Jan 13, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, तेज़ी से बदलती इस दुनिया में जहाँ हमारा समाज, हमारे जीवन मूल्य, आस्थाएँ या कुल मिला कर कहूँ तो हमारा जीवन और समाज एक सतत बदलाव के दौर से गुज़र रहा है। जैसे-जैसे सामाजिक परिस्थितियाँ और लोगों के विचार बदल रहे हैं, ठीक वैसे ही हमारे समाज के विचार और सिद्धांत भी बदल रहे हैं। मेरी बात से सहमत ना हों तो इतिहास उठाकर देख लीजियेगा। हमारा इतिहास इस बात का साक्षी है कि हर नई परिस्थिति, नए विचारों को जन्म देती है और नए विचार नए सिद्धांत गढ़ते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जो जब तक सृष्टि है, तब तक चलती रहेगी।
इस आधार पर कहा जाए तो बदलती परिस्थितियों के साथ हमें अपने सिद्धांतों को भी बदलना होगा। आज की परिस्थितियां पहले जैसी नहीं हैं। इसलिए जो सिद्धांत उस समय की समस्याओं को हल करने के लिए बनाए गए थे, वे आज के समय में उतने प्रभावी नहीं हो सकते। वैसे भी जब समाज बदल रहा है तो उसके साथ उसकी समस्याएं भी बदल रही है। इसलिए बदलते समय के साथ बदलती समस्याओं के लिए हमें पुराने सिद्धांतों पर अडिग रहने के बजाये नए विचारों और समाधानों को अपनाना होगा। इसके बिना बदलाव के इस दौर में जमाने के साथ बने रहना संभव नहीं होगा।
कुल मिलाकर कहा जाए तो बदलते समाज के साथ बने रहने के लिए हमें समाज की सोच और उनके जीवन को समझना होगा। ऐसा करके हम उनकी परेशानियों और समस्याओं को समझ पायेंगे, तभी हम समस्याओं की गहराइयों में उतरकर, उनके वास्तविक और उपयोगी हल खोज पाएंगे। जी हाँ साथियों, जब तक हम समाज याने लोकजीवन से नहीं जुड़ेंगे तब तक हम समाज की असली भावनाओं, जरूरतों और संघर्षों को समझ नहीं पायेंगे और जब तक भावनाएँ, जरूरतें और संघर्ष पता नहीं होंगी, तब तक कोई भी सिद्धांत या नीति प्रभावी नहीं हो पाएगी।
याद रखियेगा, सिद्धांतों का उद्देश्य जीवन को सरल और बेहतर बनाना है। इसलिए यह जरूरी है कि हम समाज की समस्याओं को समझकर उन्हें सुलझाने का प्रयास करें। इसके लिए हमें सबसे पहले लोगों के मन में विश्वास जगाना होगा क्योंकि जब समाज हम पर विश्वास करेगा, तभी हम उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला पाएंगे। यह तभी संभव होगा जब आप सिद्धांतों, उसकी सीमाओं, उनकी सार्थकता और उनके उपयोग की वास्तविक सीमाओं को समझ पायेंगे। इसके बिना सिद्धांतों को लेकर जो अनावश्यक बहस हमेशा होती है, उससे बचना संभव नहीं होगा। अगर आप सिद्धांत को लेकर अनावश्यक बहस में उलझेंगे तो यकीन मानियेगा आपके चाहने के बाद भी समस्याएँ हल होने के बजाय और उलझ जाएँगी।
दोस्तों, हमें एक बात को समझना होगा कि सिद्धांत जीवन के लिए हैं, जीवन सिद्धांतों के लिए नहीं। कोई भी सिद्धांत अंतिम सत्य नहीं होता। बदलते समय और परिस्थितियों के अनुसार सिद्धांतों को बदलने और नई सोच अपनाने की जरूरत होती है। लेकिन आज के समय में कई लोग सिद्धांतों का उपयोग अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए करने लगे हैं। सिद्धांतों का यह दुरुपयोग समाज और उसकी प्रगति के लिए यकीनन बाधक बन रहा है।
जी हाँ साथियों, समाज की बेहतरी के लिए अब हमें समझना होगा कि सिद्धांत तभी प्रभावी हो सकते हैं, जब वे समाज की जरूरतों और समस्याओं के अनुकूल हों। इसके लिए जरूरी है कि हम समाज के साथ तादात्म्य स्थापित करें। लोगों की भावनाओं और विचारों को समझें और उन्हें अपने साथ जोड़ें। अंत में मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि समाज और परिस्थितियां समय के साथ बदलती रहती हैं। ऐसे में पुराने सिद्धांतों पर अडिग रहने से कुछ हासिल नहीं होता। आज के युग की जरूरत है कि हम नए विचारों और समाधानों को अपनाएं और समाज के साथ जुड़कर उनकी समस्याओं को हल करें। सिद्धांतों का उद्देश्य जीवन को बेहतर बनाना है, न कि उन्हें जटिल बनाना। जब हम लोकजीवन से जुड़कर और उनके विश्वास को जीतकर काम करेंगे, तभी सही मायने में समाज का विकास संभव होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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