Nov 14, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करता हूँ। बात कई साल पुरानी है, शहर के बाहरी इलाक़े में एक बहुत ही सज्जन व्यक्ति रहा करते थे। अपने सरल स्वभाव, मदद करने की आदत, उदार और दयालु स्वभाव के कारण वे लोगों के काफ़ी चहेते भी थे। जब भी उनसे कोई इस विषय में पूछता था कि ‘वे बिना अपेक्षा के इतनी मदद कैसे कर पाते हैं?’, तो वे हंस कर टाल जाया करते थे और हंसते हुए सिर्फ़ इतना कहते थे, ‘मुझे ऐसा करना अच्छा लगता है।’
एक दिन वे कहीं जा रहे थे कि उन्हें रोड किनारे एक लेडीज़ पर्स पड़ा दिखा। सही महिला तक उसका पर्स पहुँचाने के उद्देश्य से उसने वह पर्स उठाया और उसे खोल कर देखने लगे। तभी अचानक से ही एक महिला एक पुलिसकर्मी को साथ लेकर आई और उस सज्जन के हाथ में अपना पर्स देख कर चिल्लाने लगी। पुलिसकर्मी ने उन सज्जन के हाथ से पर्स लेकर महिला को दिया और उसे चेक करने के लिए कहा। महिला ने पर्स चेक किया तो उसे एहसास हुआ कि पर्स तो ख़ाली था। महिला ने उन सज्जन से उसके पैसे लौटाने के लिए कहा, तो वे सज्जन बोले, ‘मैडम, जब मुझे यह पर्स मिला था, तब यह बिलकुल ख़ाली था। मैं तो इसे खोल कर सिर्फ़ इसके सही मालिक का पता करने का प्रयास कर रहा था।’ लेकिन वह महिला कुछ सुनने के लिए राज़ी ही नहीं थी। उसने पुलिसकर्मी से उसे गिरफ़्तार करने और उसके पैसे वापस दिलवाने के लिए कहा, जिससे वह अपने बच्चे की स्कूल फ़ीस भर सके।
फ़ीस के विषय में सुनते ही वे सज्जन अपनी आदतानुसार बहुत दुखी हुए और उन्होंने अपनी जेब से सारे पैसे निकाल कर उस महिला को देते हुए कहा, ‘यह लीजिए आपके पैसे, आपको हुई असुविधा के लिए मैं आपसे क्षमा माँगता हूँ।’ महिला ने पैसे लिये और वहाँ से चली गई और पुलिसकर्मी उस आदमी को आगे की पूछताछ के लिए अपने साथ ले गया।
अपना पर्स और पैसे पाकर वह महिला बहुत खुश थी, लेकिन वह तब हैरान रह गई जब उसने घर जाकर पैसे गिने क्योंकि उन सज्जन द्वारा दिये गये पैसे, उसके पर्स में मौजूद पैसों से कई गुना ज़्यादा थे। लेकिन उसने बिना किसी को बताए इन अतिरिक्त पैसों को ख़ुद के पास रख लिया। कुछ दिनों बाद वह महिला बच्चे की स्कूल फ़ीस भरने के लिए घर से निकली। कुछ दूर चलने पर उसे एहसास हुआ कि कोई अनजान शख़्स उसका पीछा कर रहा है। उसे तत्काल कुछ दिन पूर्व घटी घटना याद आई और उसे लगा कि यह शख़्स कहीं कोई लुटेरा ना हो। वह तत्काल पास ही खड़े पुलिसकर्मी के पास गई। संयोग से यह वही पुलिसकर्मी था, जिसकी सहायता से उसने कुछ दिन पूर्व अपना पर्स खोजा था। उस महिला ने तुरंत पीछा कर रहे शख़्स के बारे में उस पुलिसकर्मी को बताया। पुलिसकर्मी उसकी सहायता करने के उद्देश्य से उसके साथ हो लिया लेकिन वह उस शख़्स तक पहुँच कर कुछ करता उसके पहले ही वह शख़्स बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ा। महिला उस पुलिसकर्मी के साथ तत्काल उसकी मदद करने के लिए दौड़ी। वहाँ पहुँचकर वह यह देखकर हैरान रह गई कि यह वही शख़्स है जिसे उसने पिछले सप्ताह पुलिसकर्मी से गिरफ़्तार करवाया था।
उस कमजोर शख़्स को देख पुलिसकर्मी बोला, ‘मैडम, इस आदमी ने ना तो पिछली बार चोरी की थी और ना ही यह आज ग़लत उद्देश्य से आपका पीछा कर रहा था। यह तो बहुत भला आदमी है, जो दिनभर दूसरों के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द मान सेवा किया करता है। उस दिन भी जब इसे पता चला कि चोरी गये पैसों से आप अपने बच्चे की फ़ीस भरने वाली थी तो इसने अपने पास से आपको पैसे दे दिये थे।’ पूरी बात जान महिला हैरान थी, उसने उसी पल अपने पर्स में से पानी की बोतल निकाल कर उस बेहोश व्यक्ति के ऊपर डाला, जिसकी वजह से वो होश में आ गया। कुछ देर में सामान्य होने पर वह शख़्स बोला, ‘कृपया आप जाकर अपने बेटे की स्कूल फीस भर दीजिए। मैंने देखा कि आप अकेले जा रहीं थी इसीलिए मैं आपके पीछे-पीछे चल रहा था और यह सुनिश्चित कर रहा था कि कोई आपके बेटे की स्कूल फीस को चुरा न ले।’ जवाब सुन वह महिला अचंभित थी, अब उसके विचार उस शख़्स के प्रति पूरी तरह बदल चुके थे।
दोस्तों, ज़िंदगी ऐसे ही हमें अजीबोग़रीब अनुभव देते हुए चलती है। कभी हमें यह जीवन चौंकाता है, तो कभी सुखद एहसास देता है, तो कभी कड़वे अनुभव। इन्हीं अनपेक्षित अनुभव के कारण कभी हम दुखी होते हैं, तो कभी क्रोध और हताशा में, तो कभी शांति और सुख के साथ। यही विविधता भरे अनुभव कहीं ना कहीं हमारे अगले निर्णयों को प्रभावित करते हैं और हमें एक बार फिर अनपेक्षित परिणामों से रूबरू कराते हैं। दोस्तों, यही वह समय होता है जब हम पूर्व में की गई अपनी ग़लतियों को सुधार कर आने वाले परिणामों को अपने पक्ष में मोड़ सकते हैं। वैसे यह लक्ष्य ईश्वर ने हमें जो दिया गया है, उसके लिए हर पल कृतज्ञ और समाज के लिए दयालु और उदार रहकर भी पा सकते हैं, जो अंततः आपको अपने जीवन को वास्तविक ख़ुशी के साथ जीने का मौक़ा देता है। इसलिए ही कहा गया है दोस्तों, ‘समानुभूति के साथ सह-जीवन और सहानुभूति के साथ पीड़ितों की मदद करने का गुण ही आपको इंसान बनाता है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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