Dec 30, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी के साथ करते हैं। बात कई साल पुरानी है, गाँव के पास स्थित बावड़ी में मेंढकपूर नाम का मेंढकों का एक गाँव था, जिसका राजा अकड़ू मेंढक था। वैसे तो अकड़ू मेंढक एक बहुत ही अच्छा राजा था जो अपनी प्रजा का पूरा ख़्याल रखा करता था, पर उसमें एक बहुत बड़ी कमी थी, वह किसी भी क़ीमत पर अपना विरोध सहन नहीं कर पाता था।
एक बार मेंढकपूर गाँव के मेंढक राजा अकड़ू के द्वारा लिए गए एक निर्णय पर दो गुटों में बंट गए। एक गुट राजा अकड़ू के साथ था, तो दूसरा उसके विरोध में। राजा अकड़ू को अपने विचारों का विरोध पसंद नहीं आ रहा था। पहले तो उसने सभी विरोधियों को शांत करने का प्रयास करा लेकिन जब वे नहीं माने तो उसे भय सताने लगा कहीं पूरी प्रजा ही उसके विरोध में ना हो जाए और उसका राज पाट ना छिन जाए। उसने सभी विरोधियों को मज़ा चखाने का निर्णय लिया और बदला लेने का तरीक़ा सोचने लगा।
एक दिन राजा अकड़ू मेंढक के मन में कुछ विचार आया और वह रात के अंधेरे में चुपचाप कुएँ से बाहर निकला और प्रियदर्शन सर्प के पास पहुँचकर मदद की गुहार लगाने लगा। आश्चर्यचकित प्रियदर्शन बाहर आया और अकड़ू मेंढक को देखते हुए बोला, ‘मुझसे मदद मांग रहे हो अकड़ू मेंढक? हम दोनों तो स्वाभाविक शत्रु हैं। तुम्हें इस बात का भय नहीं है कि मैं तुम्हें मार सकता हूँ?’
प्रियदर्शन सर्प की बात सुन मेंढक बोला, ‘महाराज, सर्पराज, आप कह तो ठीक रहे हैं, लेकिन अपनों से अपमानित होकर जीना भी तो मुश्किल है। वैसे भी शास्त्रों में कहा गया है, ‘सर्वनाश की स्थिति में अथवा अपने प्राणों की रक्षा हेतु शत्रु की अधीनता स्वीकार करने में ही समझदारी है… कृपया मुझे अपनी शरण में लें और मेरे दुश्मन मेंढकों को मारने में मदद करें।’
प्रियदर्शन सर्प ने सोचा, मैं तो अब बूढ़ा हो चुका हूँ, ऐसे में अगर बिना मेहनत करे भोजन का इंतज़ाम हो जाए तो क्या बुराई है? लेकिन अगली समस्या रहने के घर की थी। उसने अपनी बात अकड़ू मेंढक के सामने रखते हुए कहा, ‘वो तो ठीक है, लेकिन मैं रहूँगा कहाँ?’ अकड़ू मेंढक बोला, ‘उसकी चिंता आप छोड़ दीजिये आप हमारे मेहमान हैं, मैं आपके रहने का पूरा प्रबंध पहले ही कर आया हूँ। परन्तु वहाँ जाने से पहले आपको वचन देना होगा कि आप मुझे और मेरे परिवार को नुक़सान नहीं पहुँचाएँगे।’
प्रियदर्शन सर्प बोला, ‘निश्चिंत रहो तुम अकड़ू, अब डरने की ज़रूरत नहीं है तुम मेरे मित्र बन गए हो। मैं तुम्हारे कहे अनुसार ही मेंढकों को मार-मार कर खाऊँगा।’ बदले की आग में जल रहा अकड़ू मेंढक प्रियदर्शन के शब्दों को वचन मान प्रियदर्शन को लेकर कुएँ में उतर गया और पानी की सतह से कुछ ऊपर एक बिल दिखा कर प्रियदर्शन सर्प को वहाँ रहने का कहा। प्रियदर्शन उस बिल में जा घुसा और अकड़ू मेंढक चुपचाप अपने स्थान पर चला गया।
