Nirmal Bhatnagar
बनाना हो जीवन को सर्वोत्तम, तो जिएँ पूर्ण बोध के साथ वर्तमान में…
Apr 7, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत हम एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, एक शातिर चोर संत नागार्जुन के पास पहुँचा और बोला, ‘मैं इस दुनिया का सबसे शातिर और प्रसिद्ध चोर हूँ। पिछले 20 वर्षों में मैंने हज़ारों चोरियाँ की हैं, लेकिन आज तक मुझे कोई पकड़ नहीं पाया है। आज मेरे पास सब कुछ है लेकिन उसके बाद भी शांति नहीं है। इस शांति की खोज में मैं कई संत-महात्माओं से मिला लेकिन सब कहते हैं, ‘शांति चाहते हो, तो पहले चोरी छोड़ो।’ महात्मन चोरी छोड़ने के लिए पहले तो मैंने स्वयं काफ़ी प्रयास करा लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो मैंने कई बड़े-बड़े साधु-महात्माओं की मदद ली। उनके बताए हर तरीके जैसे नियम लेना, खुद को रोकना, क़समें खाना, आदि सब किया। लेकिन क़समें टूट गई, नियम छूट गया और इस प्रयास में मेरा चित्त आत्मग्लानि से भर गया। मैं पता नहीं क्यों बार-बार प्रयास करने के बाद भी चोरी करना छोड़ नहीं पा रहा हूँ।’ उसकी बात सुन नागार्जुन मुस्कुराए पर बोले कुछ नही। संत को शांत देख चोर ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘आप समझ ही सकते हैं कि चोरी छोड़ना तो शायद मेरे लिए सम्भव नहीं है। वैसे भी अगर यह मेरे लिए सम्भव होता तो मैं आप जैसे संत महात्माओं के पास क्यों आता? खुद ही छोड़ देता। महात्मन कृपा करें और कोई ऐसी तरकीब बताएँ कि मुझे इसे छोड़ना ना पड़े, यह अपने आप ही छूट जाए।’
नागार्जुन मुस्कुराए और बोले, ‘वत्स, मुझे तो लगता है तूने अभी तक किसी महात्मा के साथ सत्संग नहीं किया है क्योंकि अगर किया होता तो तू मुझसे यह कहता ही नहीं। तू तो चोरी के अपने कार्य में पूर्ण दक्ष है, उसे क्यों छोड़ना और चोरी से क्या डरना। तू तो जब भी जी चाहे, जी भरकर चोरी कर।’ संत नागार्जुन की बात सुन चोर ने चौंकते हुए कहा, ‘यह क्या कह रहे हैं आप? जी भरकर चोरी करूं?’ चोर की बात सुन नागार्जुन बोले, ‘हाँ, जी भर के चोरी कर, चोरी से कुछ बनता या बिगड़ता नहीं है। बस अब जब चोरी करे तो एक बात का ध्यान रखना, चोरी करते वक्त अपने होश में रहना। याने यह जानकर चोरी करना कि मैं अब चोरी कर रहा हूँ। जैसे, यह देखो मैं चोरी करने के लिए घर में घुसा हूँ… यह देखो अब मैं तिजोरी का ताला तोड़ रहा हूँ… यह देखो मैं अब पैसे, गहने और क़ीमती सामान चुरा रहा हूँ… चुराया गया सभी क़ीमती सामान मेरा नहीं है लेकिन मैं इसे ले जा रहा हूँ। कहने का मतलब है, अब तुम जो भी करो होश में, वर्तमान में रहकर करो।’
