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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

बच्चों को संस्कारी बनाने के दो सूत्र…

May 19, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, बच्चों को आज्ञाकारी बनाना एक ऐसी प्रक्रिया है जो हर माता-पिता को कभी ना कभी चिड़चिड़ाहट और ग़ुस्से का शिकार बना देती है। अगर आप भी इस समस्या का समाधान खोज रहे हैं तो मेरी सलाह पर इस दो सूत्रीय उपाय को काम में लाना तत्काल शुरू कर दीजिए-


पहला - बच्चों को शिक्षाप्रद कहानियाँ सुनाएँ जो अपने अंदर आवश्यक सीख छुपाये हुए हो। जैसे बड़ों की आज्ञा मानने के लाभ सिखाने हो तो आप निम्न कहानी सुना सकते हैं-


बात कई साल पुरानी है, रेगिस्तान का एक व्यापारी ख़ाली समय में अपने सभी ऊँटों को चरने के लिए गाँव के बाहरी इलाक़े में खुला छोड़ दिया करता था। उसका मानना था ऊँटों को खुला छोड़ने से वे शारीरिक रूप से ज़्यादा एक्टिव रहते हैं, अपनी पसंद का चरते हैं और इसी वजह से वे ज़्यादा स्वस्थ और शक्तिशाली बन जाते हैं। वैसे इससे उसको एक और लाभ था, इससे उसका चारे का खर्च भी बच ज़ाया करता था।


व्यापारी के ऊँटों के इस समूह में एक ऊँट का बच्चा भी था, जो बहुत ही शैतान था। अक्सर उसकी हरकतें ऊँटों के पूरे समूह को परेशानी में डाल दिया करती थी। जैसे, चरने के लिए जाते वक़्त अचानक ही समूह से अलग चलना; रास्ते में कहीं ग़ायब हो जाना आदि। बड़े ऊँट उसे हमेशा इस विषय में ज़रूरी बातें समझाया करते थे, लेकिन वह किसी की बातें नहीं सुना करता था। इसलिए गुजरते समय के साथ बड़े ऊँटों ने उसे रोकना, टोकना, समझाना और उसकी परवाह करना कम कर दिया था।


इसके विपरीत व्यापारी को ऊँट का वह छोटा बच्चा बहुत पसंद था। इसलिए उसने ऊँट के इस बच्चे के गले में एक घंटी बांध रखी थी, जो गर्दन हिलाते ही या फिर चलते समय बजा करती थी। इससे व्यापारी और ऊँटों के समूह को उस बच्चे की चलने की स्थिति का पता चल ज़ाया करता था।


एक दिन चरते वक़्त ऊँट का समूह गाँव से थोड़ा ज़्यादा दूर उस स्थान पर चला गया, जहाँ एक शेर की मांद थी। मांद में बैठे शेर को घंटी की आवाज़ से आसपास किसी जानवर के होने का आभास हुआ। उसने गुफा से निकल कर देखा तो उसे वहाँ ऊँटों का एक समूह नज़र आया। लेकिन ऊँटों की संख्या और बल को देखते हुए शेर ने उनपर हमला करने के स्थान पर, सही मौक़े का इंतज़ार करना उचित समझा और वह वहीं झाड़ियों में छुप गया।


शेर के हिलने-डुलने से झाड़ियों में हुई सरसराहट ने ऊँटों के समूह को ख़तरे का आभास करा दिया। समूह के बड़े ऊँट ने अपनी मण्डली को सचेत होने का इशारा किया और समूह बनाकर गाँव की ओर चलने के लिए कहा, विशेषकर छोटे बच्चे को। लेकिन ऊँट का बच्चा अपनी मस्ती में ही मशगूल रहा और उसने बड़े ऊँटों की चेतावनी को नज़रंदाज़ कर दिया और लापरवाही के साथ चलता रहा।


वरिष्ठ ऊँट ने समूह की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तेज गति से गाँव की ओर चलना शुरू कर दिया। लेकिन छोटा ऊँट अपनी मन की करता हुआ पीछे रह गया। शेर ने इसे शिकार का उचित मौक़ा मानते हुए ऊँट के बच्चे पर हमला कर दिया। छोटा ऊँट अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागा और साथ ही चिल्ला-चिल्ला कर अपने वरिष्ठों से बचाने की गुहार लगाने लगा। उसकी आवाज़ सुन ऊँटों का समूह तेज़ी से लौटा और सबने मिलकर शेर पर हमला कर दिया। उस दिन बड़ी मुश्किल से ऊँट के बच्चे की जान बचाई जा सकी। हालाँकि इतनी देर में छोटा ऊँट काफ़ी घायल हो चुका था। लेकिन इस घटना ने उसे हमेशा बड़ों की आज्ञा पालन करने के फ़ायदे का एहसास करा दिया था।


दूसरा - बच्चों के सामने वैसा ही व्यवहार कीजिए जैसा आप उनसे चाहते हैं क्योंकि बच्चे निर्देशों के मुक़ाबले आपको देख कर ज़्यादा सीखते हैं।


आशा करता हूँ दोस्तों उपरोक्त साधारण सूत्र आपको बच्चों के बेहतर लालन-पालन में मदद करेंगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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