May 13, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हम सभी जानते हैं कि इस दुनिया में कोई भी दो लोग सौ प्रतिशत एक जैसे नहीं होते हैं। बुद्धि, योग्यता, शिक्षा, शक्ल-सूरत, गुण-अवगुण, पालन-पोषण, पारिवारिक एवं सामाजिक संस्कार, वातावरण, जींस आदि ऐसे अनेक कारण होते हैं जो सभी लोगों को एक-दूसरे से अलग बनाते हैं। लेकिन इसके बाद भी आपस में तुलना करना एक ऐसी सामान्य सी आदत है जिसकी वजह से बच्चों से लेकर बड़ों तक, ज़्यादातर लोग किसी ना किसी रूप में परेशान रहते हैं। कई बार यह तुलना व्यक्ति स्वयं करना शुरू कर देता है तो कई बार आस-पास मौजूद लोग आपके मन में ऐसे विचार डाल देते हैं।
दोस्तों, वयस्क के तौर पर तुलना और तुलना की वजह से उपजी नकारात्मकता को डील करना हमारे लिए आसान होता है। लेकिन अगर समय रहते बच्चों को इससे डील करना ना सिखाया जाए तो यह उनके लिए एक बड़ी समस्या सिद्ध हो सकता है। जिसकी वजह से बच्चे ग़ुस्सैल, चिड़चिड़े, ज़िद्दी, आक्रामक आदि भी हो सकते हैं और इसका उनके व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है।
अनेकों विद्यालय में मैंने बच्चों को तुलना की वजह से परेशान होते हुए देखा है। उदाहरण के लिए एक शिक्षक मेरे पास एक बच्चे को यह कह कर लाए कि यह अकारण ही अन्य बच्चों को मारता है, उन्हें परेशान करता है। मैंने उनसे पहले तो बच्चे के व्यवहार, परिवार, पढ़ाई आदि के बारे में आवश्यक जानकारी ली और उसके पश्चात बच्चे से अकेले में बात करना शुरू किया। सर्वप्रथम मैंने उसकी तारीफ़ करते हुए उसके पसंदीदा विषय डाँस और तकनीकी पर बात करना शुरू किया। शुरू में वह बच्चा काफ़ी हिचकिचाहट के साथ मुझसे बातें साझा कर रहा था। लेकिन मेरे सकारात्मक रवैए के कारण जल्द ही वह खुलकर बातें साझा करने लगा। बातों ही बातों में उसने बताया कि उसके माता-पिता, शिक्षक समेत सभी लोग किस तरह उसके सबसे अच्छे दोस्त की तारीफ़ किया करते हैं और किसी ना किसी बात पर उससे तुलना करते हुए, कभी उसे समझाते हैं तो कभी डाँटा करते हैं।
उस बच्चे की बातों से मुझे एहसास हुआ पढ़ाई में उससे बेहतर बच्चे से तुलना कर बार-बार दी गई समझाइश और डाँट के कारण इस बच्चे में अब ईर्ष्या का भाव पैदा हो गया है। इतना ही नहीं बार-बार उससे पीछे रहने के कारण या यूँ कहूँ अपने साथी को लगातार उन्नति करते देखने के कारण इसका ज़्यादातर समय अब उस बच्चे को नीचा दिखाने, उसे पीछे छोड़ने की योजना बनाने में बीतने लगा। मेरी नज़र में उस बच्चे के दुःख या अन्य सभी समस्याओं के पीछे का यही एकमात्र मुख्य कारण था।
कारण समझते ही मैंने उस बच्चे से अंतिम प्रश्न के रूप में पूछा, ‘बाक़ी सबको छोड़ो तुमको क्या लगता है वह लड़का तुमसे पढ़ाई में बेहतर है या नहीं।’ एक पल के मौन के बाद वह बच्चा बोला, ‘बिलकुल!’ मैं मुस्कुराते हुए उस बच्चे से बोला, ‘फिर तो उससे ईर्ष्या रखने, उस पर चिढ़ने या ग़ुस्सा करने के स्थान पर उससे दोस्ती रखना तुम्हारे लिए फायदेमंद है?’ मेरे जवाब से बच्चा चिंता में पड़ गया और माथे पर सलवटों के साथ बोला, ‘मतलब?’ मैंने उसी मुस्कुराहट के साथ बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘अगर तुम यह स्वीकार लो कि पढ़ाई जैसे कुछ कार्यों में वह बच्चा तुमसे बेहतर है तो तुम्हारी चिंता, तनाव, टेंशन, ईर्ष्या, जलन आदि दूर हो जाएगी और तुम भी सुख पूर्वक जीवन जी सकोगे। इतना ही नहीं उसे बेहतर के रूप में स्वीकारना तुम्हें उससे सीखकर और बेहतर बनने में मदद करेगा। मैं स्वयं ऐसा ही करके बेहतर बना हूँ।’ इतना कहकर मैंने उसे अपने गुरुओं के साथ बिताए समय, अपने से बेहतर लोगों के साथ दोस्ती से मिले फ़ायदों के कुछ किस्से सुनाए और अंत में उससे कहा, ‘भले ही मैं कभी अपने उन गुरुओं या दोस्तों से अच्छा ना बन पाऊँ, लेकिन उन्हें बेहतर मान कर स्वीकारना और उनके साथ रहना मुझे शांति से रहने का मौक़ा देता है और यही बात मुझे इस संसार में कइयों से बेहतर बना देगी। जिनकी तुलना में मैं अधिक उत्तम तथा सुखी व्यक्ति माना जाऊंगा।”
यक़ीन मानिएगा दोस्तों, इस सूत्र याने अपने सहपाठी की सफलता को खुद के लिए प्रेरणा मानना और मेहनत से कार्य करना, ने उस बच्चे को पूरी तरह बदल दिया। उसके माता-पिता के अनुसार अब वह कक्षा में खुश और सुखी रहने लगा। दोस्तों, तुलना के कारण उपजे ऐसे ही कई मानसिक द्वन्दों के बीच हम में से ज़्यादातर लोग दुखी रहते हुए अपना जीवन जीते हैं। अगर आप भी उनमें से एक हैं तो आप भी इस उदाहरण से शिक्षा लेकर अपना जीवन बुद्धिमत्ता पूर्वक कर्म करते हुए सुख और सफलतापूर्वक जी सकते हैं या फिर किसी भी ऐसे व्यक्ति की मदद कर उसके जीवन को बेहतर बना सकते हैं, जो इस परेशानी के साथ जीवन जी रहा है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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