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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

बच्चों को चखनें दें अलग-अलग क्षेत्रों का स्वाद…

Jan 3, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

काउन्सलिंग के लिए आए एक सज्जन अपने बच्चे की कुछ हरकतों से बेहद परेशान थे। इस विषय में उनसे विस्तार से हुई चर्चा के दौरान मैंने महसूस किया कि उनकी मुख्य समस्या बच्चे द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों को आज़माना याने सीखने का प्रयास करना और फिर कुछ ही दिनों में उसे अधूरा छोड़ देना था। उदाहरण के लिए उनके बच्चे ने अभी तक बैडमिंटन, स्केटिंग, गिटार, वैदिक मैथेमैटिक्स, डाँस आदि जैसे कई कोर्स में प्रवेश लिया था, लेकिन किसी भी कोर्स को पूरा नहीं किया। इस विषय में पूछने पर उसका एक ही जवाब रहता था, ‘अब मुझे मज़ा नहीं आ रहा!’, या ‘मैं बोर हो गया हूँ!’, आदि। माता-पिता बच्चे की इस आदत से परेशान हो चुके थे और अब वे उसे किसी भी नए क्षेत्र में हाथ नहीं आज़माने देना चाहते थे। उन्हें लगने लगा था कि बच्चा सिर्फ़ उनके पैसों को बर्बाद करवा रहा है। वैसे सतही तौर पर देखा जाए तो माता-पिता की बात सही भी लगती है।


वैसे मेरी नज़र में यह सिर्फ़ उन सज्जन की नहीं बल्कि ज़्यादातर भारतीय परिवारों की समस्या है। लेकिन मैं इस सोच या धारणा से बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ क्योंकि मेरा मानना है कि ऐसे प्रयोग बच्चों को अपनी क्षमता का विकास करने का मौक़ा देते है, अर्थात् उनके डिस्कर्सिव इंटेलिजेंस को बढ़ाते हैं। अपनी बात को मैं एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।


जंगल में वीरू और शेरू नाम के दो युवा शेर थे। दोनों ही शेरों के बीच प्रगाढ़ दोस्ती थी, इसलिए वे अपना ज़्यादातर समय साथ ही गुज़ारा करते थे। फिर चाहे शिकार करने जाना हो या फिर खेलने या मस्ती करने। हालाँकि जंगल में उनके प्रिय शिकार हिरण की कोई कमी नहीं थी फिर भी एक दिन वीरू ने शेरू से कहा, ‘चलो!, आज हम जंगली सुअर का शिकार करते हैं।’ वीरू की बात सुन शेरू बोला, ‘नहीं-नहीं, हमने अभी तक जंगली सुअर का शिकार करना नहीं सीखा है। वैसे भी जब इतने सारे हिरण हैं तो बेकार में अपनी शक्ति को ज़्यादा शक्तिशाली जानवर के शिकार करने में क्यों बर्बाद करें?’


वीरू ने शेरू को काफ़ी समझाने का प्रयास करा लेकिन वह नहीं माना। अंत में हार मान कर वीरू अकेला ही जंगली सुअर का शिकार करना सीखने के लिए प्रयास करने लगा और कुछ ही दिनों में शुरुआती असफलता के बाद वह शिकार करने में सफल हो गया। उस दिन उसने शेरू को पूरी बात बताई और बोला चलो, अब हम जंगली भैंसे का शिकार करना सीखते हैं। शेरू इस बार भी नहीं माना और वीरू एक बार फिर अकेला ही जंगली भैंसे का शिकार करना सीखने के लिए निकल पड़ा।


बीतते समय के साथ इसी तरह वीरू ने सुअर, बन्दर, ज़ेब्रा, भेड़, नील गाय समेत कई जानवरों का शिकार करना सीख लिया। लेकिन शेरू अभी भी सिर्फ़ हिरणों के शिकार तक सीमित था। जब भी वीरू उसे नए जानवर के शिकार के बारे में सीखने के लिए कहता था तो वह बोलता था, ‘जो तुम्हारे जी में आये, करो, मैं बेकार की चीजों में अपना समय बर्बाद नहीं करूँगा।’


कुछ सालों तक तो सब कुछ ठीक चलता रहा। लेकिन एक बार भयंकर सूखे के समय जब जंगल में हिरणों की संख्या कम हो गई तो शेरू के लिए शिकार करना मुश्किल हो गया था। लम्बे समय तक भूखा रहना के कारण बीतते समय के साथ शेरू बहुत कमजोर हो गया। बढ़ी उम्र व कमजोरी के कारण उसके लिए अब अन्य जानवरों का शिकार करना सीखना असम्भव था। साथियों, आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अंत में शेरू का हश्र क्या हुआ होगा।


इसीलिए दोस्तों, मैंने पूर्व में कहा था अगर बच्चा चीजों को अधूरा सीख कर भी छोड़ रहा है, तो कोई हर्ज नहीं है। यह उसका अपनी पसंद-नापसंद, क्षमता अथवा शौक़ को पहचानने का अपना तरीक़ा भी हो सकता है। आप स्वयं सोचकर देखिएगा, बच्चे स्वाभाविक तौर पर जिज्ञासु होने के साथ, हर नई चीज़ को सीखने के लिए तैयार रहते हैं और बच्चों में स्वाभाविक तौर पर बड़ों के मुक़ाबले रचनात्मकता अर्थात् क्रीएटिविटी अधिक होती है।


जब बच्चा रचनात्मकता के साथ ज़्यादा से ज़्यादा क्षेत्रों का ज्ञान लेने में सफल होता है तब वह अपने सफल होने की सम्भावना को कई गुना बढ़ा लेता है। ऐसे बच्चों में असफल होने का डर ना के बराबर होता है। इसलिए वे जीवन में आसानी से हार नहीं मानते। हार ना मानने का नज़रिया और प्रयोग करने की क्षमता इन्हें अपनी विशेष योग्यता या ईश्वर द्वारा प्रदत्त विशेष शक्तियों को पहचानने का मौक़ा देती है, जिसकी वजह से ऐसे बच्चे अपने जीवन को बेहतर बना पाते हैं, अपने सपनों का जीवन जी पाते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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