नागार्जुन की बात सुन चोर एकदम खुश होता हुआ बोला याने अब मैं चोरी कर सकता हूँ? नागार्जुन बोले, ‘हाँ बिलकुल, तू चोरी कर, जी भर कर कर, दिल खोल कर कर, पर होश पूर्वक कर।’ चोर नागार्जुन की बात सुन वहाँ से ख़ुशी-ख़ुशी चला गया लेकिन पंद्रह दिनों बाद वापस आया और नागार्जुन से बोला, ‘तुमने तो मुझे फँसा दिया; मुश्किल में डाल दिया। तुमसे पहले कोई और महात्मा यह कार्य नहीं कर पाया था। वे चोरी छुड़ाने के लिए मुझसे क़समें लेते थे और मैं उन्हें तोड़ देता था। क़समें लेना और तोड़ना मेरी आदत बन गई थी या यूँ कहूँ क़समों को तोड़ना मेरी जीवनशैली का हिस्सा बन गया था। लेकिन तुमने मुझे उलझा दिया। अगर होश में रहकर चोरी करने का प्रयास करता हूँ तो खुली तिजोरी देख भी बिना बहुमूल्य सामान लिए वापस आ जाता हूँ।’ कुछ पलों के लिए शांत रहने के बाद चोर वापस बोला, ‘हीरे-जवाहरात सामने होते हैं, लेकिन हाथ आगे नहीं बढ़ता और अगर हाथ आगे बढ़ता है, तो होश खो जाता है। दोनों बातें, एक साथ नहीं सधती। चोरी करूं, तो होश खोता है और होश सम्भालूँ, तो चोरी नहीं होती।’
चोर की बात को लगभग नज़रंदाज़ करते हुए नागार्जुन बोले, ‘अब यह तू जान, हमारा काम तुझे सही बात बताना था, हमने जो सही था तुझे बता दिया, हमारा काम ख़त्म। अब तुझे जो बचाना हो, वह बचा। होश बचाना हो, तो होश बचा, चोरी बचाना हो, तो चोरी बचा। हमें क्या लेना देना, तेरी जिंदगी है, तू जान।’ नागार्जुन की बात सुन चोर बोला, ‘आपने तो मेरे लिए और मुश्किल खड़ी कर दी। मैं अभी तक तो 3 बार होश बचाकर बिना चोरी किए लौट आया हूँ। लेकिन कब तक ऐसा कर पाऊँगा मुझे नहीं मालूम। लेकिन एक बात तो है, जिस रात मैं बिना चोरी करे आया, उस रात में बड़ी चैन की नींद सोया। उस दिन मुझे ऐसी शांति मिली, जो पहले कभी नहीं मिली थी। हीरे छोड़ने पर हाथ तो मेरे ख़ाली ही थे, लेकिन दिल शांति और ख़ुशी से भरा था। मुझे तो एहसास ही नहीं था कि चोरी न करने के बाद भी ऐसा संतोष, ऐसा आनंद, ऐसी ख़ुशी मिलेगी, जैसी मैंने पहले कभी नहीं महसूस की। इस तृप्ति; इस संतोष को पाकर मैं तो सोच रहा हूँ कि अब मुर्छा को छोड़ कर, जागृति बचाना होगी।’ चोर की बात सुन नागार्जुन मुस्कुराए और बोले, ‘फिर तेरी तू समझ। जागृति बचानी है, तो चोरी जाएगी। दोनों साथ नहीं चल पाएँगे।’ कहते हैं दोस्तों, कि उस दिन से चोर ने चोरी करना हमेशा के लिए छोड़ दिया।
वैसे तो दोस्तों, आप इस कहानी में छुपे गूढ़ संदेश को समझ ही गए होंगे, लेकिन फिर भी बहुत ही संक्षेप में हम उसपर चर्चा कर लेते हैं। हममें से कई लोग अपने जीवन में बुराई छोड़ने के तमाम प्रयास करते हैं लेकिन कभी सफल नहीं हो पाते हैं। इसकी मुख्य वजह मेरी नज़र में मूर्च्छित अवस्था में क़समों, वादों, नियमों के आधार पर उन्हें छोड़ने का प्रयास करना है। दिखाने के लिए बुराई छोड़ने का प्रयास करना या खुद को अच्छा, संस्कारी, शांत और खुश दिखाना एक अलग बात है। लेकिन अगर आप वाक़ई बुराई को छोड़ कर इन बातों को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहते हैं तो आपको उपरोक्त कहानी अनुसार वर्तमान में रहते हुए बोध के अनुसार जीवन जीना सीखना होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर