ना, ‘जिस पेड़ पर अधिक फल होते हैं वही ज़्यादा झुकता है और उसी पेड़ पर पत्थर मारे जाते हैं, जिस पर फल लगे होते हैं।’ अर्थात् इंसान जितना बड़ा होता है, वह उतना ही झुक कर चलता है और कई बार उसे अनावश्यक रूप से समाज से नकारात्मक प्रतिक्रिया को भी झेलना पड़ता है। लेकिन वे इन विरोध और विपरीत स्थिति में भी विनम्रता और प्रेम से व्यवहार करते हैं और अंततः सामने वाले का दिल जीत लेते हैं। वैसे भी, हमारा ह्रदय अनंत प्रेम का भंडार है। बस ज़रूरत इस बात की है कि हम अपने ह्रदय का दरवाज़ा खोल कर लोगों से मिल सकें और उन्हें देख सकें। अपनी बात को मैं टॉलस्टॉय से जुड़े एक क़िस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ।


रोज़ की ही तरह टॉलस्टॉय सुबह-सुबह सैर के लिए अपने घर से निकले। अभी वे थोड़ी ही दूर पहुँचे थे कि उनके सामने भीख की आशा रख एक भिखारी ने हाथ फैलाया। टॉलस्टॉय ने उसे कुछ देने के उद्देश्य से अपनी जेबों को तलाशना शुरू किया लेकिन उनकी जेब ख़ाली थी। उन्होंने भिखारी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘मित्र क्षमा करो! आज मेरी जेब में बिलकुल भी पैसे नहीं हैं। मैं समझ रहा हूँ इस बात से तुम्हें दुख पहुँचेगा और तुम निराश भी होगे, लेकिन यह जानने के बाद भी मैं मजबूर हूँ। क्षमा करो भाई!, इस वक़्त मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है।’


टॉलस्टॉय के शब्द सुन भिखारी आश्चर्यचकित रह गया। उसने कभी अपेक्षा ही नहीं रखी थी कि भीख माँगने पर भी कोई इतने अपनत्व के साथ बात कर सकता है। वह एक पल के लिये ठहर सा गया था, फिर वह बड़ी विनम्रता के साथ बोला, ‘कोई बात नहीं। तुम्हारे मित्र कह देने से ही मुझे बहुत कुछ मिल गया है। वैसे तुमने मुझे भाई भी कहा है, यही काफ़ी है मेरे लिये। आज तक भीख माँगने पर लोगों ने दया करके पैसे, ज़रूरत का सामान और कई चीजें दी है। पर आज तक किसी ने मित्र, बंधु या भाई कह कर नहीं पुकारा। यक़ीन मानो जो तुमने दिया है, वह आज तक किसी ने नहीं दिया है। मैं बहुत अनुगृहीत और कृतज्ञ हूँ!’ इतना कहते-कहते ही वह भिखारी रो पड़ा। उसका जवाब सुन टॉलस्टॉय सोच में पड़ गये, एक पल के लिये वे समझ ही नहीं पाए कि प्रेम के शब्द ने उस भिखारी के हृदय में क्या परिवर्तन कर दिया था। उसका चेहरा, उसका भाव सब बदल चुका था, अब वह दूसरा आदमी नज़र आ रहा था।


दोस्तों, आप स्वयं सोच कर देखिए भिखारी को ‘मित्र’ या ‘भाई’ कह कर कौन संबोधित करता है। शायद यह उसके जीवन में भी पहला मौक़ा होगा, जब किसी ने भीख माँगने पर इस तरह जवाब दिया होगा। इसीलिए प्रेम के एक शब्द ने उसके अंदर क्रांति ला दी होगी, जिसकी वजह से वह दूसरा आदमी या दूसरे व्यक्तित्व का स्वामी बन गया होगा। दूसरे शब्दों में कहूँ तो टॉलस्टॉय के प्रेम और विनम्रता भरे शब्दों ने उस व्यक्ति की हैसियत, उसकी गरिमा, उसका पूरा व्यक्तित्व बदल दिया था। उसे एहसास करा दिया था कि वह यहाँ-वहाँ भीख माँगने वाला पद-चलित भिखारी नहीं, एक मनुष्य है। जी हाँ दोस्तों, प्रेम से कहे कुछ शब्दों ने उसके भीतर एक नये व्यक्तित्व, एक नई आस, एक नये सपने का निर्माण कर दिया था, जिसके कारण वह स्वयं के अंदर नई ऊर्जा को महसूस कर रहा था। कुल मिलाकर कहूँ तो प्रेम के कुछ शब्दों ने उसे, उसके अस्तित्व का बोध करा दिया था।


इसीलिए दोस्तों, कहा जाता है, ‘प्रेम ही जीवन है! प्रेम ही सृजनात्मक है। प्रेम का हाथ जहाँ भी छू देता है, वहाँ क्रांति हो जाती है, वहाँ मिट्टी सोना हो जाती है। प्रेम का हाथ जहाँ स्पर्श देता है, वहाँ अमृत की वर्षा शुरू हो जाती है।’, जैसा कि हमने उपरोक्त उदाहरण में देखा था। इसीलिए दोस्तों, मैंने अपने लेख की शुरुआत में कहा था, ‘हमारा ह्रदय अनंत प्रेम का भंडार है। बस ज़रूरत इस बात की है कि हम अपने ह्रदय का दरवाज़ा खोल कर लोगों से मिल सकें और उन्हें देख सकें।’ तो आइए दोस्तों, हम इसी पल से लोगों से खुल कर, अच्छी तरह, प्रेम और विनम्रता के साथ मिलना और बात करना शुरू करते हैं। जिससे वह इंसान ख़ुद को सही रूप में देख सके, पहचान सके। ईश्वर के दिये इस अमूल्य स्वरूप को जान सके। यक़ीन मानियेगा दोस्तों, सबसे प्रेम से मिलना और विनम्रता से बातें करना ही वह बात है जो मैंने अपने माता-पिता और ताऊजी से सीखी है, जिसने मेरे जीवन को पूरी तरह बदल कर रख दिया है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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