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बदलें ख़ुद को…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Mar 28
  • 3 min read

Mar 28, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, इस दुनिया में जीवन को बेहतर बनाने के लिए आत्म परिवर्तन से बेहतर और कुछ नहीं है। चलिए इसी बात को हम एक कहानी से समझने का प्रयास करते हैं। कुछ सालों पहले की बात है, कुछ शिष्य समूह बनाकर अपने गुरु के पास पहुंचे और उनसे सलाह माँगते हुए बोले, ‘गुरुजी हम सभी तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं ताकि हम अपना मन शुद्ध और पवित्र कर, अपने जीवन को सुधार सकें। कृपया हमारा मार्गदर्शन कीजिए कि हम किन-किन स्थानों पर जाएं और वहाँ किस तरह पूजन आदि करें जिससे हमें अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके और हमारा जीवन सुधर सके।’


शिष्यों का प्रश्न सुन गुरु मुस्कुराए फिर बोले, ‘वत्स! अगर तुम वाक़ई अपनी आत्मा को शुद्ध करना चाहते हो और इस तीर्थ यात्रा से अधिकतम लाभ लेकर अपने जीवन को सुधारना चाहते हो, तो सिर्फ़ एक कार्य करो, मेरा दिया करेला अपने साथ लेकर जाओ और फिर जहाँ भी जाओ इसे अपने साथ ले जाओ। जहाँ भी दर्शन करो, इसे भी दर्शन कराओ और जब यात्रा पूर्ण कर लो तो इस करेले के साथ सीधे मेरे पास आश्रम आ जाओ।’


गुरु की सलाह सुन शिष्य थोड़े हैरान थे, पर अपने गुरु पर विश्वास होने के कारण कहीं ना कहीं संतुष्ट भी थे। उन्होंने गुरु की सलाह मानी और सबने गुरु से लिए करेले के साथ तीर्थ यात्रा प्रारंभ कर दी। अब वे जिस भी धार्मिक स्थल पर जा रहे थे, अपने साथ उस करेले को ले जा रहे थे। अर्थात् वे उस करेले को ले पहाड़ी की चोटियों पर गए, नदी किनारों और जंगलों में स्थित मंदिरों में गए और उसे अनेकों मंदिरों में पूजा में भी अपने साथ रखा।


तीर्थयात्रा के अंतिम पड़ाव से वे सीधे गुरु के आश्रम आए और उनके दर्शन कर आशीर्वाद लिया। सामान्य बातचीत के बाद गुरु ने सभी शिष्यों से पूछा, ‘आशा करता हूँ इस धार्मिक यात्रा से तुम सभी को आत्मिक शांति का अनुभव हुआ होगा।’ प्रश्न सुनते ही सभी शिष्यों के चेहरे उतर गए और उन्होंने उनके प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया। शिष्यों के चेहरे पर मायूसी देख गुरुजी बोले, ‘चलो कोई बात नहीं, तूम जो अपने साथ करेले लेकर गए थे उन्हें इकट्ठा करो। आज संध्या के भोज में हम सब उन्ही करेलों की सब्जी खाएँगे।’


सभी शिष्यों ने गुरु की आज्ञा का पालन किया और रात के भोजन में करेले की सब्जी बनवाई। उस रात के भोज की शुरुआत गुरु ने करी और पहला निवाला खाते ही चेहरा बिगाड़ते हुए बोले, ‘यह सब्जी तो एकदम कड़वी है। इस करेले के स्वाद में तो इतनी तीर्थयात्रा के बाद भी परिवर्तन नहीं आया। समझ नहीं आ रहा ऐसा क्यों हुआ?’ गुरु का प्रश्न सुनते ही एक शिष्य बोला, ‘गुरुजी, करेला तो अपनी प्रकृति से ही कड़वा होता है। तीर्थ यात्रा से इसका स्वाद कैसे बदलेगा?’


शिष्य का जवाब सुनते ही गुरु जी एकदम गंभीर हो गए और फिर बोले, ‘वत्स! बिल्कुल सही कहा तुमने, करेला तो अपनी प्रकृति से ही कड़वा होता है और तीर्थ यात्रा से इसकी प्रकृति बदलने वाली नहीं है। यही बात मैं तुम सभी को समझाने का प्रयास कर रहा था। तीर्थयात्रा के रूप में अपना बाहरी वातावरण बदल लेने से तुम अपने मन को कड़वे या नकारात्मक विचारों से मुक्त नहीं कर सकते हो। जब तक तुम भीतर से खुद को नहीं बदलोगे, तब तक कोई भी बाहरी यात्रा तुम्हें सुख, शांति नहीं दे पाएगी।


दोस्तों, अब तो आप समझ ही गए होंगे कि मैंने शुरुआत में क्यों कहा था कि ‘इस दुनिया में जीवन को बेहतर बनाने के लिए आत्म परिवर्तन से बेहतर और कुछ नहीं है।’ याद रखियेगा, आत्म-परिवर्तन का सफर अंदर से शुरू होता है। दूसरों को दोष देने या परिस्थितियों को कोसने से कुछ हासिल नहीं होगा। जब तक हम खुद को नहीं सुधारते, तब तक हमारे जीवन में सच्ची शांति नहीं आ सकती।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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