अगले दिन अकड़ू मेंढक ने सभी मेंढकों की एक सभा बुलाई और बोला, ‘आप सबके लिए खुशखबरी है, बड़े प्रयत्न के बाद मैंने एक ऐसा गुप्त मार्ग ढूंढ निकाला है जिसके जरिये हम यहाँ से निकल कर एक बड़े तालाब में जा सकते हैं, और बाकी की ज़िन्दगी बड़े आराम से जी सकते हैं। पर ध्यान रहे मार्ग कठिन और अत्यधिक सकरा है, इसलिए मैं एक बार में बस एक ही मेंढक को लेकर बड़े तालाब की ओर जा सकता हूँ।’ इसके बाद अकड़ू मेंढक ,दुश्मन मेंढक को अपने साथ लेकर आगे बढ़ा और योजना अनुसार सांप के बिल में ले गया। प्रियदर्शन सर्प तो पहले से ही तैयार था उसने पलक झपकते ही मेंढक को अपना निवाला बना लिया।
अगले कई दिनों तक यही क्रम चलता रहा और एक दिन, वह दिन भी आ गया जब अकड़ू मेंढक के सारे दुश्मन खत्म हो गए। अकड़ू मेंढक अब बहुत खुश था। उसने चैन की साँस ली और वह प्रियदर्शन से मिलने के लिए चल दिया। प्रियदर्शन सर्प के पास पहुँचकर अकड़ू ने धन्यवाद देते हुए कहा, ‘सर्पराज, आपके सहयोग से आज मेरे सारे शत्रु ख़त्म हो गए हैं, मैं आपका यह उपकार जीवन भर याद रखूँगा, कृपया अब आप अपने घर वापस लौट जाएं।’ प्रियदर्शन ने कुटिलता भरी वाणी में कहा, ‘कौनसा घर मित्र? प्राणी जिस घर में रहने लगता है, वही उसका घर होता है। अब मैं वहाँ कैसे जा सकता हूँ? अब तक तो किसी और ने उस पर अपना अधिकार कर लिया होगा। मैं तो यही रहूंगा।’ अकड़ू मेंढक घबरा गया और गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘पर आपने तो वचन दिया था।’
प्रियदर्शन ठहाके मारते हुए हंसने लगा और बोला, ‘वचन? कैसा वचन? अपने ही कुटुम्बियों की हत्या करवाने वाला नीच आज मुझसे मेरे वचन का हिसाब मांगता है!’ कहते-कहते प्रियदर्शन ने अकड़ू मेंढक का शिकार कर लिया। अकड़ू मेंढक को अब अपनी गलती का एहसास हो रहा था, बदले की आग में सिर्फ उसके दुश्मन ही नहीं जले… आज वो खुद भी जल रहा था।
दोस्तों, अक्सर आपसी दुश्मनी का परिणाम यही होता है। बदले की भावना अक्सर व्यक्ति के विचारों को दूषित कर देती है और आपका सुख-चैन छीन लेती है। जी हाँ साथियों, याद रखिएगा, बदले की आग से किसी और को नुक़सान पहुंचे ना पहुंचे बदले की भावना रखने वाले का नुक़सान होना तय रहता है। इसलिए दोस्तों, बदले की भावना को अपने अंदर रखने से बेहतर लोगों को माफ़ या क्षमा करना बेहतर है, इसीलिए क्षमा को श्रेयस्कर बताया गया है। याद रखिएगा दोस्तों, अगर किसी ने आपका बुरा भी किया है तो भी उसे माफ़ कीजिए क्योंकि उसके कर्मों का हिसाब रखना आपका नहीं, ईश्वर का कार्य है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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