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फल नहीं कर्म है आपके हाथ में…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Sep 26, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आइये दोस्तों आज के लेख की शुरुआत एक बहुत ही प्यारी कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है। गाँव के बाहरी छोर पर मंदिर के पास बहुत ही ज्ञानी पंडित जी रहते थे। पंडित जी का शुरू से ही मानना था कि ईश्वर सभी को ज़रूरत के अनुसार सब कुछ देता है। इसलिए उन्होंने जीवन में कभी कुछ इकट्ठा करने पर ध्यान नहीं दिया। कई वर्ष ऐसे ही गुजर गए, एक दिन पंडित जी के मन में विचार आया कि उनकी बेटी अब विवाह योग्य हो गई है। विचार आते ही पंडित जी ने एक योग्य लड़के को खोज निकाला और बेटी की शादी उसके साथ तय कर दी।


शादी तय होते ही पंडित जी ने पैसों का इंतज़ाम करने के लिए मंदिर में रामकथा करने का निर्णय लिया। पंडित जी ने जब अपना निर्णय अपनी पत्नी को बताया तो उसने पंडित जी से प्रश्न किया कि कथा सुनने के लिए लोग कहाँ से आयेंगे? पंडित जी बोले, यह तो भगवान राम ही जाने। मेरा काम तो बस कथा कहना है फिर चाहे उसे अकेले भगवान राम ही क्यों ना सुनें। अगले दिन से पंडित जी ने अपनी योजनानुसार कथा कहना शुरू कर दी और जल्द ही ईश्वरीय इच्छा से उसमें कुछ लोग भी आने लगे।


एक दिन कथा के दौरान उस गाँव के सबसे अमीर लेकिन कंजूस सेठ का मंदिर आना हुआ। सेठ ने पहले तो मंदिर में दर्शन किए फिर कथा सुनने के लिए बैठ गये। कथा के पश्चात सेठ ने मंदिर की परिक्रमा कर घर जाने का निर्णय लिया। परिक्रमा के दौरान सेठ के कानों में दो लोगों के बात करने की आवाज़ आई। असल में भगवान राम अपने अनन्य भक्त हनुमान से कह रहे थे, ‘हनुमान, मेरे इस ग़रीब भक्त के लिए कल दस हज़ार रुपये का इंतज़ाम करवा देना। जिससे यह भला इंसान अच्छे से कन्यादान कर सके।’ हनुमान जी तुरंत बोले, ‘जो आज्ञा प्रभु। कल प्रबंध हो जाएगा।’


भगवान राम और हनुमान जी की बात सुनते ही सेठ की आँखों में चमक आ गई। वह कुटिल हंसी हंसते हुए ग़रीब ब्राह्मण के पास पहुँचा और बोला, ‘ब्राह्मण देवता, इस कथा से आपको कुछ दान वग़ैरह भी मिल रहा है या नहीं?’ पंडित जी हाथ जोड़ते हुए बोले, ‘सेठ जी कथा में बहुत थोड़े से ही लोग आते हैं ऐसे में दान कहाँ से मिलेगा?’ सेठ कुटिलता के साथ दया का भाव लाते हुए बोले, ‘यह तो आपने सही कहा पंडित जी। कल की कथा में मैं आपको पाँच हज़ार रुपये दूँगा। लेकिन मेरी एक शर्त है, कल कथा में जितना भी पैसा आएगा वह सब मेरा होगा।’ पंडित जी सोचने लगे कि कथा में कौन से इतने पैसे आते हैं जो मैं चिंता करूँ? उन्होंने सेठ जी को तुरंत हाँ कहा और ख़ुशी-ख़ुशी भगवान को हाथ जोड़कर घर चले गये।


