Dec 24, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, बच्चों को सफल बनाने की तथाकथित मानक प्रक्रिया अपनाने के बाद हमारी अपेक्षा हमारे बच्चों से बहुत बढ़ जाती है। हम चाहते हैं कि वे आज्ञाकारी, अनुशासित होने के साथ-साथ अपनी कक्षा में अव्वल आयें और आगे चलकर अच्छा कैरियर बनाएँ, जिससे वे बहुत सारा पैसा कमा सकें और एक बेहतरीन और सुरक्षित जीवन जी सकें। उपरोक्त अपेक्षा के साथ की गई पेरेंटिंग का अक्सर हमें उल्टा परिणाम मिलता है। इसीलिए आपको आजकल बच्चों में ग़ुस्सा, हड़बड़ाहट, अविश्वास, अनचाहा डर, तनाव, दबाव जैसी नकारात्मक बातें ज़्यादा नज़र आती है। दोस्तों अगर आप इस स्थिति से बचकर बच्चों के साथ सकारात्मक मज़बूत रिश्ता बनाना चाहते हैं तो बच्चों को अपनी अपेक्षाएँ बताने के स्थान पर यह जानने का प्रयास करें कि वे आपसे क्या अपेक्षा या उम्मीद रखते हैं। कल हमने बच्चों की ऐसी ही 11 अपेक्षाओं में से पहली तीन अपेक्षाओं को जाना था। आइये अगली 4 अपेक्षाओं को जानने से पूर्व हम उन्हें संक्षेप में दोहरा लेते हैं-
पहली अपेक्षा : अनकंडीशनल लव याने बिना शर्त प्यार
सामान्यतः हम विशेष परिस्थितियों में अपने बच्चों को एहसास कराते हैं कि हम उनसे कितना प्यार करते हैं। इसके स्थान पर सामान्य परिस्थितियों में बच्चों को बिना शर्त गले लगाना, चूमना और प्यार करना उन्हें भावनात्मक रूप से मज़बूत बनाकर सुरक्षित माहौल में होने का एहसास कराता है और एक अपेक्षा रहित सकारात्मक रिश्ते की नींव बनाता है।
दूसरी अपेक्षा : समय
तेज़ी से भागती दुनिया में अपने अस्तित्व को बनाए रखने के प्रयास में अक्सर परिवार को समय देना मुश्किल हो जाता है। सही समय पर बच्चों को समय ना दे पाने अक्सर रिश्तों में भावनात्मक दूरी पैदा कर देता है। जिससे बचने के लिए अक्सर लोग बच्चों को ज़्यादा सुविधा और संसाधन देने लगते हैं। लेकिन अगर आप इस स्थिति को बच्चे के नज़रिए से देखेंगे तो पायेंगे कि उन्हें हमारे द्वारा दी गई सुविधाएँ और संसाधन नहीं हमारा समय चाहिए। बच्चों के साथ बिना किसी उद्देश्य के समय बिताना याने उनके साथ खेलना, पढ़ना, बाहर जाना या सिर्फ़ सामान्य बातें करना आपसी रिश्ते को सकारात्मक रूप से मज़बूत बनाता है।
तीसरी अपेक्षा : अटेंशन
बच्चे आपकी बात पर पूरा अटेंशन देंगे, यह अपेक्षा रखने के स्थान पर उनकी बातों को ध्यान से सुनना, उनके विचार और नज़रिए को जानना, आपको उन्हें बेहतर तरीक़े से समझने का मौक़ा देता है और साथ ही उन्हें एहसास करवाता है कि आप उनका, उनके नज़रिए का, उनकी सोच का सम्मान करते हैं, जो निश्चित तौर पर आपसी रिश्तों को बेहतर बनाता है।
चलिए दोस्तों अब हम अगले 4 सूत्र सीखते हैं-
चौथी अपेक्षा : सकारात्मक और प्रेरणादायी
अक्सर बच्चों को हक़ीक़त का सामना करवाने के प्रयास में माता-पिता उनकी कमियाँ निकालना और तुलना करना शुरू कर देते हैं। इसके स्थान पर अगर बच्चों को प्रोत्साहित किया जाता, तो वे अपने जीवन में ज़्यादा अच्छा प्रदर्शन करते। जी हाँ दोस्तों जब आप बच्चों को उनकी उपलब्धियों याद दिलाते हुए सकारात्मक रूप से प्रोत्साहित करते हैं और उनके प्रयासों की प्रशंसा करते हैं तब आप उनका आत्मविश्वास बढ़ाते है। इस बढ़े हुए आत्मविश्वास और सफलता के भाव के कारण बच्चे खुश रहते हुए अपनी सकारात्मक छवि बना पाते हैं।
पाँचवीं अपेक्षा : समझाने की अपेक्षा समझने वाले
आपसी विश्वास और परस्पर सम्मान का भाव सकारात्मक रिश्तों की जड़ होता है। इसलिए उनपर विश्वास रखें और उन्हें समझने का प्रयास करें। छोटी-मोटी ग़लतियों पर उन्हें डाँटने या समझाने के स्थान पर उन्हें समझें; उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार करें। ऐसा करना आपके रिश्तों को सकारात्मक रूप से मज़बूत बनाता है।
छठी अपेक्षा : स्वतंत्रता
जब आप बार-बार बच्चों पर अपने निर्णय थोपते हैं तो वे स्वयं को बंधा हुआ महसूस करते हैं। इसके स्थान पर अगर आप उन्हें उनकी उम्र के अनुसार निर्णय लेने और विकल्प चुनने की आज़ादी देते हैं तो वे स्वयं को विकसित कर पाते हैं और स्वतंत्र रूप से कार्य करना सीख पाते हैं। इतना ही नहीं ऐसा करना उन्हें सही और ग़लत को समझना सिखाने के साथ आत्मनिर्भर बनाता है।
सातवीं अपेक्षा : स्वीकारना
बच्चे चाहते हैं कि आप उन्हें वैसे ही स्वीकारें जैसे वे हैं इसलिए उन पर अपनी बातें थोपना बंद करें। जब आप उनके शौक़, पसंद-नापसंद, रुचियों, आदतों का समर्थन करते हैं, तब आप उनके दिल में अपने लिए जगह बनाते हैं जो अंततः सकारात्मक रूप से आपके रिश्तों को मज़बूत बनाता है। इसलिए आज से ही उन्हें वह करने के लिए प्रोत्साहित करें, जो उन्हें पसंद है।
आज के लिए इतना ही दोस्तों कल हम बच्चों के साथ अपने रिश्तों को सकारात्मक बनाने के अंतिम 4 सूत्र सीखेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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