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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

बच्चों को इंटेलीजेंट नहीं, संस्कारवान बनाएँ…

Dec 09, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अक्सर सामान्य लोगों को लगता है कि दौलत और ज्ञान की सहायता से वे समाज में इज़्ज़तदार बन सकते हैं। अर्थात् समाज में इज्जत पाने के लिए आपका पैसे वाला और इंटेलीजेंट होना आवश्यक है। लेकिन मेरी नज़र में यह एक ग़लत धारणा है। मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूँ जो ना तो बहुत अधिक पैसे वाले हैं और ना ही उनकी गिनती ज्ञानियों या इंटेलीजेंट लोगों में होती है, फिर भी समाज उनकी बहुत इज्जत करता है, जानते हैं क्यूँ? क्यूँकि ये सभी लोग शिष्टाचारी और चरित्रवान हैं।


इसीलिए तो चरित्र धन को सबसे बड़ा धन और शिष्टाचारी और चरित्रवान व्यक्ति को सबसे बड़ा धनी माना गया है। इसलिए अगर आप वाक़ई ‘धनी’ बनना चाहते हैं, तो आपको सबसे पहले ‘चरित्र धन’ कमाना होगा अर्थात् शिष्टाचारी और चरित्रवान बनना होगा और यह बुराइयों अर्थात् बुरी आदतों को छोड़े बग़ैर सम्भव नहीं है। इसीलिए दोस्तों भारतीय सभ्यता में बच्चों को बुराइयों और बुरी संगति से दूर रख, चरित्रवान बनाने के लिए प्रयास किया जाता है।


आप सोच रहे होंगे मैं आधुनिक जमाने में क्या दक़ियानूसी बातों को लेकर बैठ गया हूँ। आप तर्क के रूप में यह भी कह सकते हैं कि ‘मैं स्वयं ऐसे कई लोगों को जानता हूँ जिनका उपरोक्त बातों से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन फिर भी वे आराम की ज़िंदगी जी रहे हैं।’ अर्थात् इस दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो ना तो शिष्टाचारी हैं और ना ही चरित्रवान, लेकिन फिर भी वे ढेर सारा धन कमा कर, आराम से जीवन जी रहे हैं।


दोस्तों, इस विषय में मेरी धारणा या मेरा मानना कुछ अलग है। जिसे आप 'आराम का जीवन’ कह रहे हैं, वो हक़ीक़त में ‘दूर के ढोल सुहाने’ समान है। जीवन के अपने थोड़े से अनुभव से मैंने यह पाया है कि दक़ियानूसी सी लगने वाली उपरोक्त बात ही जीवन में हमें सच्चा सुख दे सकती है। इसके बिना हम अपने दिल पर अनावश्यक बोझ लिए जीवन जीते हुए, इस भवसागर को पार करने का असफल प्रयास करते हैं। अपनी बात को मैं एक छोटे से उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ।


मान लीजिए हमारे पास दो लोटे हैं, जिनमें से एक लोटा एकदम नया, चमचमाता हुआ है और दूसरा थोड़ा पुराना। इसमें से जो चमकदार लोटा है उसके पेंदे में एक छेद है और पुराना लोटा एकदम सही सलामत। अब हम इस नए, चमकदार और पुराने लोटे को एकसाथ नदी में प्रवाहित करते हैं। अब आप बताइए दोनों में से कौन सा लोटा नदी में ज़्यादा देर तक तैरता रहेगा या उसके दूसरे छोर तक जा पाएगा? निश्चित तौर पर आप कहेंगे, ‘जो सही सलामत है, वो तैरेगा और जिसमें छेद है, वह डूबेगा क्यूँकि उसके पेंदे में छेद था, जिसकी वजह से लोटे के अंदर धीरे-धीरे पानी भर गया और बढे हुए वजन की वजह से लोटा पानी में डूब गया।


जिस तरह दोनों लोटे रंग-रूप, प्रकृति आदि में एक समान थे, लेकिन फिर भी पेंदे में सिर्फ़ एक छेद की वजह से एक लोटा पानी में डूब गया। ठीक इसी तरह इंसान दिखने में एक समान हो सकते हैं, लेकिन चरित्र में दोष या कमी होने पर वह पतन के गर्त में चले जाते है। जबकि इसके ठीक विपरीत सच्चरित्र व्यक्ति इस संसार में उन्नति करते हुए इस भवसागर को आसानी से पार कर जाता है। इसलिए दोस्तों, इंटेलीजेंट और पैसेवाला होने से ज़्यादा ज़रूरी संस्कारवान बनना है और यही बात हमें अपने बच्चों या आने वाली पीढ़ी को भी सिखाना होगी। तभी यह दुनिया और बेहतर बन पाएगी।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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