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बंधन तोड़ें और वर्तमान में जिएँ…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Dec 5, 2024
  • 3 min read

Dec 5, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, स्वतंत्रता की चाह होना बड़ा स्वाभाविक है, लेकिन अक्सर मैंने देखा है कि हम में से ज्यादातर लोग बंधन में रहते हुए ही स्वतंत्र होना चाहते हैं। मेरी बात सुनने में आपको थोड़ी अटपटी लग रही होगी, लेकिन मैं इसे आपको कबीर जी के एक किस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ। एक बार एक राजा कबीर के पास पहुँचे और उनसे दोनों हाथ जोड़ते हुए विनती कर बोले, ‘आप तो इतने पहुँचे हुए संत हैं। कृपा करके मुझे भी इन सांसारिक बंधनों से मुक्ति दिलवा दो।’ कबीर जी पूर्व की ही तरह एकदम शांत भाव के साथ बोले, ‘महाराज! इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आप तो रोज ही पंडित जी से ना सिर्फ़ कथा करवाते हो, बल्कि उसे प्रतिदिन सुनते भी हो।’ राजा बोले, ‘जी! आपने सही कहा, पंडित जी तो रोज कथा सुनाते हैं और मैं सुनता भी हूँ। लेकिन अभी तक मुझे भगवान के दर्शन नहीं हुए हैं। अब आप ही कृपा करें और कोई राह बतायें।’ कबीर जी बोले, ‘ठीक है महाराज। कल मैं भी कथा सुनने के लिए आऊंगा। फिर हम इस विषय पर चर्चा करेंगे।


अगले दिन तय समय पर कबीर जी कथा सुनने के लिए राजमहल पहुँच गए। जैसे ही राजा ने उन्हें देखा वे अपने स्थान पर खड़े हो गए और पूरे आदर के साथ उन्हें स्थान ग्रहण करने का निवेदन करने लगे। उस दिन कथा समाप्त होने के बाद कबीर जी राजा से बोले, ‘राजन! अगर आप प्रभु के दर्शन करना चाहते है, तो आपको मेरी हर आज्ञा का पालन करना पड़ेगा।’ कबीर जी की बात सुनते ही राजा बोले, ‘जी महाराज, मैं आपका हर हुक्म मानने को तैयार हूँ। आप तो बस मुझे भगवान के दर्शन करवा दीजिए।’ कबीर बोले, ‘राजन! आप अपने वजीर को हुक्म दो कि वो मेरी हर आज्ञा का पालन करे।’ राजा के ऐसा करते ही कबीर जी वजीर की ओर देखते हुए बोले, ‘राजा और पंडित दोनों को सामने वाले खम्बों पर बाँध दो।’


कबीर जी का आदेश सुन वजीर राजा की ओर देखने लगा। राजा ने वजीर को आँखों ही आँखों में स्वीकृति दी और उसके बाद वजीर ने सैनिकों को हुक्म देकर राजा और पंडित को दो अलग-अलग खम्बों से बँधवा दिया। इसके पश्चात कबीर जी पंडित से मुख़ातिब होते हुए बोले, ‘पंडित जी, जरा राजा को बंधन से मुक्त कर दीजिए।’ पंडित हैरान होते हुए बोला, ‘कबीर जी, मैं तो खुद ही बँधा हुआ हूँ। उन्हें कैसे खोलूँ भला?’ पंडित की बात पूरी होते ही कबीर जी राजा की ओर देखते हुए बोले, ‘आपके सामने आपके पंडित जी; आपके पुरोहित जी, बँधे हुए हैं। जरा उन्हें खोल दीजिए।’ राजा बड़ी दीनता के साथ बोले, ‘कबीर जी! मैं भी बँधा हुआ हूँ, भला मैं उन्हें कैसे खोलूँ?’ तब कबीर साहिब सबको समझाते हुए बोले-


‘बँधे को बँधा मिले छूटे कौन उपाय,

सेवा कर निर्बन्ध की, जो पल में लेत छुड़ाए!’


अर्थात् जो पंडित स्वयं ही कर्म और जन्म-मरण के बन्धन से छूटा नहीं है, वह भला तुम्हें इनसे कैसे छुड़ा सकता है। अगर तुम सारे बंधनों से छूटना चाहते हो तो किसी ऐसे प्रभु के भक्त के पास जाओ जो आप जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त हो चुका हो।क्योंकि जो बंधनमुक्त हो चुका है, वही हमें भी बंधनों से मुक्त करा सकता है।


उपरोक्त किस्से में जिस तरह पंडित और राजा; चाह या इच्छा याने मोह और लोभ के बंधन से बंधे हुए थे, ठीक उसी तरह स्वतंत्रता की चाह रखने वाले हमारे जैसे लोग भी अपनी आदतों, अपनी इच्छाओं या अपनी लालसाओं में बंधे रहते हुए स्वतंत्रता की चाह रखते हैं। इसीलिए मैंने इस लेख की शुरुआत में कहा था, ‘अक्सर मैंने ज्यादातर लोगों को बंधन में रहते हुए ही स्वतंत्र होने की चाह लिए परेशान होते देखा है।’, जो किसी भी सूरत में संभव नहीं है। दोस्तों, अगर आप वाक़ई स्वतंत्र जीवन जीना चाहते हैं तो मेरा सुझाव है, सबसे पहले ख़ुद को काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि जैसे सभी बंधनों से आजाद कीजिए और फिर वर्तमान में जीना शुरू कीजिए।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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