Dec 12, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, आप कोयल को देख लें या कौवे को या फिर गौरैया से लेकर बाज को, आप पाएँगे कि प्रकृति ने सभी पंछियों को लगभग एक जैसा बनाया है। याने सभी पंछियों के दो पैर, दो पंख, दो पंजे, चार से पाँच उँगली दी हैं। एक समान संरचना होने के बाद भी इन पंछियों की क्षमता इन्हें दूसरे पक्षियों से अलग बनाती है। अपनी बात को मैं आपको बाज के उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ, जो अपनी जीवनशैली के कारण ख़ुद को अन्य पक्षियों से अलग करता है।
जी हाँ साथियों, किसी भी पक्षी के उड़ने की अधिकतम क्षमता याने १२ किलोमीटर की ऊँचाई पर उड़ने वाला यह पक्षी अपने चूज़े को जन्म के साथ ही विशेष बनाने के लिए कार्य करता है। मादा बाज अपने चूज़े को पंजे में दबाकर मात्र ७ से ९ मिनिट में इस ऊँचाई को प्राप्त करती है और वहाँ से उस चूज़े का काठी प्रशिक्षण शुरू होता है। मादा बाज वहाँ स्थिर होने के पश्चात उस चूज़े को एहसास करवाती है कि वह किन ऊँचाइयों को छूने के लिए पैदा हुआ है। इसके पश्चात मादा बाज उस चूज़े को अपने पंजों से छोड़ देती है। धरती की ओर नीचे आते वक़्त २ किलोमीटर तक तो उस चूज़े को समझ ही नहीं आता है कि उसके साथ क्या हो रहा है? फिर ७ किलोमीटर नीचे आने के बाद वह चूज़ा कंजाइन से जकड़े हुए पंखों को फड़फड़ाने का प्रयास करता है जिससे वह खुलने लगते हैं। कुछ ही पलों में उस चूज़े के पंख पूरे खुलने लगते हैं। धरती से ७००-८०० मीटर की ऊँचाई पर पहुँचते-पहुँचते चूज़ा उड़ने का असफल प्रयास करने लगता है और इसी प्रयास में वह ४००-५०० मीटर की ऊँचाई तक आ जाता है, इस पल उसे लगने लगता है कि उसका अंत निकट है और यह उसकी अंतिम यात्रा है। बस इसी पल उस चूज़े की माँ याने मादा बाज उसे अपने पंजों में जकड़ लेती है। इसके पश्चात यह ट्रेनिंग तब तक निरन्तर चलती रहती है जब तक वह चूज़ा उड़ना ना सीख जाए।
देखा जाये दोस्तों, तो यह ट्रेनिंग बिलकुल कमांडो ट्रेनिंग जैसी होती है जिसमें अधिकतम रिस्क और अधिकतम प्रेशर का सामना करना पड़ता है। इसी का नतीजा होता है सामान्य से पक्षी समान दिखने वाला यह चूज़ा भविष्य में वायु की दुनिया का बेताज अघोषित बादशाह बन जाता है और थोड़े समय बाद अपने से दस गुना वज़नी अधिक प्राणी का शिकार करता है। शायद इसीलिए कहा जाता है, ‘बाज़ के बच्चे मुँडेर पर नही उड़ते।’
दोस्तों, अगर आप भी अपने बच्चों को इस दुनिया का बेताज बादशाह बनाना चाहते हैं तो बच्चों को हमेशा अपने दिल से चिपकाया रखने याने सुरक्षित वातावरण में रखने के स्थान पर उन्हें दुनिया का सामना करने दें और मादा बाज की तरह उसपर नज़रें गढ़ाए रखें। जैसे ही आपको महसूस हो वो कहीं फँसने वाला है बस उसी पल मादा बाज की तरह उसकी मदद करें और इस तरीक़े को तब तक आज़माते रहें, जब तक बच्चा संघर्ष करते हुए जीना ना सीख जाए।
जी हाँ दोस्तों, बच्चों को दुनिया की मुश्किलों से रूबरू कराना, उन्हें मुश्किलों से लड़ना सिखाना या विपरीत स्थितियों में संघर्ष करना सिखाना असल में उन्हें जीवन के लिए तैयार करना है। याद रखियेगा, जिस तरह गमले के पौधे और जंगल के पौधे में बहुत अंतर होता है ठीक उसी तरह चुनौतियों के बीच पले-बड़े बच्चे और सुविधाओं के बीच रहे बच्चों में भी बड़ा अंतर होता है। एक बार विचार कर देखियेगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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