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बनना हो बड़ा तो देना शुरू करें…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

May 30, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, बड़ा आदमी याने पैसे वाला बनना एक ऐसा सपना है, जो मेरी नज़र में ज़्यादातर लोग देखते हैं। लेकिन मेरी नज़र में यह बहुत आसान कार्य है। चौंकिए मत, मैं एकदम सही कह रहा हूँ, इसीलिए तो इस जहां में ढेरों ‘बड़े लोग’ आपको अपने आसपास नज़र आते हैं। जीवन जीने और काम करने के चंद नियम बना लीजिए और उन पर दिन-प्रतिदिन, बिना किसी शक के लगातार कार्य करना शुरू कर दीजिए। कुछ ही दिनों में आप पाएँगे कि आप अपने सपनों की ओर बढ़ना शुरू कर चुके हैं।


यक़ीन मानिएगा दोस्तों, यह वाक़ई इतना आसान है। मेरी नज़र में मज़ा तो तब है, जब आप ऐसे ‘बड़े लोगों’ से भी ‘बड़े’ बन जाओ। जी हाँ, जीवन में मात्र एक सूत्र अपना कर आप अमीर लोगों से भी बड़े बन सकते हो। अपनी बात को मैं आपको हॉलीवुड की महान अभिनेत्री कैथरिन हेपबर्न के जीवन से जुड़ी घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। माध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी कैथरिन का पालन-पोषण बहुत ही साधारण तरीक़े से हुआ था। उनके माता-पिता का इरादा शुरू से ही बेटी को अच्छा इंसान बनाना था, इसलिए उन्होंने अपना पूरा जोर बेटी को जीवन मूल्य सिखाने पर लगाया। कैथरिन संभवतः एकमात्र ऐसी अभिनेत्री हैं, जो दर्जनों बार ऑस्कर अवार्ड के लिए नामित हुई और एक बार इस अवार्ड की विजेता भी बनी। लेकिन इसके बाद भी वे कभी ऑस्कर अवार्ड समारोह में नहीं गई। वे दिल की गहराइयों से मानती थी कि अभिनय और सिनेमा का आनंद लेने वाले लोगों से मिला स्नेह और प्यार ही उनका सबसे बड़ा अवार्ड है। उनकी इसी सोच का नतीजा था कि वे ‘बड़े लोगों’ से भी ‘बड़ी’ बन गई थी। उपरोक्त कथन को मैं आपको कैथरिन हेपबर्न के शब्दों से ही समझाने का प्रयास करता हूँ-


“बात उस समय की है जब मैं किशोर अवस्था में थी। एक दिन मेरे पिता मुझे सर्कस दिखाने के लिए लेकर गए। सर्कस में टिकट काउंटर पर काफ़ी लंबी लाइन लगी हुई थी, जिसके अंत में हम दोनों जाकर खड़े हो गए। कुछ देर बाद आख़िरकार वह पल भी आ गया, जब टिकट काउंटर और हमारे बीच सिर्फ़ एक परिवार था। इस परिवार ने मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव छोड़ा था। असल में इस परिवार में १२ साल की उम्र तक के आठ बच्चे थे। इन सभी बच्चों ने बेहद साधारण, लेकिन साफ़-सुथरे कपड़े पहने हुए थे। उनके कपड़ों को देख आराम से अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि वे ग़रीब परिवार से ताल्लुक़ रखते हैं। सभी बच्चे संस्कारी याने अच्छा व्यवहार करने वाले थे और वे सभी अपने माता-पिता के पीछे दो-दो करके कतार में हाथ पकड़े हुए खड़े थे। सभी बच्चे आपस में जोकर, जानवर और कलाकारों द्वारा दिखाये जाने वाले करतबों के बारे में बड़े उत्साह और ख़ुशी के साथ बातें कर रहे थे। उनकी बातें और उत्साह देखकर कोई भी अंदाज़ा लगा सकता था कि इससे पहले उन्होंने कभी सर्कस नहीं देखा है और यह उनके जीवन का सबसे बड़ा ख़ुशी और जश्न का पल है। माता-पिता भी अपने बच्चों को यह मौक़ा देकर बड़ा गर्व महसूस कर रहे थे। माँ अपने पति का हाथ पकड़ कर इस तरह खड़ी थी मानो कह रही हो, ‘तुम मेरे असली हीरो हो क्योंकि तुम मेरे और बच्चों की ख़ुशी के लिए कुछ भी कर सकते हो।’ और पिता पास ही खड़ा अपने परिवार को खुश देख मुस्कुरा रहा था।


