Sep 6, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, हाल ही में हुए एक अनुभव ने मुझे आचार्य चाणक्य के कहे कथन की याद दिला दी कि, ‘शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण दोनों ही उसकी गोद में पलते हैं।’ आप सोच रहे होंगे कि आज के लेख की शुरुआत सीधे एक कथन से क्यूँ? तो चलिए पहले एक घटना पर चर्चा कर लेते हैं।
10 वर्षीय चिंटू (यहाँ पिता के निवेदन पर नाम बदल दिया है) अपने परिवार के साथ कार से मध्यप्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर से बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन जा रहा था। रास्ते में पड़ने वाले क़स्बे साँवेर के पास परिवार के सदस्यों ने रुककर भुट्टे खाने का निर्णय लिया। चिंटू के पिता ने सावधानी पूर्वक गाड़ी रोड साइड पार्क करी और एक ठेलेवाले को भुट्टे सेककर देने का ऑर्डर देने चले गए। तब तक परिवार के अन्य सभी सदस्य गाड़ी से उतरकर, सड़क-किनारे खड़े हो गए और आपस में हंसी-मज़ाक़ करने लगे।
कुछ ही देर में चिंटू के पिता भुट्टे लेकर आ गए और सभी लोग साथ में भुट्टों का आनंद लेने लगे। भुट्टे खाते हुए हंसी-मज़ाक़ के इसी दौर में परिवार के सदस्य इतने मगन हो गए कि उन्हें इस बात का भान ही नहीं रहा कि वे भुट्टे वाले के पैसे चुकाना भूल गए और गाड़ी में बैठकर अपने गंतव्य की ओर चल दिए। लगभग 5-7 किलोमीटर चलने पर जब चिंटू के पिता को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने इस विषय में अपने परिवार से चर्चा करी।
परिवार के कुछ सदस्यों ने ‘रात गई, बात गई’ के आधार पर इसे भूल जाने का सुझाव दे दिया, वही परिवार के कुछ युवा बच्चे ‘फ़्री की पार्टी’ पर ज़्यादा ही उत्साहित हो गए। लेकिन 10 वर्षीय चिंटू को अपने परिवार का यह नज़रिया बिलकुल अच्छा नहीं लगा और वह अपने पिता के पीछे पड़ गया कि आप अभी वापस चलिए और उस भुट्टे वाले से माफ़ी माँग कर उसके पैसे चुकाइए। पिता ने चिंटू को समझाने का प्रयास किया कि हम इंदौर वापस लौटते समय पैसे चुका देंगे, लेकिन चिंटू तो मानने के लिए राज़ी ही नहीं था। वह बार-बार कह रहा था, ‘हमारी मैडम ने सिखाया है कि जैसे ही तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो तुरंत माफ़ी माँगो और गलती को सुधारो। गलती सुधार कर ही हम महान बन सकते हैं।’
पिता मामले की गम्भीरता तुरंत भाँप गए और उन्होंने चिंटू की बात को नज़रंदाज़ करने के स्थान पर तुरंत मान लिया और उसी पल वापस जाकर भुट्टे वाले से माफ़ी माँगी और उसका हिसाब चुकता कर दिया। हो सकता है दोस्तों, आपके मन में आ रहा हो कि यह तो इतनी प्रेरणादायी घटना है। फिर मैं क्यूँ चिंटू का असली नाम नहीं ले रहा हूँ? तो चलिए आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि जब इस विषय में मैंने चिंटू के पिता से बात करी तो उनका कहना था, ‘सर, आपके लेख में नाम तो हमारा आना चाहिए।’ मैंने आश्चर्य के साथ जब इसका कारण पूछा तो वे बोले, ‘सर, समझदार और सक्षम होते हुए भी हमने किसी गरीब के हक़ को मारने के विषय में सोचा था। चिंटू तो बस इंसानियत के नाते जो होना चाहिए, वही कह रहा था।’
वैसे दोस्तों, चिंटू के पिता की बात थी तो एकदम सही, इंसान से इंसानियत की अपेक्षा करना सामान्य ही होना चाहिए। इस पूरी घटना में असामान्य बात तो गलती समझ आने के बाद भी उसे छिपाने का प्रयास करना था। ख़ैर, इस बात को यहीं छोड़ हम आगे बढ़ते हैं। दोस्तों, बच्चों के संदर्भ में एक बात हमेशा याद रखिएगा, बच्चे बचपन से ही अपने माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों को अपना रोल मॉडल मान उनके जैसे कार्य करने का प्रयास करते हैं और इसी से सबसे ज़्यादा सीखते हैं। ऐसे में उनके सामने अपनी कथनी और करनी में अंतर लाना खुद की क़ीमत गिराने के समान है। बच्चों के संदर्भ में मैं आपको एक बात और कहना चाहूँगा, बच्चे जो हम कहते हैं, से ज़्यादा जो हम करते हैं, उससे सीखते हैं। अगर आप चाहते हैं कि बच्चे हमेशा आपकी बात मान कर जीवन में आगे बढ़ें या एक बेहतरीन इंसान बनें, तो आपको बस एक बेहतरीन इंसान बनना होगा और जो कहते हैं, करते रहना होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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