Oct 24, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, हम सब जानते हैं कि संगत का असर हमारे व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता है। इसीलिए हम अपने बच्चों या अपने से छोटों को अच्छी संगत में रहने की सलाह देते हैं। जिसे वे सामान्यतः अपने तर्कों से नकारते हैं। ऐसी स्थिति में सामान्यतः बड़ों या पालकों के पास एक ही उपाय रहता है, बच्चों पर ग़लत संगत छोड़ने का दबाव बनाना। जिसका वे विरोध करते हैं और परिवार या रिश्तों में अनावश्यक गतिरोध बन जाता है। इस अनावश्यक गतिरोध से बचने के लिए दोस्तों सबसे अच्छा उपाय इस स्थिति को बच्चे की नज़र से देखना है। उदाहरण के लिए मैं आपसे हाल ही में घटी एक घटना साझा करता हूँ। एक सज्जन अपने बच्चे को लेकर मेरे पास आए और बच्चे की संगत संबंधी अपनी समस्या समझाते हुए बोले, ‘सर, मेरे लाख समझाने के बाद भी यह समझ नहीं रहा है। बस मेरे सामने उससे दूर होने का नाटक करता है, लेकिन कुछ ही दिनों बाद वापस से पुराने ढर्रे पर लौट जाता है।’ पिता की बात सुनने के बाद मैंने जब बच्चे से बात करी तो मुझे एहसास हुआ कि उसकी समस्या तो कुछ और ही है। वह अपनी तरफ़ से ग़लत संगत छोड़ने का हर संभव प्रयास कर रहा है, लेकिन ग़लत व्यक्ति के अनावश्यक दबाव और प्रभाव के कारण वह सफल नहीं हो पा रहा है। मैंने उस बच्चे को एक कहानी सुनाई जो इस प्रकार थी-
माँ गंगा के किनारे दो सगे भाई कुटिया बना कर रहा करते थे। एक ही वातावरण में रहने के बाद भी दोनों भाइयों की सोच में बड़ा अंतर था। जिसके कारण दोनों ही अपना जीवन, अपनी-अपनी शर्तों, अपनी-अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर जिया करते थे। जैसे छोटे भाई का यह मानना था कि ‘आप भले, तो जग भला’, अर्थात् वो हमेशा ख़ुद की अच्छाइयों पर ध्यान देकर जीवन जिया करता था। जबकि इसके ठीक विपरीत उनके बड़े भाई, हमेशा ख़ुद को अच्छा रखने के साथ-साथ, अपने आस-पास के माहौल को भी अच्छा रखने का प्रयास किया करते थे। इसीलिए वे हमेशा अच्छे लोगों का साथ चुना करते थे।
एक बार छोटे भाई की दोस्ती दुष्ट प्रवृति के एक व्यक्ति से हो गई। शुरू में वे सामान्य बातचीत किया करते थे लेकिन बार-बार मिलने और साथ में समय बिताने के कारण वे दोनों अच्छे मित्र बन गए और उनके आपस में मिलने का सिलसिला भी काफ़ी बढ़ गया। शुरुआती कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन गुजरते वक्त के साथ-साथ दुष्ट प्रवृत्ति के साथी की अपेक्षायें काफ़ी बढ़ने लगी। अब वह अपनी अमीरी याने पैसों के बारे में बार-बार बताकर उस सीधे-साधे इंसान को गलत कार्यों के लिए उकसाने लगा। जैसे वह कभी सिगरेट तो कभी मदिरा पीने के लिए कहता था, तो कभी जुआँ खेलने के लिये। जिसका विरोध हमेशा उस सीधे-साधे व्यक्ति का बड़ा भाई किया करता था। एक दिन तो हद ही हो गई, वह दुष्ट व्यक्ति उस सीधे-साधे इंसान के पास पहुँचा और उसे अपराध करने के लिए उकसाने लगा। इसका प्रभाव उस सीधे-साधे व्यक्ति पर बहुत ज़्यादा पड़ा और वह बीमार हो गया और उसने खाना-पीना भी छोड़ दिया। अब वह बहुत उदास रहता था। एक दिन बीमारी के विषय में पता पड़ने पर बड़ा भाई अपने छोटे भाई से मिलने के लिये उसकी कुटिया में पहुँचा। भाई को बुरे हाल में देखकर, उसने जब इसका कारण जानना चाहा तो उसे पता चला कि यह दुष्ट व्यक्ति की संगति का असर है। उसने छोटे भाई को साँप जैसे उस दुष्ट व्यक्ति की मित्रता से छुटकारा पाने की सलाह देते हुए कहा, ‘भाई, मेरा मानना है कि तुम्हें उस दुष्ट इंसान से उसकी प्रियतम वस्तु माँगना चाहिए। यही किसी भी व्यक्ति को अपने से दूर रखने का श्रेष्ठ उपाय है।’
छोटे भाई को अपने बड़े भाई की बात पसंद आ गई। अगली बार जब वह दुष्ट आदमी उस सीधे-साधे आदमी की कुटिया में पहुँचा तो उसने उससे बहुत सारे पैसे और उसकी प्रिय गाड़ी कुछ दिनों के लिए माँग ली। इसे सुनकर दुष्ट आदमी ने कुछ बहाना बनाया और उसी पल वहाँ से चलता बना। इसके पश्चात् भी उस सीधे-साधे इंसान की मुलाक़ात उस दुष्ट से हुई, उस सीधे-साधे इंसान ने पूर्व की ही तरह उससे हर बार कुछ पैसे और उसकी प्रिय गाड़ी उधार माँग ली। कुछ ही दिनों में स्थिति ऐसी हो गई कि वह दुष्ट आदमी इस सीधे-साधे आदमी को दूर से ही देखकर अपना रास्ता बदलने लगा। कहानी सुनते ही उस बच्चे के चेहरे पर हंसी आ गई और वह बोला, ‘मैं समझ गया अंकल, अब जल्द ही आपको इसका परिणाम देखने को मिलेगा।
याद रखियेगा दोस्तों अक्सर बच्चे सही बात समझने के बाद भी उस पर अमल सिर्फ़ इसलिए नहीं कर पाते हैं क्योंकि उन्हें उसे अमल में लाने का सही तरीक़ा पता नहीं होता है। इसलिए उन्हें किसी भी समस्या का कोई भी समाधान बताने से पहले, समस्या को उनकी नज़र से देखना लाभदायक रहता है। अगर आप ऐसा करेंगे तो उन्हें ज़्यादा जल्दी समस्याओं से मुक्ति दिला पायेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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