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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

प्रेम पाने का नहीं, देने का नाम है…

Oct 21, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आइये दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत भगवान कृष्ण से संदर्भित एक किस्से से करते है। भगवान कृष्ण के मथुरा से वृंदावन जाने के बाद गोपियाँ उनसे दूर हो जाने के कारण गहरे दुख में डूबी रहती थी और हर क्षण भगवान कृष्ण के साथ बिताए समय को याद किया करती थी; उनके विषय में ही सोचा करती थी। एक बार द्वारका से एक पर्यटक मथुरा पहुँचा। जैसे ही इस बात का पता गोपियों को चला वे अपना उदास चेहरा लिए उससे मिलने के लिए पहुँची, जिसे देख उस पर्यटक को काफ़ी दुख हुआ।


शुरुआती सामान्य बातचीत के बाद, आगंतुक के निवेदन पर, गोपियाँ उसे उस स्थान पर ले गई जहाँ कृष्ण लीला किया करते थे।उस स्थान को दिखाते वक्त कृष्ण की अनुपस्थिति के कारण गोपियों के चेहरे पर दुख और आवाज में पीड़ा साफ़ नज़र आ रही थी। कुछ क्षणों के बाद सभी गोपियाँ लगभग एक साथ ही बोली, ‘कृष्ण कैसे हैं? क्या उन्हें हमारी याद आती है? क्या वे वहाँ खुश हैं?’ प्रश्न सुनते ही आगन्तुक गंभीर हो गए फिर कुछ सोचते हुए बोले, ‘जहाँ तक मुझे लगता है, कृष्ण अपनी पत्नी के साथ वहाँ ख़ुशी से रह रहे हैं और मुझे तो नहीं लगता कि उन्हें आप सभी की इतनी याद आती होगी।’


असल में आगंतुक ने इस लहजे से यह बात गोपियों को निराश करने के लिए कहीं थी। जिससे वे समय के साथ कृष्ण को भूल जाएँ और अपने जीवन में आगे बढ़ सकें। लेकिन आगंतुक की बात का असर इससे बिल्कुल उलट हुआ। ‘कृष्ण ख़ुश हैं!’, इतना सुनते ही सारी गोपियाँ ख़ुशी से भर गई। वे सब अपने दुखों को सिर्फ़ इसलिए भूल गई थी कि उनके प्रिय ‘कृष्ण’ खुश हैं। उन सभी गोपियों ने यह खुशखबरी सुनाने के लिए आगंतुक का धन्यवाद भी किया।


अंत में सभी गोपियों ने मिलकर उस आगंतुक से एक विनती करते हुए कहा, ‘हमारे प्रिय कृष्ण को हमारे द्वारा बनाया गया मक्खन बहुत पसंद था। कृपया आप हमारे प्रिय कृष्ण के लिए यहाँ से कुछ मक्खन ले जायें। लेकिन हाँ, आप उन्हें यह मत कहियेगा कि यह मक्खन हमारी तरफ से है, और यह भी मत बताइयेगा कि उनके चले जाने से हम अभी भी दुखी हैं। हम नहीं चाहते कि हमारे कारण उन्हें कोई तकलीफ हो। हम सब तो बस यही चाहते हैं कि वे हमेशा खुश रहें।’


भगवान कृष्ण के प्रति गोपियों का भाव, उनका स्नेह देख आगन्तुक भाव-विभोर हो गया। उसने भारी मन से गोपियों से विदा ली और मक्खन भरा बर्तन ले, वापस द्वारका चला गया। द्वारका पहुंचते ही वह सीधे भगवान कृष्ण के महल गया। महल के अंदर प्रवेश करते समय उसे भगवान श्री कृष्ण भोजन करने के लिए तैयार बैठे दिखे और रुक्मणी उन्हें भोजन परोसने की तैयारी कर रही थी। भगवान कृष्ण ने रुक्मणी को रोकते हुए कहा, ‘मुझे यहाँ वृंदावन की ख़ुशबू आ रही है। ऐसा लगता है जैसे कोई आगंतुक वृंदावन से यहाँ आया है। कृपया पहले आप जाकर उसका स्वागत कीजिए और उनसे कहिए कि वह तत्काल मुझसे मिले। वह गोपियों के शुद्ध प्रेम से भरा हुआ होगा, और मुझे यकीन है कि गोपियों ने मेरे लिए उसके हाथों मक्खन भेजा होगा..!!!’


कहने की जरूरत नहीं है दोस्तों, कि भगवान कृष्ण की बात सुन आगंतुक का क्या हाल हुआ होगा। उसके मन में कैसी हलचल हुई होगी। असल में सच्चा प्रेम पाने में नहीं देने में निहित होता है। यह ख़ुद के लिए सुख, संतोष, वैभव या ख़ुशी की आस नहीं रखता यह तो अपने प्रेमी, अपने आराध्य, अपने प्रिय के सुखी जीवन की प्रार्थना करता है और उनको सुखी देख, ख़ुद सुखी हो जाता है। आपसी समर्पण के पर्व करवाचौथ की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएँ और इसी आशा के साथ कि आप सब भी भगवान कृष्ण से संबद्ध इस किस्से से अपना जीवन बेहतर बनाएँगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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