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बच्चों को रखें सकारात्मक रूप से व्यस्त…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jul 1
  • 3 min read

July 1, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, हम सब अपने बच्चों को सफल, शिक्षित, संस्कारी और एक बेहतरीन व्यक्तित्व का मालिक बनाना चाहते हैं और इसीलिए अपनी क्षमताओं को नजरअंदाज करते हुए उसे सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करते हैं। लेकिन ज्यादातर पालक इस दौरान यह भूल जाते हैं कि बच्चों को बेहतरीन व्यक्तित्व का मालिक या सफल बनाना सिर्फ़ स्कूल का कार्य नहीं है। याने सिर्फ़ अच्छा स्कूल, अच्छी शिक्षा और अच्छे शिक्षक उसे सफल, शिक्षित, संस्कारी और बेहतरीन इंसान नहीं बना सकते हैं क्योंकि बच्चों का विकास उनके जीवन के संपूर्ण अनुभवों और आदतों से जुड़ा होता है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो सो कर उठने से रात्रि सोने तक मिला हर अनुभव बच्चे को और उसके चरित्र को गढ़ता है। इसलिए माता-पिता या पालक के रूप में यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है कि बच्चे को पूरे समय एक अच्छे और संस्कारित माहौल में रखा जाये क्योंकि बच्चों को मिलने वाला अत्यधिक ख़ाली समय या लम्बा अवकाश उस समय मिले माहौल के आधार पर बच्चों को गढ़ता है।


इसका अर्थ हुआ बच्चों को मिलने वाला अतिरिक्त समय उनके लिए अवसर भी है और ख़तरा भी। अर्थात् बच्चों को मिला फ्री या अतिरिक्त समय उनके चरित्र का सकारात्मक निर्माण भी कर सकता है और उन्हें अव्यवस्था और अनुशासनहीनता की ओर भी ले जा सकता है। वैसे दोस्तों, मेरी यह सोच हमारे अधिकांश माता-पिता की उस सोच के ठीक विपरीत है, जो यह सोचते हैं कि अवकाश का समय बच्चों के लिए आराम और मस्ती का समय है। मेरी नजर में यह समय आराम और मस्ती का सिर्फ़ तभी हो सकता है जब निर्देशित और संतुलित हो अन्यथा यह फ्री या अतिरिक्त समय कई समस्याओं का कारण बन सकता है। जैसे-


1. अनुचित गतिविधियों में संलग्नता

जब बच्चों को दिशा नहीं दी जाती, तो वे शरारतों, अनुशासनहीनता या कभी-कभी खतरनाक गतिविधियों की ओर आकर्षित हो सकते हैं, जो उनके मन में ग़लत धारणाओं और सोच को जन्म दे सकता है। इतना ही नहीं बिना उद्देश्य के समय बिताना उन्हें अनावश्यक जोखिम उठाने के लिए प्रेरित कर सकता है।


2. अस्वास्थ्यकर संगति

खाली समय में यदि बच्चों की संगति सकारात्मक न हो, तो वे ऐसे व्यक्तियों या समूहों की ओर आकर्षित हो सकते हैं, जिनकी जीवनशैली उनके मानसिक और नैतिक विकास पर नकारात्मक असर डाल सकती है। संगति का असर बच्चे के व्यवहार और सोच पर गहरा प्रभाव डालता है और उनकी प्राथमिकताओं व लक्ष्यों को बदल देता है।


3. तकनीकी संसाधनों का गलत प्रयोग

आज के डिजिटल युग में सबसे आम और बड़ा खतरा है, तकनीकी संसाधनों याने मोबाइल, इंटरनेट और अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत। जिसके कारण बच्चे घंटों स्क्रीन के सामने बैठते हैं और शारीरिक निष्क्रियता व असंतुलित खानपान की आदत के शिकार हो जाते हैं। ये लत बच्चों के अंदर गलत आदतों का विकास कर उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को धीरे-धीरे कमजोर करती हैं।


समाधान

दोस्तों, मेरी नजर में इस समस्या का एक ही समाधान है, कम उम्र से ही बच्चों को उद्देश्यपूर्ण गतिविधियों से जोड़ना। जिससे वे अपने खाली समय को उपयोगी और उत्पादक बना सकें। अर्थात् हमें बच्चों को ऐसे कार्यों से जोड़ना चाहिए, जो उनके व्यक्तित्व, रुचियों और कौशल को निखारें। इसके लिए आप निम्न बातों को अपना सकते हैं-

1) दिनचर्या बनाएँ अर्थात् विभिन्न कार्यों के लिए पूर्व से ही समय निर्धारित करें और बच्चों को उस समय के अनुसार कार्य करने की आदत डालें।

2) कला, संगीत, नृत्य, शिल्प जैसी रचनात्मक गतिविधियों को बढ़ावा दें, जिससे बच्चों में रचनात्मकता बढ़े और वे अपने फ्री समय का उपयोग उद्देश्यपूर्ण तरीके से कर पायें।

3) खेलकूद और शारीरिक गतिविधियों को दिनचर्या में शामिल करें, जिससे वे स्वस्थ शरीर के महत्व को समझने के साथ-साथ खेल के मैदान से मिलने वाली सीखों को जीवन में अपना सकें.
4) पढ़ने याने रीडिंग और लिखने याने राइटिंग की आदतें डालें, जिससे बच्चे अपना ज्ञान बढ़ाने के साथ-साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सीख सकें।

5) घर के कार्यों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करें जिससे बच्चे जिम्मेदार बन सकें।


6) सामाजिक सेवा या पर्यावरण संरक्षण जैसे छोटे प्रोजेक्ट्स से जोड़ें जिससे बच्चे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझ सकें।


निष्कर्ष:

अंत में मैं इतना ही कहूँगा कि खाली समय बच्चों को जीवन में आगे बढ़ा सकता है तो वहीं दूसरी ओर उन्हें बर्बाद भी कर सकता है। यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि हम उन्हें किस दिशा में प्रेरित करते हैं। सकारात्मक गतिविधियों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करके हम उन्हें एक सशक्त, अनुशासित और सुसंस्कारित नागरिक बना सकते हैं। इसलिए ही मैं हमेशा कहता हूँ, सकारात्मक रूप से व्यस्त बच्चा ही सुरक्षित और संतुलित बच्चा होता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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