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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

बच्चों के नज़रंदाज़ करने के बाद भी उन्हें सही बातें बताते रहें…

Feb 7, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के कॉलम की शुरुआत इतिहास के पन्नों से लिए गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन के एक प्रसंग से करते हैं। सामान्यतः भक्ति में लीन रहने वाले तुलसीदास जी अपने करीबी या मिलने आए लोगों के साथ सत्संग किया करते थे। अर्थात् वे उनसे धर्म, जीवन दर्शन जैसे विषयों पर चर्चा किया करते थे। एक दिन ऐसी ही चर्चा के दौरान उनसे किसी भक्त ने एक सवाल करते हुए पूछा, ‘स्वामी जी, कभी-कभी भक्ति में मन नहीं लगता है और इच्छा होती है कि सब-कुछ उसी पल छोड़ दूँ। ऐसी विकट और विपरीत परिस्थिति में भी मैं ईश्वर को याद करने, अपना जप या प्रभु सिमरन करने बैठ जाता हूँ। क्या यह उचित है? और क्या ऐसे सिमरन का भी कोई फल मिलता है?


प्रश्न सुन गोस्वामी तुलसीदास जी कुछ पलों के लिए शांत रहे फिर मुस्कुराते हुए अपने चिर परिचित अन्दाज़ में बोले, ‘तुलसी मेरे राम को रीझ भजो या खीज। भौम पड़ा जामे सभी उल्टा सीधा बीज।।’ अर्थात् उपरोक्त प्रश्न के जवाब में तुलसीदास जी बोले ज़मीन में जब बीज बोते हैं तब यह नहीं देखा जाता है कि बीज उल्टे पड़े हैं या सीधे। उन्हें तो बस जैसे भी हैं वैसे ही बो दिया जाता है, कालांतर में यही बीज अच्छी फसल को जन्म देते हैं। ठीक इसी तरह प्रभु का सुमिरन कैसे भी किया जाए उसका फल अवश्य मिलता है।


दोस्तों, तुलसीदास जी का उपरोक्त क़िस्सा मुझे तब याद आया जब कल मुझसे एक शिक्षक द्वारा रोट लर्निंग अर्थात् रट कर पढ़ने के संदर्भ में एक प्रश्न पूछा, ‘सर, बच्चों को रट कर याद कराना उचित है या नहीं?’ वैसे यह एक ऐसा प्रश्न है जो अक्सर किसी ना किसी रूप में मुझसे माता-पिता या शिक्षक पूछते ही रहते हैं क्योंकि सामान्यतः हम रटने को पूर्णतः ग़लत मानते हैं और बच्चों को हमेशा समझने एवं अपने शब्दों में लिखने के लिए प्रेरित करते हैं, जो सही भी है।


लेकिन दोस्तों, इसका अर्थ कहीं से भी यह नहीं निकलता है कि रटना पूरी तरह ग़लत है। जिस तरह समझना, पढ़ने की एक प्रक्रिया है, ठीक उसी तरह रटना भी किसी चीज़ को याद रखने की एक प्रक्रिया है। जब आप किसी एक ही बात को जाने या अनजाने में बार-बार दोहराते हैं तो वह बात आपके कॉर्टेक्स याने दिमाग़ के एक विशेष हिस्से में अंकित हो जाती है और आवश्यकता पड़ने पर आप उसे अवचेतन याने सबकॉन्शियस स्थिति में भी काम में ले पाते हैं। जैसे आवश्यकतानुसार बिना सोचे गाड़ी में ब्रेक का प्रयोग करना, ‘ए’ फ़ॉर पूछे जाने पर ऍप्पल कहना, आदि।


वैसे भी दोस्तों, तकनीकी तौर पर तीन तरह के लर्नर होते हैं। पहले, ऑडिटरी, जो बोलकर या सुनकर चीजों को सीख लेते हैं। दूसरे, विज़ूअल याने जो देखकर सीखते हैं और अंत में तीसरे, बॉडिली किनेस्थेटिक लर्नर याने जो किसी भी कार्य को करके सीखते हैं। आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि हर लर्नर सामान्यतः तीनों ही तरीक़ों से सीखता है, बस वह इन तीन तरीक़ों में से किसी एक तरीके का प्रयोग ज़्यादा करता है या किसी एक तरीके से जल्दी सीखता है।


दोस्तों, इस आधार पर भी देखा जाए तो भी रोट लर्निंग याने रटकर पढ़ने की प्रक्रिया को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता हैं।हालाँकि शब्द और समय सीमा में रहकर तकनीकी तौर पर इस विषय को अभी समझाना सम्भव नहीं होगा। इसलिए अंत में सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूँगा कि बच्चों को अच्छी और ज़रूरी बातों को बार-बार कह कर बताना, याद रखने वाली बातों, सूत्रों या चीजों को बार-बार दोहराने देना, आवश्यकता अनुसार कुछ बातों को रटने देना कहीं से भी ग़लत नहीं है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो बच्चों के नज़रंदाज़ करने के बाद भी उन्हें सही बातें बार-बार बताते रहें, ऐसा करना अंततः बच्चों को आवश्यकतानुसार सही बातों को सही समय पर प्रयोग करना सिखाता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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