दूसरी ओर सेठ मन ही मन मुस्कुरा रहा था। उसका मानना था कि भगवान राम की आज्ञा का पालन करने हेतु हनुमान जी कल की कथा में पंडित जी को दस हज़ार रुपये ज़रूर दान करवायेंगे। असल में साथियों लोभी और ख़राब नियत वाले लोग पैसों के बारे में सबसे पहले सोचते हैं। ऐसा ही कुछ उस सेठ के साथ साक्षात भगवान की वाणी सुनने के बाद हुआ। अर्थात् उन्होंने भगवान की वाणी सुनने के बाद भी भक्ति के स्थान पर पैसे को चुना। ख़ैर अगले दिन सेठ समय से काफ़ी पूर्व कथा में पहुँच गये और कथा ख़त्म होते ही पंडित जी के पास जाकर बोले, ‘पंडित जी यह लो अपने पाँच हज़ार रुपये और आज कथा में जितना भी चढ़ावा आया है मुझे दे दो। सेठ की आशा के विपरीत आज पंडित जी को दस हज़ार नहीं अपितु पाँच सौ रुपये का ही चढ़ावा आया था। पंडित जी ने वे सभी रुपये सेठ को दे दिये और पाँच हज़ार रुपये अपने माथे पर लगाकर बेग में रख लिये। सेठ को अब हनुमान जी पर बहुत ग़ुस्सा आ रहा था क्योंकि उन्होंने भगवान राम की आज्ञा के अनुसार पंडित जी को दस हज़ार रुपये नहीं दिलवाये। सेठ उसी पल मंदिर में गये और ग़ुस्से में एक मुक्का हनुमान जी की मूर्ति पर दे मारा। लेकिन यह क्या, सेठ का मुक्का मूर्ति के साथ एकदम से चिपक गया। अब सेठ अपना हाथ छुड़ाने के लिए जोर लगाने लगा लेकिन लाख प्रयास करने के बाद भी उसे सफलता नहीं मिली।


सेठ अभी छूटने का प्रयास कर ही रहा था कि उसे एक बार फिर भगवान राम की आवाज़ सुनाई दी। उसने ध्यान से सुना तो पता चला कि भगवान राम हनुमान जी से पूछ रहे हैं कि उन्होंने पंडित जी के लिये दस हज़ार का इंतज़ाम करवा दिया या नहीं। हनुमान जी अपने इष्ट को प्रणाम करते हुए बोले, ‘प्रभु, मैंने पाँच हज़ार रुपये का तो इंतज़ाम करवा दिया है और बाक़ी पाँच हज़ार के लिए इस सेठ का हाथ पकड़ रखा है। जैसे ही सेठ पंडित जी को पाँच हज़ार और दे देगा, मैं इसे छोड़ दूँगा।’ सेठ को अब सारा माजरा समझ आ गया था। उसने सोचा कि गाँव वाले उसे इस हाल में देखें उससे बेहतर है कि मैं पंडित को पाँच हज़ार रुपये और देकर बली हो जाऊँ। विचार आते ही सेठ ने हनुमान जी से पंडित को पैसे देने का वादा करा। तब जाकर हनुमान जी ने सेठ को छोड़ा और सेठ ने तुरंत पंडित जी को पाँच हज़ार रुपए दिए।


दोस्तों इस हल्की-फुल्की मज़ेदार सी कहानी में जीवन को बेहतर बनाने का एक बड़ा ही ग़ज़ब का मंत्र छुपा हुआ है जो हमें भगवान श्री कृष्ण ने गीता के माध्यम से सिखाया है। अर्थात् जब हम अपने पूरे मनोयोग से फल की चिंता किए बग़ैर अपना कर्म पूरा करते हैं तब ईश्वर अपने आप ही हमें सारी परेशानियों से मुक्त कर देते हैं और इसके विपरीत अगर हम अपने कार्य में मक्कारी, धूर्त पना, लोभ या ग़लत नियत लाते हैं तो ईश्वर हमें किसी ना किसी रूप में दंड देकर सही राह दिखाते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

 
 
 

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