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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

बच्चों कि परवरिश में रखें इस बात का ख़्याल…

July 18, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत कल घटी एक घटना से करता हूँ। पारिवारिक कार्य से मुझे कल एक शिक्षण संस्थान में जाने का मौक़ा मिला। जब मैं वहाँ पहुँचा तब शिक्षण संस्थान के संचालक एक माता-पिता की काउन्सलिंग कर रहे थे। मुझे वहाँ देखते ही उन्होंने मेरा परिचय उस दम्पत्ति से करवाया और मुझसे निवेदन किया कि मैं उनकी समस्या का समाधान निकालने में उनकी मदद करूँ। जब मैंने उनसे पूरी बात विस्तार से बताने के लिए कहा तो मुझे पता चला कि उनके बच्चे ने शिक्षण संस्थान के नाम पर पिता को एक महँगा मोबाइल और लैपटॉप किश्तों पर ख़रीदने के लिए बाध्य किया है। इतना ही नहीं एक वर्ष पूर्व उसने पिता को दूरी और समय की समस्या को बताते हुए एक लाख से ज़्यादा की बाइक किश्तों पर ख़रीदने पर मजबूर किया था। इतना ही नहीं महँगे कपड़े पहनना, बाहर खाना और अन्य तरीके से दिखावा करना, अब उस बच्चे की सामान्य दिनचर्या का हिस्सा था। जब पिता उसे इस विषय पर समझाने का प्रयास करते थे तो वह अक्सर चिढ़ ज़ाया करता था।


दोस्तों, यह बच्चा ही नहीं बल्कि पिछले कुछ वर्षों में बच्चों की परवरिश के संदर्भ में कई माता-पिता से हुई बातचीत के दौरान मैंने पाया है कि ज़्यादातर मध्यमवर्गीय या उच्च मध्यमवर्गीय माता-पिता आजकल बच्चों की डिमांड से काफ़ी परेशान चल रहे हैं। इसकी मुख्य वजह बच्चों की सोच में आया एक बड़ा परिवर्तन है। वे आजकल छोटी सी छोटी चीज़ को भी ज़रूरत या उपयोगिता के आधार पर मूल्यांकित करने के स्थान पर, ब्रांड नेम के आधार पर लेना पसंद करते हैं। कम उम्र में ही उन्हें महँगा और ब्रांडेड मोबाइल, लैपटॉप, घड़ी, गाड़ी, कपड़े आदि चाहिए रहते हैं क्यूँकि वे उनका प्रदर्शन अपने दोस्तों या समाज के बीच करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी सम्पन्नता और ख़ुशी दिखावे पर निर्भर करती है। अर्थात्, वे किस ब्रांड का सामान अपने साथ रखते हैं, कैसी जीवनशैली अपनाते हैं, वे कहाँ आते-जाते हैं, कैसे कपड़े पहनते हैं आदि ही उनकी छवि बनाता है।


अब मुख्य सवाल आता है, आख़िर बच्चों की सोच में यह परिवर्तन आया कैसे? मेरी नज़र में दोस्तों इसकी सबसे बड़ी वजह हम पालकों के व्यवहार में छुपी हुई है। इसे समझने के लिए आपको अपने बच्चों की परवरिश करने की तुलना, अपने माता-पिता द्वारा की गई परवरिश से करनी होगी। अगर आप यह तुलना करके देखेंगे तो आप पाएँगे कि आपकी परवरिश अच्छे से हो जाए इसलिए आपके माता-पिता ने अपने सपनों को बहुत कम उम्र में ही छोड़ दिया था। उनकी प्राथमिकता हमेशा बच्चों की अच्छी शिक्षा, संस्कार और कैरियर रहा। वे हमेशा सही मूल्यों पर सफलता के पक्षधर थे। इसके विपरीत अगर हम अपनी बात करें तो आज हम 50 की उम्र के बाद भी अपने सपनों जैसे बड़ा पद, बड़ा घर, बड़ी गाड़ी, ढेर सारे पैसे आदि के पीछे पड़े रहते हैं और हममें से कई लोग तो ‘किसी भी मूल्य पर सफलता’ पाने की दौड़ में लगे रहते हैं। हमने संसाधनों की पूर्ति के द्वारा अच्छी पेरेंटिंग के लक्ष्य को पाने का प्रयास करा है। जबकि इसके ठीक विपरीत हमारे पालकों ने समय और जीवन का मूल्य देकर हमें बेहतर बनाने का प्रयास करा। चूँकि हम संतोषी स्वभाव नहीं रख पाए और अपनी ज़रूरतों या सपनों को पूरा करने में व्यस्त रहे, इसलिए हमारे बच्चे मूल्य आधारित शिक्षा में कमी और नवीन तकनीक जैसे मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट, टी॰वी॰ पर उपलब्ध ढेरों जानकारियों के जाल में उलझकर उपभोक्तावाद के शिकार हो गए।


दोस्तों, अगर आप अपने बच्चों को उपभोक्तावाद के इस जंगल से बचाना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएँ। अपने समय का उपयोग अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर करने का प्रयास करें। इसके साथ ही आप अपने बच्चों को जो बातें या चीज़ें सिखाना चाहते हैं, वैसा जीवन खुद जीना शुरू करें। याद रखिएगा, बच्चे हम जो कहते हैं से कई गुना ज़्यादा हम क्या करते हैं, से सीखते हैं। जब आप मूल्य आधारित संतोषी जीवन जीना शुरू करेंगे, तो वे भी आपके पद चिन्हों पर चलने का प्रयास करेंगे। शायद इसीलिए कहा गया है, ‘पूत कपूत तो क्यों धन संचय और पूत सपूत तो क्यों धन संचय!!!’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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