तभी एक आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा। असल में काउंटर पर बैठी लड़की ने उन बच्चों के पिता से पूछा था कि उसे कितने टिकट चाहिए? पिता ने बड़े गर्व के साथ जवाब दिया, ‘आठ बच्चों के और दो वयस्कों के। असल में मैं अपने पूरे परिवार को सर्कस दिखाना चाहता हूँ।’ लड़की ने मुस्कुराते हुए टिकटों की क़ीमत बताई, जिसे सुन उस आदमी के होंठ काँपने लगे और उसके हाथ से अनजाने में ही पत्नी का हाथ छूट गया। उसने काउंटर पर झुकते हुए धीमे शब्दों में एक बार और पूछा, ‘कितना कहा तुमने?’ टिकट काउंटर वाली लड़की ने एक बार फिर अपनी बात दोहरा दी। उस व्यक्ति के हाव-भाव से साफ़ पता चल रहा था कि उसके पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं। अब वह दुविधा में था कि किस तरह अपने बच्चों और पत्नी से कहे कि वह उन्हें सर्कस नहीं दिखा सकता है।


मेरे पिता यह सब देख रहे थे। उन्होंने अपनी जेब से $20 का नोट निकाला और उसे ज़मीन पर गिरा दिया। आगे बताने से पहले मैं आपको बता दूँ कि हम किसी भी मायने में अमीर नहीं थे। नोट गिराने के बाद मेरे पिता नीचे झुके और $20 का नोट उठाकर उस आदमी के कंधे पर थपथपाते हुए बोले, ‘माफ़ करना, सर, यह आपकी जेब से गिर गया है।’ वह आदमी तुरंत सारा माजरा समझ गया। वह मदद की भीख नहीं मांग रहा था, लेकिन निश्चित रूप से एक हताश, दिल तोड़ने वाली और शर्मनाक स्थिति में मदद की सराहना करता था। उसने सीधे मेरे पिताजी की आँखों में देखा, मेरे पिताजी का हाथ अपने दोनों हाथों में लिया, $20 के नोट को कसकर दबाया, और आँखों से बहते हुए आंसुओं के साथ काँपती आवाज़ में बोला, ‘धन्यवाद, धन्यवाद, सर। यह मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत मायने रखता है।’


मेरे पिता मुस्कुराए और मुझे लेकर वापस घर आ गए। असल में मेरे पिताजी ने जो 20 डॉलर दिए, उनसे हम अपनी टिकटें खरीदने वाले थे।उस दिन हम सर्कस तो नहीं देख पाये लेकिन दोनों ही अपने अंदर एक ऐसी खुशी महसूस कर रहे थे, जो सर्कस देखने से कहीं ज़्यादा थी।


जानते हैं दोस्तों, सर्कस देख कर मिलने वाली ख़ुशी से यह ख़ुशी ज़्यादा बड़ी क्यों थी? असल में यह ख़ुशी ‘देने की ख़ुशी’ थी, जिसने कैथरिन को उस दिन देने का महत्व सिखाया था। दोस्तों, अगर आप बड़े बनना चाहते हैं… जीवन से भी बड़े, तो देना सीखें। देने वाला हमेशा, हर हाल में, पाने वाले से बड़ा होता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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