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बच्चों को बनाना हो ‘सुपर हीरो’ तो बनें उनके रोल मॉडल…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jul 11, 2023
  • 3 min read

July 11, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरा मानना है कि हर बच्चा अनूठा, अनोखा, प्रतिभाशाली याने अनोखी विशेषताओं वाला होता है। इन असीम क्षमताओं के साथ बच्चे के अंदर मौजूद जिज्ञासा, सकारात्मक सोच और स्वभाविक तौर पर सीखने की ललक उसे सफल और विजेता बना सकती है। लेकिन अक्सर मैंने देखा है कि माता-पिता या पालकों की उसे ‘सुपर हीरो’ बनाने की चाह, बच्चे की स्वभाविक क्षमताओं पर विपरीत प्रभाव डालती है और खुश रहने वाला बच्चा गुस्सैल और चिड़चिड़ा हो जाता है।


दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमारा पूरा प्रयास, जिसमें बच्चे का लालन-पालन और शिक्षा, दोनों आ जाते हैं, का पूरा ज़ोर बच्चे की स्वभाविक क्षमताओं को नज़रंदाज़ कर, किसी निश्चित दिशा में आगे बढ़ाना होता है। अर्थात् बच्चे को हम अपनी सोच के आधार पर ढालने का प्रयास करते हैं, जो निश्चित तौर पर शिक्षा और पेरेंटिंग के मूल सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है।


जी हाँ साथियों, शिक्षा और पेरेंटिंग का मूल उद्देश्य बच्चे के अंदर छुपी प्रतिभाओं को पहचानना और उन्हें निखारने के साथ-साथ कमज़ोरियों को दूर करना भी होता है। यह यात्रा उलझन से शुरू होकर स्पष्टता की ओर ले जाती है। यह बच्चे को सोचना, सही प्रश्न पूछना, समस्याओं के स्थान पर समाधान पर ध्यान लगाना, कुछ नया खोजना आदि भी सिखाती है। लेकिन जब आप खुद उलझन के साथ बच्चों को बड़ा करते हैं, तो उनके अंदर छुपी प्रतिभा कभी बाहर ही नहीं आ पाती है, या यूँ कहूँ, उसकी छिपी हुई क्षमता निखर ही नहीं पाती है।


बच्चों के जीवन में इस उलझन की शुरुआत बोलना या चलना सीखने से पहले उस वक्त शुरू हो जाती है, जब आप उसके मन में अनजानी बातों याने भूत, झोली वाले बाबा, बाऊ आदि का डर बैठाने लगते हैं। इसके पश्चात थोड़ा बड़ा होने पर उसे समझाने के लिए विपरीत भावों वाली बातों को काम में लेना उसे और ज़्यादा नुक़सान पहुँचाता है। जैसे सामान फैलाने या पानी मांगने जैसी स्थिति पर उसे याद दिलाना कि वह अब बड़ा हो गया है और उसे चीजों को व्यवस्थित रखना और अपने काम खुद करना सीखना चाहिए। लेकिन जब यही बच्चा थोड़ी देर बाद कोई औज़ार जैसे हथौड़ी, पेचकस या लाइट सम्बन्धी चीज़ को हाथ में लेता है, तो हम उसे तुरंत याद दिलाते हैं कि ‘तुम अभी छोटे हो।’ इसी तरह पूरे दिन में कई बार हम उसे छोटे-बड़े की उलझन में डालते हैं।


ठीक ऐसी ही स्थिति उसे सही और ग़लत सिखाते समय भी होती है। जैसे टीवी, मोबाइल और इंटरनेट उसे बिगाड़ रहा है, लेकिन अगर हम उसका उपयोग करें तो कोई दिक़्क़त नहीं है; हम कहीं भी बैठ कर खा सकते हैं, लेकिन बच्चे को डाइनिंग टेबल पर ही बैठ कर खाना होगा। सच बोलना उसे अच्छा इंसान बनाता है, लेकिन हम उसके सामने फ़ोन या मोबाइल पर झूठ बोल सकते हैं। कुल मिला कर कहा जाए दोस्तों, तो हमारे कहने और करने का अंतर भी बच्चे को दुविधा में रखता है; उसे उलझनों के साथ बड़ा करता है। ऐसी स्थिति में आप स्वयं सोच कर देखिए, क्या वो आपको आदर्श मान कर अपने जीवन में आगे बढ़ सकता है? शायद नहीं। इसीलिए दोस्तों, महँगी शिक्षा और तमाम सुख-सुविधाएँ भी उसे विशेष योग्यता का धनी नहीं बना पाती है।


अगर आपका लक्ष्य वाक़ई बच्चों को ‘सुपर हीरो’ बनाना ही है तो सिर्फ़ दो काम कीजिए। पहला, उसे अच्छा इंसान बनाइए। इसके लिए आपको बच्चों से कही बातों और उसके सामने किए कार्यों के अंतर को खत्म करना होगा क्योंकि बच्चा सबसे ज़्यादा अपने आदर्शों को देख कर सीखता है और उसके पहले आदर्श आप ही हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उस बच्चे पर पालकों या शिक्षकों ने ‘क्या कहा है’ के स्थान पर ‘क्या करा है’, का प्रभाव ज़्यादा पड़ता है। दूसरी बात, उसे नया रूप देने के स्थान पर उसके अंदर क्या छुपा है, खोजने का प्रयास करें। यक़ीन मानिएगा साथियों, आप निश्चित तौर पर अपने लक्ष्य में सफल हो जाएँगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर


 
 
 

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